तेरापंथ धर्मसंघ में आचार्य ही उपाध्याय का दायित्व निर्वहन करते हैं: आचार्यश्री महाश्रमण
ताल छापर, 4 अक्टूबर, 2022
आचार की देशना करने वाले आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल अमृत देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि भगवती सूत्र में प्रश्न पूछा गया कि भंते! आचार्य और उपाध्याय अपने विषय में अग्लान भाव से गण का संग्रहण करते हैं। वे कितने भव में सिद्धत्व को प्राप्त करते हैं? या सब दुखों का अंत करते हैं। एक ही व्यक्ति आचार्य और उपाध्याय का दायित्व ओढ़े हुए हो सकता है। हमारे धर्मसंघ में तो भिक्षु स्वामी से लेकर आज तक उपाध्याय का पद किसी को नहीं दिया गया है। हमारे धर्मसंघ में उपाध्यायात्व आचार्य में ही निहित हो सकता है। आचार्य वही बन सकता है, जिसको दीक्षा लिए हुए कम से कम पाँच वर्ष हो गए हों और जिसको दीक्षा लिए हुए कम से कम तीन वर्ष हो गए हों, वह उपाध्याय बन सकता है।
मोक्ष जाने के तीन विकल्प हैं। कोई-कोई आचार्य/उपाध्याय उसी जन्म के बाद मोक्ष में जा सकता है। कोई दूसरे भव में सिद्ध हो जाते हैं अथवा तीसरे भव में तो मोक्ष जाते ही जाते हैं, उसका अतिक्रमण नहीं करते हैं। आचार्य, उपाध्याय के मोक्ष में जाने के ये तीन विकल्प हैं। व्याख्या में आचार्य-उपाध्याय के ज्यादा से ज्यादा पाँच भव बताए गए हैं। आचार्य, उपाध्याय के मोक्ष में जाने के ये तीन विकल्प हैं। व्याख्या में आचार्य-उपाध्याय के ज्यादा से ज्यादा पाँच भव बताए गए हैं।
आचार्य 36 गुणों के धारक होते हैं। उपाध्याय 25 गुणों के धारक होते हैं। आचार्य और उपाध्याय दोनों ही पद एक ही व्यक्ति निर्वहन करते हैं, तो महत्त्वपूर्ण बात है। परम पूज्य आचार्य भिक्षु हमारे प्रथम आचार्य थे। उनमें कितना विशेष ज्ञान था। अतीत के दस आचार्य हमारे लिए तो परम पूजनीय हैं। आचार्य एक बहुत उच्च स्थान पर वे आसीन होते हैं। हमारे धर्मसंघ में तो आचार्य सर्वोच्च स्थान पर होते हैं। जितने साधु-साध्वियाँ आचार्य की निश्रा में हैं, आचार्य उनको चित्त समाधि देने का प्रयास करे। उनको सहयोग दे। आचार्य तुलसी को हमने देखा है, कितना श्रम, कितना सहयोग प्रदान किया है। मुझे भी कितना आगे बढ़ाया। आचार्य-उपाध्याय के इस तरह निर्जरा होने से वे पाँच भवों में मोक्ष जा सकते हैं। पूज्यप्रवर ने कालू यशोविलास का विवेचन किया। प्रवचन पूर्व से आध्यात्मिक अनुष्ठान करवाया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।