व्यक्ति शरद चंद्र की तरह शुक्लता की ओर अभिमुख होने का प्रयास करे: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

व्यक्ति शरद चंद्र की तरह शुक्लता की ओर अभिमुख होने का प्रयास करे: आचार्यश्री महाश्रमण

ताल छापर, 9 अक्टूबर, 2022
साधना के श्लाका पुरुष आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल प्रेरणा प्रदान करते हुए फरमाया कि आज आश्विन पूर्णिमा है। चातुर्मास का एक माह शेष। शरद पूर्णिमा का चंद्रमा और उसकी चाँदनी। चाँदनी का भी अपना महत्त्व है। सृष्टि की व्यवस्था है, एक कृष्ण पक्ष आता है, फिर शुक्ल पक्ष आता है। इस सृष्टि की व्यवस्था को हम अपने जीवन में भी कभी-कभी अनुभव कर सकते हैं। प्रतिकूलता-अनुकूलता की स्थिति जीवन में आती-जाती रहती है। एक महीने में कृष्ण पक्ष भी है और शुक्ल पक्ष भी है। चाँदनी शुक्ल पक्ष में होती है, तो कृष्ण पक्ष में भी होती है। पर यश पुण्य से मिलता है। अभिमुखता अंधेरे की ओर है, तो कृष्ण पक्ष है। अभिमुखता शुक्लता की ओर है, तो शुक्ल पक्ष है। कृष्ण पक्ष में अंधेरा बढ़ता जाता है। शुक्ल पक्ष में चाँदनी बढ़ती जाती है। हमारी अभिमुखता किस तरफ है, यह चिंतन का विषय है।
जीवन में भय का कारण हिंसा और असत्य वचन है। अहिंसक के लिए अभय होना भी आवश्यक है। हमारी अभिमुखता ईमानदारी की ओर हो। लेश्या कृष्ण भी होती है और शुक्ल भी होती है। कृष्ण लेश्या के परिणाम हिंसा आदि हैं। शुक्ल लेश्या के परिणाम वीतरागता के हैं। मैं शुक्ल लेश्या से संपन्न बनूँ। हमारे जीवन में चाँदनी रहे, चाँदनी बढ़े। अर्हत् शरद चंद्र सम श्वेत होते हैं। भक्तांबर में तो कहा गया है कि अर्हत् तो चंद्रमा से भी ज्यादा श्वेत है। उनमें वीतराग भाव है। हम चंद्रमा की तरह शुक्ल लेश्या की तरफ प्रयाण करें। हमारे परिणामों में निर्मलता रहे। प्रेक्षाध्यान के चौथे चरण में पूर्णिमा के चंद्रमा की तरह श्वेत रंग का ध्यान करवाया जाता है। श्वेत रंग शीतलता का प्रतीक है। इससे कषायमंद पड़ते हैं। चंदन शीतल है, पर चंद्रमा चंदन से भी शीतल है। हम शरद चंद्र की तरह श्वेत की दिशा में आगे बढ़ने का प्रयास करें।
पूज्यप्रवर ने कालू यशोविलास का सुंदर विवेचन किया। किरण देवी तातेड़, बीकानेर ने 34 की तपस्या के प्रत्याख्यान ग्रहण किए। साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि असत्यभाषी व्यक्ति कभी भय से मुक्त नहीं हो सकता। जो भयग्रस्त व्यक्ति है, वो व्यक्ति कभी अपने जीवन में सुख का अनुभव नहीं कर सकता। हमें भय की ग्रंथि को संतुलित रख कार्य करना है। भय से डरने वाला विकास कर सकता है। रचनात्मक भय निर्माण की ओर ले जाने वाला होता है। अभय व्यक्ति ही आगे बढ़ सकता है। साध्वीवर्या सम्बुद्धयशा जी ने कहा कि हमें कषायों से बचने का प्रयास करना चाहिए। इससे हमारा सम्यक्त्व पुष्ट होता है। मंद कषाय वाला व्यक्ति अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थितियों में सम रह सकता है। मन को संतुलित रख सकता है। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।