अधर्म युक्त जीवन लौहार की धोंकणी के समान: आचार्यश्री महाश्रामण

गुरुवाणी/ केन्द्र

अधर्म युक्त जीवन लौहार की धोंकणी के समान: आचार्यश्री महाश्रामण

ताल छापर, 27 सितंबर, 2022
आध्यात्मिक शक्तिप्रदाता आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि भगवती सूत्र में प्रश्न किया गया कि क्या केवली साधु प्रणीत मन और वचन को धारण करता है, उनका प्रयोग करता है? उत्तर दिया गया कि हाँ धारण और प्रयोग करता है। केवलज्ञानी के क्षयोपशम भाव नहीं होता है। औदायिक भाव तो रहता है।
औपक्षयिक भाव केवल मोहनीय कर्म से संबंधित है और वह ग्यारहवें गुणस्थान तक होता है। केवली के क्षायिक भाव होता है। क्षयोपशम भाव केवल घाति कर्म के साथ ही होता है। केवली को नो संज्ञी-नो असंज्ञी कहते हैं। प्रणीत मन प्रकृष्ट शुभ मन है, भाव मन वाला मन नहीं है। यह एक द्रव्य मन है।
औपक्षयिक भाव केवल मोहनीय कर्म से संबंधित है और वह ग्यारहवें गुणस्थान तक होता है। केवली के क्षायिक भाव होता है। क्षयोपशम भाव केवल घाति कर्म के साथ ही होता है। केवली को नो संज्ञी-नो असंज्ञी कहते हैं। प्रणीत मन प्रकृष्ट शुभ मन है, भाव मन वाला मन नहीं है। यह एक द्रव्य मन है। प्रणीत मन के आधार पर ही देवता प्रश्न का उत्तर प्राप्त कर सकते हैं। यहाँ प्रश्न किया गया कि केवली के प्रणीत मन-वचन को वैमानिक देव देखते हैं क्या? उत्तर दिया गया कि कई देवता जानते-देखते हैं, कई नहीं जानते-देखते भी हैं। उपयोग लगाए तो देख-जान सकते हैं। योग्य और उपयुक्त होते हैं, तो ग्रहण कर सकते हैं।
आलाप-संलाप कर लेते हैं।
जो विद्वान हैं, उनको उपयुक्तता के अनुसार प्रश्न पूछने वाले को उत्तर देना चाहिए, इससे ज्ञान की वृद्धि होती है। मोबाइल से तो भाशा के पुद्गल माध्यम से जाते हैं, पर केवली तो पुद्गलों को जानकर प्रश्नोत्तर कर लेते हैं। हमारे प्राच्य साहित्य में अनेक सूक्ष्म बीज हैं, उनके आधार पर नया-नया आविष्कार होता रहता है। प्रश्न है, अनुत्तरोपपातिक देव होते हैं, वे उदीरण मोह वाले होते हैं या उपशांत मोह वाले हैं या क्षीण मोह वाले हैं? उत्तर दिया गया वे उदीरण मोह वाले नहीं हैं, उपशांत मोह वाले हैं, क्षीण मोह वाले भी नहीं हैं। ये देवता साधु तो नहीं होते हैं, पर कुछ अंशों में साधु से कम नहीं होते हैं। सब शांत स्वभाव वाले होते हैं। ये उपशांत मोह ग्यारहवें गुणस्थान वाला नहीं है। उत्कट रूप में उतना नहीं होता है।
आदमी के जीवन में शांति रहे, मोह उपशांत रहे। ज्ञान वृद्धिंगत और पुष्ट हो जाए तो बहुत बड़ी लब्धि है। केवलज्ञानी के तो मोह पूर्णतया क्षीण होता है। उपशम श्रेणी आदमी लेता है, तो वापस नीचे आना पड़ेगा। हमें तो कभी उपशम श्रेणी की बजाय क्षपक श्रेणी मिले। आगे बढ़ते रहें। उपशम श्रेणी बंद गली का रास्ता है। क्षपक श्रेणी तो राजमार्ग है। लक्ष्य तक पहुँचाने वाला है। अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह के अंतर्गत आज अणुव्रत प्रेरणा दिवस है। अणुव्रत अनुशास्ता ने फरमाया कि आदमी के जीवन में व्रत आए। गृहस्थों के लिए ही अणुव्रत है। छोटे-छोटे व्रतों को ग्रहण करें। अणुव्रत आंदोलन के नियम तो जैन-अजैन सभी के लिए हैं। नास्तिक भी इसे स्वीकार कर सकते हैं। अणुव्रती बनें। जीवन अच्छा बने। जीवन में संयम आए तो आगे दुर्गति से भी बचा जा सकता है।