मेरी बगिया तुमने सरसाई

मेरी बगिया तुमने सरसाई

स्मृतियाँ तेरी पल-पल आती, गुण गौरव गाथा भूल न पाती।
श्रद्धानत हो शीष झुकाती, मेरी बगिया तुमने सरसाई।।

चंदेरी की पुण्य धरा पर, बोकड़िया कुल में जन्म लिया,
17 वर्ष की लघुवय में, नश्वरता का बोध किया,
मात-पिता के शुभ संस्कारों से, जीवन बगिया को महकाई।।
मेरी बगिया---

गुरु तुलसी से संयम लेकर, तब जीवन को महकाया,
शासन गौरव साध्वी कस्तूंराजी, से तुमने शुभ संस्कार पाया,
क्या गुण गरिमा गाऊँ तेरी, ये कलियाँ विकसाई।।
मेरी बगिया---

अंतर्मुखता सहज सरलता, जीवन में देखी थी अद्भुत,
ज्ञान, ध्यान, स्वाध्याय जाप से, मन रहता था मजबूत,
सुदूर प्रांतों की यात्रा कर, तुमने गण की शान बढ़ाई।।
मेरी बगिया---

73 वर्षों का संयम जीवन, तप सौरभ से महका,
मंगलपाठ सुनाते ऐसा, संकट हरता हर नर का,
श्रद्धा है जन-जन के मन में, मंगलीक तेरी थी वरदाई।।
मेरी बगिया---

अंत समय में पंडित मरण कर, तुमने अपना नाम कमाया,
ओम भिक्षु-ओम भिक्षु जप करते-करते, तुमने अंतिम श्वास लिया,
महाश्रमण शासन में तुमने, जीवन नैया पार लगाई।।
मेरी बगिया---

सबसे छोटी साध्वी तेरी, वत्सलता आपने मुझ पर बरसाई,
तेरे सद्संस्कारों से, ‘चैतन्य’ उऋण नहीं हो पाई,
समय-समय पर सतिवर तेरी, शिक्षा भी वरदाई।।
मेरी बगिया---