राग के समान दुःख नहीं और त्याग के समान कोई सुख नहीं: आचार्यश्री महाश्रमण
ताल छापर, 16 अक्टूबर, 2022
धर्म सम्राट आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि भगवती सूत्र में बताया गया है कि जीव प्रत्याख्यानी भी है, अप्रत्याख्यानी भी है और प्रत्याख्यानी-अप्रत्याख्यानी भी है। प्रत्याख्यान शब्द कैसे बना है? व्याकरण की दृष्टि से प्रति-आक्ख्यान से बना है। प्रत्याख्यान का अर्थ है-परित्याग कर देना। सावद्य आचरण से निवृत्त हो जाना। अस्वीकार, निषेध कर देना। यहाँ इस संदर्भ में अर्थ है-सर्व सावद्य योग का परित्याग करना। प्रत्याख्यानी का मतलब है-साधु-महाव्रती बन जाना। सर्व विरत बन जाना।
अप्रत्याख्यान यानी बिलकुल भी त्याग, संयम नहीं है अथवा सम्यक्त्व-युक्त संयम-त्याग नहीं है। जिस व्यक्ति के सर्व सावद्य-योग का त्याग नहीं है, पर थोड़ा-थोड़ा त्याग है, देशविरति है, श्रावक होता है, वह प्रत्याख्यानी-अप्रत्याख्यानी होता है। ये तीन अवस्थाएँ हो जाती हैं। संसार के अधिकांश जीव तो अप्रत्याख्यानी होते हैं।
एकेंद्रिय से लेकर चतुरिन्द्रिय, अमनस्क पंचेन्द्रिय मनुष्य, सारे के सारे देव और नैरियक सारे अप्रत्याख्यानी होते है। संज्ञी तिर्यंच पंचेन्द्रिय इनमें अप्रत्याख्यानी तो होते हैं, पर कुछ प्रत्याख्यान प्रत्याख्यानी भी हो सकते हैं। इनमें श्रावक्त्व आ सकता है। त्याग व अनशन स्वीकार कर सकते हैं। मनुष्य तो तीनों प्रकार के हो सकते हैं। जीवन में त्याग का महत्त्व है।
राग के समान कोई दुःख नहीं होता है और त्याग के समान कोई सुख नहीं होता है। धनतेरस, चतुर्दशी और दीपावली को तेले की तपस्या कर सकते हैं। आतिशबाजी में भी संयम रखा जा सकता है। धर्म की दृष्टि से तो दीपावली पर तप-त्याग, संयम करें। ‘लोगुत्तमे समणे नाय पुत्ते।’ का जाप किया जा सकता है। ‘महावीर स्वामी केवलज्ञानी, गौतम स्वामी चऊनाणी’ का भी जप किया जा सकता हैं रात्रि को बारह बजे बाद ‘महावीर पाये निर्वाण, गौतम को हुआ केवलज्ञान’ का जप किया जा सकता है।
त्याग के प्रसंग में पूज्यप्रवर ने राम-भरत के प्रसंग को विस्तार से समझाया। आचार्य तुलसी ने भी अपने रहते अपने युवाचार्य को आचार्य बना दिया था। पर आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी ने भी उनका सम्मान करते हुए गणाधिपति पद पर प्रतिस्थापित कर दिया था। अणुव्रत भी एक त्याग है, संयम है। हम जीवन में प्रत्याख्यान का जितना प्रयास व पुष्ट कर सकें, यह काम्य है।
कल से पूज्य कालू अभिवंदना सप्ताह शुरू हो रहा है। पूज्यप्रवर ने फरमाया कि कल से हम पूज्य कालूगणी की अभिवंदना करें।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि सकारात्मक सोच व नकारात्मक सोच हमारे ग्रंथि तंत्र को प्रभावित करती है। हमें ध्यान देना है कि हम अपने चिंतन को किस दिशा में प्रवाहित कर रहे हैं। हमारा चिंतन सकारात्मक हो। इससे हमारे ‘व्हाइट ब्लड सेल्स’ का विकास होता है। इम्युनिटी पॉवर बढ़ता है। सकारात्मक सोच वाला व्यक्ति हमेशा गुणात्मक दर्शन करता है।
टीपीएफ के नवमनोनीत राष्ट्रीय अध्यक्ष के मनोनयन पर पूज्यप्रवर ने आशीर्वचन फरमाया कि टीपीएफ अपना धार्मिक-आध्यात्मिक विकास करती रहे। अपनी बुद्धिमत्ता का अच्छा उपयोग करते रहें। बहुत अच्छी संस्था समाज की है। शपथ समारोह से पूर्व पूज्यप्रवर ने मंगलपाठ सुनाया। तपस्या के प्रत्याख्यान भी करवाए।
नवनिर्वाचित अध्यक्ष पंकज ओस्तवाल ने अपनी टीम की घोषणा की। पूज्यप्रवर ने नव निर्वाचित टीम को मंगलपाठ व आशीर्वचन फरमाया। अध्यक्ष पंकज ओस्तवाल ने अपनी भावना श्रीचरणों में अभिव्यक्त करते हुए भावी योजनाओं की घोषणा की। पूर्व महामंत्री हिम्मत मांडोत ने बेस्ट शाखा पुरस्कार की घोषणा की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।