पर्युषण महापर्व का आयोजन
जसोल।
शासनश्री साध्वी सत्यप्रभा जी के सान्निध्य में पर्युषण महापर्व मनाया गया। खाद्य संयम दिवस: शासनश्री साध्वी सत्यप्रभा जी ने अपना वक्तव्य गीत के साथ प्रारंभ किया। सभी को पर्युषण पर्व के नियमों से अवगत कराते हुए विशेष रूप से प्रवचन, प्रतिक्रमण एवं पौषध की प्रेरणा दी। इससे पूर्व साध्वी ध्यानप्रभा जी ने वक्तव्य के साथ कार्यक्रम प्रारंभ किया। साथ ही पर्युषण के महत्त्व को उजागर करते हुए सबको अधिक से अधिक धर्मध्यान करने की प्रेरणा दी। साध्वी श्रुतप्रभा जी ने पर्युषण पर्व के प्रथम दिवस खाद्य संययम की चर्चा करते हुए सभी को प्रेरणा दी। साध्वीवृंद द्वारा सामूहिक गीतिका का संगान हुआ।
स्वाध्याय दिवस: पर्युषण पर्व अध्यात्म की पूर्व भूमिकाओं का एक महत्त्वपूर्ण पर्व है। यह पर्युषण पर्व पुरुषार्थ का पर्व है। पर्युषण पर्व की आराधना के साथ भाद्रव महीने का विधान सोने में सुगंध का काम करता है। यह विचार शासनश्री साध्वी सत्यप्रभा जी ने रखे। स्वाध्याय दिवस पर साध्वी यशस्वीप्रभा जी ने कहा कि स्वाध्याय ऐसा माध्यम है जो नए विचारों का सृजन करता है और अपनी विचार संपदा को सुरक्षित रखता है। स्वाध्याय से वह रोशनी मिलती है जो करणीय और अकरणीय का स्पष्ट ज्ञान करा देती है।
साध्वी ध्यानप्रभा जी ने उत्तराध्यन आगम के वाचन पर प्रकाश डाला। तेममं द्वारा सामूहिक गीतिका का संगान किया गया।
सामायिक दिवस: पर्वाधिराज पर्युषण महापर्व का तीसरा दिन अभिनव सामायिक के रूप में शासनश्री साध्वी सत्यप्रभा जी के सान्निध्य में अभातेयुप के निर्देशन में तेयुप द्वारा कार्यक्रम आयोजित किया गया। सर्वप्रथम सामायिक का प्रत्याख्यान एवं त्रिपदी वंदना साध्वी श्रुतप्रभा जी ने करवाई। साध्वी ध्यानप्रभा जी द्वारा सामायिक पर प्रवचन देकर विस्तार से उदाहरण सहित सामायिक पर बताया।
शासनश्री साध्वी सत्यप्रभा जी ने कहा कि समता की साधना वर्तमान की सबसे बड़ी आवश्यकता है। इसके बिना व्यक्ति किसी भी क्षेत्र में सफलता हासिल नहीं कर सकता है। तेयुप अध्यक्ष तरुण भंसाली ने विचार व्यक्त किए। मध्याह्न में दो बजे से तीन बजे तक भगवती सूत्र का वाचन का क्रम रहा। रात्रिकालीन कार्यक्रम में ‘तेरापंथ की बलिदानी श्राविकाएँ’ विषय पर कार्यक्रम रहा। वाणी संयम दिवस: वाणी संयम दिवस पर शासनश्री साध्वी सत्यप्रभा जी ने कहा कि कैसे बोलें, आवश्यक हो तब बोलें, गर्व-रहित बोलें, कुलीन भाषा बोलें, कम से कम बोलें, मीठी भाषा बोलें, हितकारी भाषा बोलें, मौन रहकर बोलें, संशय रहित भाषा बोलें, सत्यनिष्ठ भाषा बोलें, पापरहित भाषा बोलें, पहले सोचें, फिर बोलें। व्यवहार जगत में भाषा का बहुत मूल्य है। भाषा एक-दूसरे से जोड़ती है। आपसी संवाद का माध्यम बनती है। रिश्तों को मजबूत बनाती है।
साध्वी ध्यानप्रभा जी ने प्रेक्षाध्यान आदि आवश्यक प्रयोग कराते हुए वाणी दिवस पर विस्तारपूर्वक समझाया। साध्वी श्रुतप्रभा जी, साध्वी यशस्वीप्रभा जी ने विचारों की अभिव्यक्ति दी।
अणुव्रत चेतना दिवस: अणुव्रत चेतना दिवस पर शासनश्री साध्वी सत्यप्रभा जी ने कहा कि विश्व की संपूर्ण मानव जाति के लिए ग्राह्य अणुव्रत के सिद्धांतों को आत्मसात कर लिया जाए तो बारूद के ढेर पर खड़ी मानवता को बचाया जा सकता है। अणुव्रत का सम्यक् अर्थबोध हो, यह आवश्यक है। छोटी-छोटी परिभाषाओं में अणुव्रत को समझाया जा सकता है। साध्वी ध्यानप्रभा जी ने प्रेक्षाध्यान के साथ-साथ उत्तराध्ययन सूत्र का वाचन किया। साध्वी श्रुतप्रभा जी ने कहा कि अणु का एक कण समूचे ब्रह्मांड में विस्फोट कर सकता है, वैसे ही अणुव्रत के छोटे-छोटे नियम हर समस्या को सुलझा सकते हैं।
जप दिवस: शासनश्री साध्वी सत्यप्रभा जी ने जप दिवस पर कहा कि मंत्र विविध शक्तियों का खजाना है। मनोयोगपूर्वक जाप करने से वे सारी शक्तियाँ जपकर्ता में धीरे-धीरे प्रगट होने लगती हैं। साध्वीश्री जी ने अंतगड़ व भगवान महावीर स्वामी के 27 भवों के अठारहवें व उन्नीसवें भव का वर्णन किया। साध्वी ध्यानप्रभा जी ने प्रेक्षाध्यान के साथ-साथ उत्तराध्ययन सूत्र का वर्णन किया। साध्वी यशस्वीप्रभा जी ने जप दिवस के बारे में कहा कि मंत्र कितना शक्तिशाली-प्राणवान है, उससे कहीं अधिक है मंत्र साधक की प्राण-ऊर्जा प्रबल है। नमस्कार महामंत्र आकार में छोटा होता है परंतु उपलब्धियों का खजाना है। रात्रिकालीन कार्यक्रम में ‘जिज्ञासा- समाधान’ विषय पर कार्यक्रम का आयोजन हुआ।
ध्यान दिवस: पर्वाधिराज पर्युषण महापर्व का सातवाँ दिन प्रेक्षाध्यान दिवस के रूप में मनाया गया। शासनश्री साध्वी सत्यप्रभा जी ने ध्यान दिवस पर कहा कि जैन साधना में ध्यान का वही स्थान है, जो शरीर में गर्दन का है। ध्यान क्या हैµबाहर से भीतर की ओर लौटना, किसी एक बिंदु पर मन को स्थिर करना, निर्विचार अंतर्यात्रा, प्रत्येक क्षण जागरूक रहना, गतिमान चित्त की स्थिरता, भीतर की तटस्थता, जीवन की पवित्रता। ध्यान दिवस पर पूरी जानकारी दी। साध्वी ध्यानप्रभा जी ने प्रेक्षाध्यान के साथ उत्तराध्ययन सूत्र का वर्णन किया।
तेरापंथ सभा, जसोल द्वारा पर्युषण महापर्व में आठ व आठ से ऊपर सभी तपस्वी भाई-बहनों का साहित्य द्वारा सम्मान किया गया। कार्यक्रम का संचालन सभा मंत्री कांतिलाल ढेलड़िया ने किया। सामूहिक क्षमायाचना: क्षमा करने वाला ही सबसे महान होता है। क्षमादान करने से जहाँ दोनों पक्षों के संबंध मधुर होते हैं, वहीं दोनों के मन निर्मल होते हैं। ये बात शासनश्री साध्वी सत्यप्रभा जी ने सामूहिक क्षमायाचना (मैत्री दिवस) पर कहीं। उन्होंने कहा कि भूल होना प्रकृति है, अपनी भूल मान लेना संस्कृति है, सुधार कर लेना प्रगति है और क्षमा माँग लेना स्वीकृति है। मन में किसी के प्रति द्वेष या वैर भावना रखने से व्यक्ति का तन व मन दोनों खराब होते हैं इसलिए यदि किसी के मन में किसी के प्रति कोई द्वेष या वैर भावना है तो उसे क्षमा कर दूर करें।
साध्वीवृंद द्वारा सामूहिक गीतिका का संगान किया गया। मैत्री दिवस पर तेरापंथ सभा अध्यक्ष उषभराज तातेड़, ओसवाल समाज अध्यक्ष अशोक कुमार ढेलड़िया, तेरापंथ महासभा जोधपुर संभाग प्रभारी गौतम सालेचा, सिवांची-मालाणी तेरापंथ संस्थान अध्यक्ष डूंगरचंद सालेचा, ज्ञानशाला प्रभारी संपतराज चोपड़ा, तेयुप अध्यक्ष तरुण भंसाली सहित अनेक पदाधिकारीगणों ने विचार व्यक्त किए। श्रावक समाज की ओर से वरिष्ठ श्रावक शंकरलाल ढेलड़िया ने सामूहिक क्षमायाचना की। कार्यक्रम का संचालन सभा मंत्री कांतिलाल ढेलड़िया ने किया।