साध्वी धर्मयशा जी के प्रति आध्यात्मिक उद्गार
थे गण रो गौरव गायो जी-महावीर दरबार
थे गण रो गौरव गायो जी-महाश्रमण दरबार
थे कुल पर कलश चढ़ायो जी-धर्मयशाजी सुखकार।।
थे संयम शंख बजायो
अभिनव इतिहास बणायो
अर्हम् रो ध्वज फहरायो जी
महाश्रमण दरबार।।
बीदासर, गौरवशाली-गावै महिमा निराली
थे कल्पतरु लहरायो जी
महाश्रमण दरबार।।
नवकार मंत्र रो शरणो लेकर गुरुवर रो शरणो
थे जीवन नै चमकायो जी
धर्मयशा जी सुखकार।।
जल्दी कांई सुरपुर री
अंतिम सांसा जयपुर री
म्हानै विश्वास न आयो जी
धर्मयशा जी सुखकार।।
म्है देखीं थांरी समता, आत्मा में रहता रमता
भिक्षु गण नै दीपायो जी, धर्मयशा जी सुखकार।।
लय: महाप्राण गुरुदेव----