साँसों का इकतारा
(96)
दी जमाने को सदा अभिनव दिशाएँ
विहग प्राणों के तुम्हारे गीत गाएँ।
समर्पण का ले सहारा तुम चले थे
बीज से विस्तार पाकर तुम फले थे
सुगुरु का साया अमित वात्सल्य पाया
जिंदगी के सफर में नव मोड़ आया
द्वार उन्नति के खुले सहसा तुम्हारे
पूर्णता पाने लगे अरमान सारे
करिश्मा कैशोर्य का कैसे बताएँ।।
पूज्य कालू की मिली करुणा अनाविल
मिल गया मझधार में भी इष्ट साहिल
बन फरिश्ते रोशनी के जगमगाए
तिमिर तट पर चाँद-सूरज उतर आए
बाल मुनियों के बने शिक्षक विलक्षण
सजगता से किया उनका सफल हर क्षण
मुखर हैं कमनीय कीरत की कथाएँ।।
हर कदम उठता हुआ आगे निहारा
रहे देते सदा अबलों को सहारा
शक्तिशाली गण बने सपना तुम्हारा
शक्ति-संवर्धन किया इसको निखारा
लक्ष्य ऊँचा देखते सपने निरंतर
पार करते उलझनों का हर समंदर
खोज लेते शून्य में संभावनाएँ।।
आवरण अज्ञान का तुमने हटाया
सत्य के संधान का हर पथ दिखाया
चित्त चिन्मय बन कर अर्चा तुम्हारी
उजल जाए चेतना की लौ हमारी
प्रभाती गाते रहे जग को जगाने
शांति का पैगाम जन-जन को सुनाने
लिखी तुमने क्रांति की पावन ऋचाएँ।।
(97)
मौसम है अनुकूल आज तुम
जीभर गीत सुनाते जाओ।
अपने गीतों की गरिमा से
अभिनव रंग रचाते जाओ।।
सत्यशोध की गहन अभीप्सा
पैदा की कितनों के मन में
सृजन चेतना जागृत कर दी
अनायास तुमने जन-जन में
महासूर्य तुम इस धरती के
फैलाओ जग में उजियारा
बदलो मानदंड इस युग के
हर किश्ती को मिले किनारा
गूढ़ पहेली जो जीवन की
तुम उसको सुलझाते जाओ।।
संस्कारों की शुद्ध खाद से
देते हो सबको संपोषण
अनुशासन-वात्सल्य सुधा की
धार बहाते रहे विलक्षण
सफल बागवानी माली की
यह सुंदर उद्यान खिला है
खिलने वाले हर प्रसून को
सौरभ का अवदान मिला है
नए-नए सपने संजोकर
नूतन दृश्य दिखाते जाओ।।
चित्रकार के सम्मुख कितने
बिखरे रेखाचित्र अधूरे
कर में नई तूलिका लेकर
भरो रंग हो जाएँ पूरे
तुम जितना सौंदर्य भरोगे
उतना ही होगा आकर्षण
पंखों को उड़ान दो ऐसी
छू लें नभ को आज इसी क्षण
आध्यात्मिक आलोक बिछा
भीतर का तिमिर हटाते जाओ।।
नापें समंदर की गहराई
कब साहिल पे मिला खजाना
हर मुश्किल आसान बनेगी
रुकें कहीं क्यों खोज बहाना
हिमगिरि के उत्तुंग शिखर पर
चढ़ने की उत्कट अभिलाषा
करो शक्ति-संप्रेषण ऐसा
पूरी हो जाए अब आशा
मंजिल खड़ी पुकारे अब तुम
सीधी राह बताते जाओ।।
(क्रमशः)