पर्युषण महापर्व पर विविध कार्यक्रम
बैंगलोर।
मुनि अर्हत कुमार जी के सान्निध्य में तेयुप के तत्त्वावधान में पर्युषण काल में सातों ही दिन अलग-अलग विषयों पर रात्रिकालीन कार्यक्रम आयोजित हुए। प्रथम दिन भज मन भिक्खु स्याम कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मुनि भरत कुमार जी ने कहा कि तेरापंथ के आद्य प्रवर्तक आचार्य भिक्षु श्रमण असाधारण प्रतिभा, लौहपुरुष के साथ ही मेधा सूक्ष्मग्राही के धनी तो थे ही वे संयम के सजग प्रहरी थे। आचार्य भिक्षु सत्य के महान उपासक थे। आचार्य भिक्षु सदैव ही शिक्षा एवं संस्कारों की वकालत करते रहे।
द्वितीय दिवस ‘मत कीजिए ऐसे काम, जाने पड़े नरक के धाम’ विषय पर उद्बोधन दिया। नरक में जाने के कारणों पर विश्लेषण दिया। तृतीय दिवस पर सुपात्र दान के महत्त्व पर प्रकाश डाला। एक श्रावक भी दान के द्वारा तीर्थंकर नाम गौत्र का बंधन कर सकता है। सभी को सुपात्र दान की भावना रखनी चाहिए। चतुर्थ दिवस पर तोड़े संसार का पिंजरा पर वक्तव्य देते हुए कहा कि संसार में दो प्रकार के व्यक्ति होते हैंµएक आत्मस्थ एवं दूसरे शरीरस्थ। आत्मस्थ व्यक्ति का चिंतन रहता है कि यह दुर्लभ मानव जीवन प्राप्त हुआ है, इस नश्वर शरीर से आत्मज्ञान प्राप्त करूँ, क्या पता कौन-से समय में प्राण पखेरू उड़ जाएँ। इसलिए जितना लाभ उठा सकूँ, उठा लूँ।
पंचम दिवस पर मुनि अर्हत कुमार जी का साक्षात्कार हुआ, जिसमें श्रावकों ने अपनी अनेक जिज्ञासाओं का समाधान किया। षष्ठम् दिवस पर ‘हम कहाँ से आए और कहाँ जाएँगे’ इस विषय पर सुंदर विवेचन किया। मुनिश्री ने कहा कि हम चारों गतियों से आए हैं और मोक्ष तक जाना है। चारों गतियों में जाने के कारणों से सविस्तार समझाया। सप्तम् दिवस पर स्वर्णिम गीतों की सभी श्रावक-श्राविकाओं द्वारा प्रस्तुतियाँ की गई। मुनि जयदीप कुमार जी द्वारा सातों ही दिन गीतिका की प्रस्तुति दी गई।