आत्मशोधन का अलौकिक पर्व है - पर्युषण महापर्व

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आत्मशोधन का अलौकिक पर्व है - पर्युषण महापर्व

सुनाम।
पर्युषण पर्वाधिराज का प्रथम दिवस खाद्य संयम दिवस विषय पर उग्र बिहारी तपोमूर्ति मुनि कमल कुमार जी ने कहा कि संसार में समय-समय पर कई प्रकार के पर्व मनाए जाते हैं। पर्व मनाने का अर्थ होता है-संस्कृति और संस्कारों की सुरक्षा करना। जैनधर्म में भी कई पर्व मनाए जाते हैं, परंतु महापर्व के नाम से तो पर्वाधिराज पर्व पर्युषण ही मनाया जाता है। खाद्य संयम दिवस पर मुनिश्री ने कहा कि संसारी प्राणी भोजन-पानी बिना नहीं रह सकते, परंतु व्यक्ति में खाद्य और अखाद्य का विवेक होना चाहिए और अखाद्य पदार्थों का वर्जन किए बिना स्वास्थ्य स्वस्थ नहीं रहता और स्वस्थ व्यक्ति आत्म साधना तो दूर अपनी आजीविका भी सही ढंग से नहीं चल पाती।
स्वाध्याय दिवस पर मुनिश्री ने कहा कि स्वाध्याय हमारी एकाग्रता को बढ़ाने वाला और ज्ञान वृद्धि का सक्षम सबल उपाय है-स्वाध्याय के बिना प्राप्त ज्ञान को सुरक्षित रखना और जीवन विकास के सूत्रों की प्राप्ति अति कठिन है। स्वाध्याय को निर्जरा के 12 भेवों में आभ्यंतर तप माना गया है। स्वाध्याय के द्वारा आत्मा को निर्मल बनाया जा सकता है। सामायिक दिवस पर अभिनव सामायिक कार्यक्रम में मुनिश्री ने कहा कि जैन समाज में सामायिक का बड़ा महत्त्व है, चाहे दिगंबर हो या श्वेतांबर अपनी-अपनी विधि से सब सामायिक करते हैं, सामायिक एक तप है-सुरक्षा कवच है। श्रावक का नवमा व्रत है सामायिक। अगर अभिनव सामायिक का नियमित क्रम बनाया जाए तो ज्ञान वृद्धि का क्रम भी व्यवस्थित बन सकता है यह परम पूज्य गुरुदेव तुलसी का अनुपम आयाम है।
वाणी संयम दिवस पर कहा कि इस कलिकाल में तीर्थंकर तो नहीं हैं परंतु तीर्थंकरों की वाणी हमारे विकास में साधक बनती है। भगवान ने समिति गुप्तियों की उत्तम प्रेरणा देकर प्राणी मात्र के कल्याण का पथ प्रशस्त कर दिया है। व्यक्ति अगर वचन गुप्ति और भाषा समिति का सही उपयोग करेे तो आत्मस्थ बनकर परिवार, समाज को भी स्वस्थ बना सकता है। अणुव्रत दिवस पर मुनिश्री ने कहा कि भगवान महावीर ने दो प्रकार के धर्म की व्याख्या की है-अणुव्रत और महाव्रत अणुव्रतों का पालन करने वाले श्रावक-श्राविकाएँ कहलाते हैं। महाव्रतों का पालन करने वाले साधु-साध्वी कहलाते हैं। मुनिश्री ने कहा कि आचार्य भिक्षु ने इसे छोटी माला और बड़ी माला की उपमा दी। माला तो आखिर माला है चाहे छोटी हो या बड़ी कैसे भी क्यों ना हो उसे भी रत्नों की माला बताया है। हम अणुव्रतों को छोटा न समझें। अणुव्रतों का भी शुद्ध पालन करके श्रावक नर्क और तिर्यंच गति से निवृत्त हो सकता है। मुनिश्री ने विस्तार से 12 व्रतों की व्याख्या की।
जप दिवस पर मुनिश्री ने बताया कि प्रत्येक मंत्र अपने आपमें शक्तिशाली होता है, परंतु उसका जप विधिपूर्वक समयबद्ध किया जाए। मुनिश्री ने जयाचार्य युग की आचार्यश्री तुलसी युग की कई घटनाओं का वर्णन करके लोगों को जप की विशेष प्रेरणा दी। ध्यान दिवस पर मुनिश्री ने कहा कि ध्यान धर्म का प्राणतत्त्व है, जितने भी तीर्थंकर हुए हैं उन्होंने ध्यान के द्वारा ही केवल ज्ञान को प्राप्त किया था। हमें ध्यान का अभ्यास बढ़ाना चाहिए, जिससे हम युगीन समस्या का समुचित समाधान कर सकें। हमारी प्रेक्षाध्यान पद्धति कितनी सरल और सहज है, हमें इसको गहराई से समझकर औरों को भी समझाने का प्रयास करना चाहिए।
संवत्सरी महापर्व पर मुनि कमल कुमार जी ने कार्यक्रम का प्रारंभ करते हुए कहा कि जैन समाज का सबसे बड़ा पर्व संवतसरी पर्व है, यह पर्व आध्यात्मिक पर्व है। अंतर दर्शन का पर्व है, आत्मशोधन का पर्व है। कार्यक्रम के प्रारंभ में मुनि नमि कुमार जी ने मेघ कुमार जी का वृत्तांत सुनाते हुए सबको सहिष्णु बनने की प्रेरणा दी। मुनि कमल कुमार जी ने संवत्सरी पर्व पर गीत का संगान किया।
साधु-साध्वियों के जीवन-वृत्त का विस्तार से वर्णन किया। कार्यक्रम में पातड़ा, बुढलाड़ा, लोंगोवाल शेरों के भाई-बहनों ने भाग लेकर महापर्व की आराधना में सामायिक पौषध यथा अनुकूल किए। कार्यक्रम के अंत में मुनि अमन कुमार जी ने गज सुकुमाल मुनि का वृत्तांत सुनाया। अखंड जप नमस्कार महामंत्र का चला। सायं सामूहिक प्रतिक्रमण का क्रम व्यवस्थित रहा। प्रतिक्रमण के पश्चात पंजाब प्रांतीय सभा के अध्यक्ष केवल कृष्ण गोयल सभा के अध्यक्ष रामस्वरूप जैन, तेयुप के अध्यक्ष सुमित जैन, महिला मंडल की अध्यक्षा पुष्पा जैन ने सभी से क्षमायाचना की।
क्षमायाचना के अवसर पर सबसे पहले मुनित्रय ने गुरुदेव को करते हुए गुरुदेव, मुख्य मुनि महावीर कुमार जी, साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी, साध्वीवर्या सम्बुद्धयशा जी सहित समस्त साधु-साध्वियों से निर्धारित शब्दावली के उच्चारण करते हुए क्षमायाचना की। तत्पश्चात मुनि कमल कुमार जी ने अपने सहयोगी मुनि अमन कुमार जी, मुनि नमि कुमार जी से क्षमायाचना की। तत्पश्चात समस्त पंजाब में विराजित साधु-साध्वियों से क्षमायाचना करते हुए समस्त श्रावक-श्राविकाओं से क्षमायाचना की।