माँ ममता का महाकाव्य
माधावरम्, चेन्नई।
माँ के चरणों में स्वर्ग है। उनके पैरों के नीचे की मिट्टी स्वर्ग की मिट्टी के समान है। माँ एक पूर्ण शब्द है, अकट्य गं्रथ है, ममता का महाकाव्य है। निम्न विचार तेरापंथी ट्रस्ट द्वारा आयोजित ‘माँ की ममता, माँ की महिमा’ सेमिनार में मुनि सुधाकर कुमार जी ने व्यक्त किए। मुख्य अतिथि मद्रास हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश मुनिश्वर भंडारी की विशेष उपस्थिति में मुनिश्री ने कहा कि माँ ममता की मूरत है, समता की सूरत है, त्याग की प्रतिमूर्ति है। माँ त्यागमयी, दयामयी, क्षमामयी, सत्यमयी और स्नेहमयी हाती है। मुख्य अतिथि मद्रा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश मुनिश्वर भंडारी ने कहा कि महिला परिवार में सूत्रधार के रूप में होती है, परिवार को एक माला में पिरोकर रखती है, एक-दूसरे के मन-मुटाव को मिटाने वाली होती है। वह माँ, बहन, भाभी, पत्नी अनेक रूपों में होती है। अपने कर्तव्य का सम्यग् नियोजन करती है। उन्होंने कहा कि मेरा समाज की बहनों से विशेष निवेदन है कि वे परिवार को जोड़ने वाली बनें। अपने संस्कार और संस्कृति का सही उपयोग कर एक उदाहरण तुल्य बनें।
मुनि नरेश कुमार जी ने कहा कि व्यक्ति में धार्मिकता, प्रमाणिकता, ईमानदारी उनके जीवन व्यवहार में झलके। विशिष्ट अतिथि राज्य अल्पसंख्यक आयोग सदस्य प्यारेलाल पितलिया, स्वरूपचंद दांती ने अपने विचार रखे। माधावरम् ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी घीसूलाल बोहरा ने स्वागत किया। महिलाओं द्वारा मंगलाचरण किया गया। मूलचंद रांका ने मुख्य न्यायाधीश का परिचय दिया। धन्यवाद ज्ञापन हर्षा परमार तथा संचालन प्रेक्षिता संकलेचा एवं सुरेश रांका ने किया। इस अवसर पर संघीय संस्थाओं के गणमान्य व्यक्तियों के साथ जैनेतर समाज के व्यक्ति भी सहयोगी बने।