दोहे
भैक्षव गण का जगत में बहुत बड़ा सम्मान।
गण में नित निश्चिंत मन कर लेते कल्याण।।
संघाश्रित को सफलता कदम कदम हरयाम।
आत्मा के कल्याण सह अमर बनाता नाम।।
एक सुगुरु नेतृत्व में चलता है यह पंथ।
इसीलिए इस संघ की महिमा का क्या अंत।।
परमयशा की बहिन थी धर्मयशा था नाम।
संलेखन पूर्वक गई जयपुर से सुरधाम।।
श्री तुलसी गुरुदेव से दीक्षा की स्वीकार।
महाश्रमण युग में किया अपना बड़ा पार।।