कर्तव्यनिष्ठा और अनुशासन के बिना लोकतंत्र का देवता विनाश को प्राप्त हो सकता है: आचार्यश्राी महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

कर्तव्यनिष्ठा और अनुशासन के बिना लोकतंत्र का देवता विनाश को प्राप्त हो सकता है: आचार्यश्राी महाश्रमण

ताल छापर, 1 अक्टूबर, 2022
अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह के अंतर्गत आज छठा दिवस अनुशासन दिवस है। अणुव्रत अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने इस अवसर पर फरमाया कि अनुशासन बहुत अपेक्षित और उपयोगी होता है। अनुशासन करने वाला कौन है, उसका तरीका कैसा है और किस पर अनुशासन किया जा रहा है, यह अनुशासन को उपयोगी बना सकता है। अनुशासनहीनता समाज-संगठन के लिए कठिनाई पैदा कर सकती है। राजतंत्र हो या लोकतंत्र अनुशासन आवश्यक है।
कर्तव्यनिष्ठा और अनुशासन के बिना लोकतंत्र का देवता मृत्यु और विनाश को प्राप्त हो सकता है। अनुशासन से समाज स्वस्थ रह सकता है। परिवार में भी अनुशासन चाहिए। उद्दंड के लिए दंड संहिता होती है। वर्तमान में लोकतंत्र में न्यायपालिका का कार्य अनुशासन स्थापित करना ही है। निज पर शासन, फिर अनुशासन। हम सभी अनुशासन में रहने की अनुभावना रखें।
मुख्य प्रवचन में मंगल देशना प्रदान करते हुए आचार्यप्रवर ने फरमाया कि भगवती सूत्र में कहा गया है कि चतुर्दशपूर्व एक विशिष्ट ज्ञान राशि होती है। चौदह पूर्वों को धारण करने वाला श्रुत ज्ञान से बहुत बड़ा ज्ञानी साधु हो सकता है। बताया गया कि चतुर्दशपूर्व धारी उत्कारिका भेद से विद्यमान अनंत द्रव्य लब्ध-प्राप्य होता है, उत्कारिका भेद से वह ऐसा दिखा सकता है। भगवती सूत्र में कितनी बातें प्राप्य होती हैं। यह जादूगरी का एक स्त्रोत है। यह अज्ञानी के लिए तो चमत्कार है पर ज्ञानी के लिए नियम है।
हमारे यहाँ नियम है कि एक आकाश प्रदेश में अनंत प्रदेशी पुद्गल स्कंध उसमें समाविष्ट हो जाते हैं। यह परिणति की स्थिरता है। मोक्ष में जाने वाली आत्मा एक समय में अस्पर्शी हो मोक्ष में चली जाती है। यह जादू जैसी स्थिति है कि चतुर्दशपूर्वी एक चीज को हजार चीज बनाकर दिखा सकता है। हालाँकि इसमें भी ज्ञान और विद्या की अपेक्षा रहती है। ज्ञान से तरीका पकड़ में आ गया तो आदमी ऐसा कर सकता है।
दुनिया में अनेक विद्याएँ हैं, पर उनमें कोई-कोई ही निष्णात हो सकता है। चतुर्दशपूर्वी विशिष्ट ज्ञानी होती है। भद्रबाहु स्वामी श्रुत केवली थे। उन्होंने महाप्राण की साधना की थी। ज्ञान देने का भी प्रयास किया था। ज्ञान देने वाला चाहिए तो ज्ञान लेने वाला भी योग्य होना चाहिए। योग्य व्यक्ति को ही ज्ञान देना चाहिए। आदमी विद्या का दुरुपयोग न करे।
प्राचीन काल में तो अनेक विद्याएँ होती थीं। पर वर्तमान में तो कुछ ही विद्याएँ विद्यमान हैं। कई नई विद्याएँ वर्तमान में और विकसित हुई हैं। पर साथ में कर्मवाद भी काम करता है।
प्राचीन शास्त्रों में विद्याओं के òोत-बीज मिल सकते हैं और विद्याओं का विकास हो सकता है। हम विद्याओं का सदुपयोग करें।
पूज्यप्रवर ने मंगल देशना प्रदान करने से पूर्व आध्यात्मिक अनुष्ठान करवाया। तपस्या के प्रत्याख्यान करवाए। कार्यक्रम में जैन विश्व भारती के नव निर्वाचित अध्यक्ष अमरचंद लुंकड़ ने आचार्यप्रवर के समक्ष अपनी भावाभिव्यक्ति करते हुए नई टीम की घोषणा की।
कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।