बच्चों में ज्ञाान और आचार दोनों के विकास से होगा अच्छी पीढ़ी का निर्माण: आचार्यश्री महाश्रमण
वर्धमान इंटरनेशनल स्कूल जयपुर को मिला जय तुलसी विद्या पुरस्कार
ताल छापर, 7 अक्टूबर, 2022
अनंत आस्था के आस्थान आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि भगवती सूत्र में कहा गया है कि दुनिया में दो प्रकार के पदार्थ होते हैं-मूर्त और अमूर्त। मूर्त पदार्थों में कईयों को तो इंद्रिय विषयों से देखा जा सकता है। हर मूर्त पदार्थ आँखों से देख लिया जाए वो तो कठिन है, जैसे परमाणु। आँखों से जो देखे जाएँगे वो तो मूर्त ही होंगे पर सारे मूर्त पदार्थ आँखों से देखे ही जा सकेंगे यह नियम बनना मुश्किल है। वहाँ हेतु और तर्क का उपयोग हो सकता है। अमूर्त है, उनको आँखों से नहीं देखा जा सकता। छः द्रव्यों में एक पुद्गलास्तिकाय ही मूर्त है, बाकी पाँच अमूर्त होते हैं। अमूर्त पदार्थ का साक्षात्कार अतीन्द्रिय ज्ञान से संभव हो सकता है।
आँखों से जो देखे जाएँगे वो तो मूर्त ही होंगे पर सारे मूर्त पदार्थ आँखों से देखे ही जा सकेंगे यह नियम बनना मुश्किल है। वहाँ हेतु और तर्क का उपयोग हो सकता है। अमूर्त है, उनको आँखों से नहीं देखा जा सकता। छः द्रव्यों में एक पुद्गलास्तिकाय ही मूर्त है, बाकी पाँच अमूर्त होते हैं। अमूर्त पदार्थ का साक्षात्कार अतीन्द्रिय ज्ञान से संभव हो सकता है। कुछ पदार्थ ऐसे हैं, जो हेतुगम्य हैं। कुछ पदार्थ अहेतुगम्य हैं। प्रत्यक्ष को प्रमाण क्या? जहाँ प्रत्यक्ष नहीं है वहाँ हेतु का उपयोग किया जा सकता है। प्रत्यक्ष-आर्षवाणी अहेतुगम्य है। आत्मा अमूर्त है, पर हेतु से उसके बारे में जाना जा सकता है। निश्चय में तो सर्वज्ञ ही जान सकते हैं। नास्तिकवाद का चारवाक दर्शन तो वर्तमान को ही मानता है। आस्तिकवाद के अनुसार इस जीवन के बाद भी हमारा अस्तित्व रहेगा। वर्तमान जीवन तो थोड़ा है। आगे का क्या पता, पर आगे पुनर्जन्म हो भी सकता है। पुनर्जन्म है या नहीं पर पाप करने में क्या लाभ हुआ। अच्छा जीवन जीएँ, इसमें दोनों ओर लाभ है। हम आत्मवाद के संदर्भ में समझें कि पुनर्जन्म या परलोक के बारे में संदेह होने पर भी गलत काम को छोड़ दो, अच्छे काम करो। आत्मा या पुनर्जन्म है ही नहीं, इसका क्या आधार है?
धर्मास्तिकाय-अधर्मास्तिकाय अमूर्त है, पर वो है तो ठीक, न है तो ठीक। हमारा तो मूल संबंध आत्मा से है। इससे हमारा हित-अहित का संबंध है। आत्मा है, पुनर्जन्म है, यह मानकर ही चलना चाहिए। इसी अनुसार हमें अपनी जीवनशैली सुनिश्चित करनी चाहिए। पूज्यप्रवर ने कालूयशोविलास का सुंदर विवेचन किया। पूज्यप्रवर ने तपस्या के प्रत्याख्यान करवाए।
जैन विश्व भारती द्वारा जय तुलसी विद्या पुरस्कार समारोह का आयोजन पूज्यप्रवर की सन्निधि में हुआ। 2021 का पुरस्कार श्री वर्धमान इंटरनेशनल स्कूल, जयपुर को प्रदान किया गया। विद्यालय की ओर से कमल सेठिया ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। छापर सभाध्यक्ष विजय सेठिया जो ट्रस्ट परिवार से भी संबंधित हैं, अपनी भावना अभिव्यक्त की। यह पुरस्कार चौथमल सेठिया परिवार, छापर द्वारा प्रदान किया जाता है।
पूज्यप्रवर ने आशीर्वचन फरमाया कि विद्या का हमारे जीवन में बहुत महत्त्व होता है। विद्यालय विद्या आदान का महत्त्वपूर्ण साधन भी बनता है। विद्यालयों में अनेक विषयों के साथ संस्कार विद्या, अध्यात्म विद्या का क्रम भी चलते रहना चाहिए। जीवन-विज्ञान से अच्छे संस्कार दिए जा सकते हैं। ज्ञान और आचार दोनों अच्छे होते हैं, तो अच्छी पीढ़ी का निर्माण हो सकता है। वर्धमान इंटरनेशनल स्कूल, वर्धमान बनते हुए विकास का प्रतीक बनें। स्कूल नैतिक मूल्यों के उन्नयन में, विद्यार्थियों में संस्कार निर्माण करने में आगे बढ़ता रहे, सजग भी रहे। जैविभा इस समारोह की आयोजक है, खुद बड़ी संस्था है। शिक्षा से जुड़ा संस्थान है, चौथमल सेठिया ट्रस्ट परिवार भी धार्मिक, आध्यात्मिक सेवा देता रहे। परिवार में धार्मिक संस्कार पीढ़ी-दर-पीढ़ी आते रहें। जैविभा द्वारा ‘रोशनी का अध्याय’ जो साध्वी सुमनश्री जी की कृति है, पूज्यप्रवर के करकमलों में अर्पित की गई। पूज्यप्रवर ने आशीर्वचन फरमाया। सेठिया परिवार द्वारा गीत की प्रस्तुति हुई। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।