अणुव्रत, प्रेक्षाध्यान और जीवन-विज्ञाान मानव जाति के लिए कल्याणकारी है: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

अणुव्रत, प्रेक्षाध्यान और जीवन-विज्ञाान मानव जाति के लिए कल्याणकारी है: आचार्यश्री महाश्रमण

ताल छापर, 30 सितंबर, 2022
महामनीषी आचार्यश्री महाश्रमण जी ने भगवती सूत्र आगम की विवेचना करते हुए फरमाया कि केवलज्ञानी साधु में अनंत ज्ञान, अनंत शक्ति और सर्वज्ञाता है। शक्ति की अभिव्यक्ति का माध्यम शरीर है। शरीर से वीर्य उत्पन्न होता है। वीर्य से योग, मन, वचन, काया की प्रवृत्ति होती है। चंचलता की स्थिति केवलज्ञानी में भी होती है। जिन आकाश प्रदेशों पर हाथ रखा था, पर चंचलता के कारण वापस वहीं हाथ रखना संभव नहीं है। यह पौद्गलिक चंचलता है। चंचलता मन, वचन और काया की हो सकती है। प्रेक्षाध्यान में चंचलता निरोध की बात बताई जाती है। प्रेक्षाध्यान में कायोत्सर्ग भी एक महत्त्वपूर्ण प्रयोग है। ध्यान में स्थिरता और शिथिलता रखना आवश्यक है। मुनि नथमलजी टमकोर (आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी) ने जयपुर में गुरुदेव तुलसी के सान्निध्य में प्रेक्षाध्यान का विधिवत शुभारंभ किया था प्रेक्षाध्यान के प्रारंभ की स्मृतियाँ पूज्यप्रवर ने विस्तार से फरमायी।
ध्यान के प्रयोग के लिए शरीर की स्थिरता और शरीर की शिथिलता ये दोनों पृष्ठभूमि होती हैं। जहाँ केवलज्ञानी के पास भी अपने शरीर की चंचलता को नियंत्रित करने की सक्षमता नहीं है, वहीं वर्तमान में आम आदमी प्रेक्षाध्यान के द्वारा शरीर की चंचलता को कम करने का प्रयास कर रहा है। अगर शरीर को स्थिर और शिथिल कर दें तो ध्यान अच्छा हो सकता है। प्रेक्षाध्यान का कार्य मुख्यतया जैन विश्व भारती देखती है। इसके अंतर्गत प्रेक्षा फाउंडेशन इसके कार्य को संभालती है। तेरापंथ के कुछ आयाम केवल तेरापंथ धर्मसंघ के लिए नहीं, बल्कि जन-जन के कल्याण के लिए हैं। अणुव्रत, प्रेक्षाध्यान और जीवन-विज्ञान प्रत्येक मानव जाति के लिए हैं।
प्रेक्षाध्यान तो मानों लोककल्याणकारी हैं। इससे जुड़े लोग जागरूकता के साथ इस कार्य में लगे रहें। पहले ज्यादा तकनीक का भी विकास हुआ है। इसे उपयोग में लाया जाए और प्रेक्षाध्यान का प्रयोग कराया जाए तो अच्छा हो सकता है। आचार्यश्री ने प्रेक्षाध्यान दिवस के संदर्भ में अपनी सन्मति शिक्षण कक्षा के विद्यार्थी मुनियों को अपने सामने पंक्तिबद्ध बैठने का आदेश देते हुए कुछ ध्यान के प्रयोग कराए तो उपस्थित चतुर्विध धर्मसंघ ने भी इन ध्यान के प्रयोगों को किया। साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने भी प्रेक्षाध्यान के संदर्भ में अपना उद्बोधन दिया। प्रेक्षाध्यान के आध्यात्मिक पर्यवेक्षक मुनि कुमार श्रमण जी ने अपनी अभिव्यक्ति दी। पूज्यप्रवर ने प्रवचन से पहले आध्यात्मिक अनुष्ठान करवाया। अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह के अंतर्गत पाँचवें दिन को नशामुक्ति दिवस के संदर्भ में आचार्यश्री ने प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि हमने अहिंसा यात्रा के दौरान सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति के भी प्रचार-प्रसार पर बल दिया था। आज भी लोगों को यदा-कदा नशामुक्ति का संकल्प भी कराया जाता है। आदमी को अपने जीवन में नशे से बचते हुए संयमपूर्ण जीवनशैली को अपनाने का प्रयास करना चाहिए। राजनैतिक पार्टियों को भी चुनाव आदि में शराब बाँटने और पिलाने से बचना चाहिए तथा लोगों को भी ऐसी चीजों को ग्रहण करने से बचने का प्रयास करना चाहिए।
साध्वीवर्या सम्बुद्धयशा जी ने कहा कि अणुव्रत और प्रेक्षाध्यान ये ऐसे ही दो उपक्रम हैं, जो व्यक्ति के जीवन को सुरम्य बनाते हैं। प्रेक्षाध्यान से हम अपने भावों पर कंट्रोल कर सकते हैं। अणुव्रत के माध्यम से हमारा आचरण सुंदर बन सकता है। नशामुक्त जीवन हो सकता है। शासनश्री साध्वी रतनश्री जी की स्मृति सभा कार्यक्रम में साध्वी रतनश्री जी की स्मृति सभा का आयोजन हुआ। इसमें आचार्यश्री ने उनकी संक्षिप्त जीवन परिचय प्रस्तुत करते हुए उनकी आत्मा के प्रति आध्यात्मिक मंगलकामना करते हुए चार लोगस्स के ध्यान की प्रेरणा प्रदान की तो आचार्यश्री के साथ चतुर्विध धर्मसंघ ने भी उनकी आत्मा के उत्तरोत्तर गति के लिए चार लोगस्स का ध्यान किया। मुख्यमुनि महावीर कुमार जी तथा साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने उनके संदर्भ में अपने विचार व्यक्त किए। सुजानगढ़ नगर परिषद की नेता प्रतिपक्ष जयश्री दाधीच ने अपने भाव अभिव्यक्त किए। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।