स्वयं को जानने का पर्व है पर्युषण महापर्व
सिकंदराबाद।
तेरापंथी सभा के तत्त्वावधान में साध्वी त्रिशला कुमारी जी के सान्निध्य में पर्वाधिराज पर्युषण महापर्व का शुभारंभ हुआ। कार्यक्रम का शुभारंभ सरदारशहर, मोमासर, आडसर, गंगानगर, पीलीबंगा आदि क्षेत्रों के भाई-बहनों ने नमस्कार महामंत्र के अखंड जाप से हुआ। साध्वी संपतिप्रभा जी ने क्षमा धर्म की महत्त्वता को उजागर किया। खाद्य संयम पर साध्वी रश्मिप्रभा जी ने विचारों की प्रस्तुति दी। साध्वी कल्पयशा जी ने महासती दीपा जी के जीवन को उजागर किया। साध्वी त्रिशला कुमारी जी ने कहा कि हमारी भारतीय संस्कृति पर्व और त्योहारों की संस्कृति है। हर धर्म में अपने-अपने पर्वों का महत्त्व है।
पर्युषण महापर्व जप, तप, ज्ञान, स्वाध्याय आदि करने का उत्तम अवसर है। लक्ष्मीपत बैद ने सभा की तरफ से आवश्यक सूचनाएँ दी। कार्यक्रम का संचालन साध्वी कल्पयशा जी ने किया। स्वाध्याय दिवस का शुभारंभ मेवाड़ और मारवाड़ के श्रद्धालु श्रावक- श्राविकाओं द्वारा मंगलाचरण से हुआ। साध्वी त्रिशला कुमारी जी ने कहा कि हम सब यात्री हैं, यात्रा कर रहे हैं, लेकिन हमारी जो जन्म-मरण की यात्रा चल रही है अनंत काल से हम इस यात्रा में यात्रातीत हैं, इससे पार पहुँचने का साधना क्या है। इस संसार-रूपी समुद्र से पार पहुँचने की नौका है सम्यक् दर्शन। सम्यक्त्व एक ऐसा प्लेन है जो अर्थ पुद्गल परावर्तन के भीतर-भीतर हमें मोक्ष तक पहुँचा देगा।
साध्वी संपत्तिप्रभा जी ने दस धर्मों के अंतर्गत मुक्ति धर्म का मार्मिक विवेचन किया। साध्वी रश्मिप्रभा जी ने स्वाध्याय हमारे लिए क्यों जरूरी है, इस विषय पर विचारों की प्रस्तुति दी। साध्वी कल्पयशा जी ने कहा कि इतिहास में शक्ति की पूजा होती है, शक्ति के अनेक स्त्रोत हैं। उसमें सबसे बड़ा स्त्रोत है-श्रद्धा की शक्ति, अध्यात्म की शक्ति। कार्यक्रम का संचालन कल्पयशा जी ने किया। साध्वीश्री जी के सान्निध्य में रात्रिकालीन प्रतिक्रमण के पश्चात सामूहिक पैंसठिया छंद की साधना का कार्यक्रम रहा।
सामायिक दिवस के उपलक्ष्य में अभातेयुप के निर्देशन में तेयुप के तत्त्वावधान में ‘अभिनव सामायिक’ का आयोजन किया गया। साध्वी संपत्तिप्रभा जी ने त्रिपदी वंदना, ध्यान, योग आदि के प्रयोग करवाए। कार्यक्रम का शुभारंभ बीकानेर, गंगाशहर, चोखला के भाई-बहनों के मंगल संगान से हुआ। तेयुप के अध्यक्ष वीरेंद्र घोषल ने सभी का स्वागत किया। साध्वी रश्मिप्रभा जी ने सामायिक की महत्ता को उजागर किया। साध्वी कल्पयशा जी ने पाँच तिथियों का महत्त्व बताया। साध्वी त्रिशला कुमारी जी ने उद्गार व्यक्त किए।
वाणी संयम दिवस का शुभारंभ बीदासर, राजगढ़, तारानगर आदि क्षेत्रों की बहनों और भाईयों के मंगलाचरण से हुआ। साध्वी संप्रत्तिप्रभा जी ने दस धर्मों के अंतर्गत ‘आर्जव’ धर्म का विवेचन किया। साध्वी रश्मिप्रभा जी ने वाणी संयम दिवस पर क्यों, कैसे? कब बोलना चाहिए इस विषय पर अपनी अभिव्यक्ति दी। साध्वी कल्पयशा जी ने गौरवशाली इतिहास के सुनहरे पृष्ठों को उजागर किया। साध्वी त्रिशला कुमारी जी ने भगवान महावीर के जीवन-वृत्त को उजागर किया। साध्वीश्री जी ने 3, 4, 5 पंचोला करने वाले भाई-बहनों को प्रत्याख्यान करवाया।
अणुव्रत चेतना दिवस का शुभारंभ राजलदेसर, रतनगढ़, श्रीडूंगरगढ़, नोहर, भादरा, सिरसा व लूनियावास के भाई-बहनों के मंगलाचरण से हुआ। साध्वी संपत्तिप्रभा जी, साध्वी रश्मिप्रभा जी ने विचार व्यक्त किए। साध्वी कल्पयशा जी ने इतिहास की रोचक घटनाओं का उल्लेख किया। साध्वी त्रिशला कुमारी जी ने अणुव्रत चेतना दिवस पर कहा कि आचार्यश्री तुलसी की वर्तमान युग की युगीन समस्याओं से निजात पाने की समायोचित देन अणुव्रत है। तेरांपथी सभा की तरफ से लक्ष्मीपत बैद ने सूचनाएँ प्रेषित की। राजा राजेश्वरी गार्डन के मालिक रमेश की पत्नी और उनके सुपुत्र का तेरापंथी सभा अध्यक्ष बाबूलाल बैद ने व्यवस्था हेतु सम्मान किया।
जप दिवस का शुभारंभ सुजानगढ़, छापर, चाड़वास, चुरू, टमकोर, पड़िहारा के भाई-बहनों के मंगलाचरण से हुआ। साध्वी संपत्तिप्रभा जी ने समसामायिक विषय पर प्रस्तुति दी। साध्वी रश्मिप्रभा जी ने कहा कि मंत्र एक औषधि है जो न केवल हमारे तन को स्वस्थ करती है, बल्कि हमारे मन और भावों को भी स्वस्थ बनाती है। साध्वी त्रिशला कुमारी जी ने कहा कि एक धार्मिक व्यक्ति की पहचान क्या है? क्या सामायिक करने वाला धार्मिक होता है? जप करने वाला धार्मिक होता है? साध्वीश्री जी ने कहा कि जितनी भी बाह्य क्रिया है वे उपासना की विधि है। एक धार्मिक व्यक्ति की मूल पहचान होती है कि उसके भीतर कितनी करुणा है, दया-रहम की भावना कितनी है।
श्री जैन सेवा संघ के अध्यक्ष गौतम गुगुलिया ने सेवाओं का उल्लेख किया। कार्यक्रम का संचालन साध्वी कल्पयशा जी ने किया।
ध्यान दिवस का शुभारंभ लाडनूं, कालू, लूणकरणसर, हनुमानगढ़, किशनगढ़ आदि क्षेत्रों के भाई-बहनों के मंगलाचरण से हुआ। साध्वी संप्रत्तिप्रभा जी, साध्वी रश्मिप्रभा जी ने विचार व्यक्त किए। साध्वीश्री जी ने कहा कि यदि आप तनाव, टेंशन, डिप्रेशन से मुक्ति चाहते हैं, यदि आप अपनी कार्य क्षमता को बढ़ाना चाहते हैं, यदि आप सुख-शांति का जीवन चाहते हैं तो एक सरल वैज्ञानिक हल है-ध्यान। साध्वी कल्पयशा जी ने लाडनूं के गौरवशाली इतिहास के पृष्ठों को उजागर किया। सिकंदराबाद के अध्यक्ष बाबूलाल बैद ने अपने विचार व्यक्त किए। साध्वी रश्मिप्रभा जी ने गीतिका प्रस्तुत की।
संवत्सरी महापर्व का शुभारंभ तेरापंथी सभा के पदाधिकारियों के मंगलाचरण से हुआ। इस अवसर पर साध्वी कल्पयशा जी ने भव परंपरा से गुजरे भगवान महावीर के जीवन प्रसंगों, बाल-लीलाओं, साधनाकाल और उपसर्गों की कहानी को रोचक ढंग से सुनाया। साध्वी त्रिशला कुमारी जी ने संवत्सरी महापर्व के महत्त्व एवं इसे मनाने की परंपरा आदि तथ्यों के बारे में विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने कहा संवत्सरी मैत्री का पर्व है। एक-दूसरे की भूलों को भूलकर यह गले मिलने का पर्व है।
इस अवसर पर साध्वी रश्मिकुमार जी ने शालीभद्र के जीवन चरित्र का उल्लेख किया। साध्वी संप्रत्तिप्रभा जी ने ध्यान करने से होने वाले लाभों पर प्रकाश डाला। संचालन साध्वी कल्पयशा जी ने किया। क्षमायाचना महापर्व का शुभारंभ महिला मंडल के संगान से हुआ। संस्थाओं की तरफ से तेयुप के अध्यक्ष वीरेंद्र घोषल, टीपीएफ राष्ट्रीय सहमंत्री ऋषभ दुगड़, अणुव्रत समिति के अध्यक्ष प्रकाश भंडारी, महिला मंडल अध्यक्ष अनीता गिड़िया, महासभा परिवार से ललित बैद, ज्ञानशाला परिवार से संगीता गोलछा, कार्यकर्ता प्रकाश दफ्तरी ने क्षमा का महत्त्व बताते हुए सभी श्रावक समाज ने अपनी-अपनी संस्थाओं की तरफ से क्षमायाचना की।
आर्थिक सहयोग के लिए सभी दानदाताओं के प्रति आभार व्यक्त किया। जैन तेरापंथ वेलफेयर सोसाइटी के अध्यक्ष महेंद्र भंडारी ने इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त किए। निवर्तमान अध्यक्ष सुरेश सुराणा ने अपने भाव व्यक्त किए तथा क्षमायाचना की। साध्वी रश्मिप्रभा जी ने गीतिका प्रस्तुत की। साध्वी कल्पयशा जी ने उद्गार व्यक्त किए।
साध्वी त्रिशला कुमारी जी ने कहा कि मकान और मन की समय-समय पर सफाई करते रहना चाहिए। जैनधर्म में क्षमायाचना का पर्व मन की सफाई का पर्व है। क्षमा करने वाला बड़ा होता है, क्षमा वीरों का आभूषण है। कार्यक्रम का संचालन बिमल पुगलिया ने किया। इस अवसर पर श्रावक-श्राविकाओं ने आचार्यश्री महाश्रमण जी एवं सभी साधु-साध्वियों से क्षमायाचना की। लक्ष्मीपत बैद ने सभी श्रावक-श्राविकाओं से एक-दूसरे से आपस में सामूहिक रूप से क्षमायाचना करवाई।