बुद्धिजीवी अपनी सलाह से कर सकते हैं दूसरों की समस्या का समाधानः आचार्यश्री महाश्रमण
टीपीएफ के 15वें वार्षिक अधिवेशन ‘चरैवेति-चरैवेति’ का आयोजन
ताल छापर, 15 अक्टूबर, 2022
अध्यात्म जगत के महासूर्य आचार्यश्री महाश्रमण जी ने भगवती सूत्र की व्याख्या करते हुए फरमाया कि प्रश्न किया गयाµभंते! कर्म प्रकृतियाँ कितनी हैं? उत्तर दिया गयाµगौतम! आठ कर्म प्रकृतियाँ प्रज्ञप्त हैं। जैसे ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, देवनीय, मोहनीय, आयुष्य नाम, गौत्र और अंतराय। अध्यात्म जगत में आत्मवाद अत्यंत महत्त्वपूर्ण सिद्धांत है। आत्मवाद नहीं है तो फिर अध्यात्मवाद का कोई अस्तित्व नहीं है। अध्यात्मवाद का प्राण तत्त्व और केंद्रीय तत्त्व आत्मवाद होता है। जैन दर्शन और जैन धर्म में आत्मा पर अच्छा प्रकाश डाला गया है।
आत्मवाद से जुड़ा हुआ ही दूसरा सिद्धांत हैµकर्मवाद। जीव जैसा कर्म करता है, उसको वैसा फल मिलता है। आत्मवाद और कर्मवाद पर अध्यात्म का दर्शन टिका हुआ है। ये दो बड़े स्तंभ हैं। कर्मवाद के सिद्धांत पर वर्तमान जीवन की भी व्याख्या की जा सकती है। आत्मवाद, कर्मवाद न हो तो फिर पुनर्जन्म हो ही नहीं सकता। आत्मा और कर्म को कोई अच्छी तरह समझ ले तो आत्मा की सही दिशा में गति हो सकती है। तत्त्व की दृष्टि से नौ तत्त्व, आत्मवाद, कर्मवाद को समझने से सम्यक् दृष्टिकोण और आंशिक पुष्टि को प्राप्त हो जाए। जैन दर्शन में कर्मवाद पर विवेचन अनेक जगह प्राप्त होता है। भगवती सूत्र बहुत बड़ा आगम है। यह प्रश्नोत्तर के क्रम से संवाद शैली में तत्त्व-बोध दिया गया है। आठ कर्मों के आधार पर आदमी के जीवन का विश्लेषण कर सकते हैं।
एक आदमी विशेष बौद्धिक क्षमता वाला है, तो एक मंदबुद्धि वाला है, इसका अंतर हैµज्ञानावरणीय कर्म। ज्ञानावरणीय कर्म का उदय है, तो आदमी की बुद्धि विकसित नहीं होती। वेदनीय कर्म के क्षयोपशम से स्वास्थ्य अनुकूलता रहती है और उदय से स्वास्थ्य अनुकूल नहीं रहता है। गुस्सा आता है तो मोहनीय कर्म का उदय है। कषाय मंद है, तो मोहनीय कर्म का क्षयोपशम है। इस तरह आठ कर्मों के आधार पर हम व्यक्ति का विश्लेषण कर सकते हैं।
जैसी करनी वैसी भरनी, सुख-दुःख स्वयं मिलेगा। कर्मवाद को समझकर हम यह चिंतन करें कि मैं पाप कर्म के बंधन से कैसे बचूँ? कर्म पुण्य रूप में भी होते हैं और पाप रूप में भी होते हैं। इन आठ कर्मों में चार तो एकांत पाप हैं। शेष चार में पुण्य-पाप दोनों होते हैं। हम पाप कर्म से बचकर अच्छा जीवन जीएँ, यह काम्य है। टीपीएफ का 15वाँ राष्ट्रीय अधिवेशन पूज्यप्रवर की सन्निधि में आज से आयोजित होने जा रहा है। पूज्यप्रवर ने आशीर्वचन फरमाया कि हम मनुष्य हैं। मनुष्य होना अपने आपमें उपलब्धि हो सकती है। जो विकास करते-करते सिद्ध-मुक्त हो सकता है। हम अपने जीवन में भी आरोहण करने का प्रयास करें। सक्रियता से पुरुषार्थ करते रहो, विकास के लिए प्रयास आवश्यक है।
अच्छे क्षेत्र में अच्छे लक्ष्य के साथ पुरुषार्थ किया जाता है, तो कुछ हासिल किया जा सकता है। भाग्यवाद भी एक सिद्धांत है, परंतु भाग्य भरोसे बैठे रह जाना यह एक प्रकार का आलसीपन होता है। अवांछनीय रूप में आलस्य में मत रहो, पराक्रम करो। सम्यक् पुरुषार्थ हो, सही दिशा में गति हो। गलत काम करने की अपेक्षा आलसी रहना अच्छा है। टीपीएफ यह एक बुद्धिजीवियों का संगठन है, बुद्धिजीवी अपने ज्ञान से अच्छी सलाह, अच्छा पथ-दर्शन देकर समस्या का समाधान कर सकता है। इसलिए मैं बुद्धि को बहुत महत्त्व देता हूँ। बुद्धि वही अच्छी है, जो जिन धर्म का सेवन करती है। इन वर्षों में बौद्धिकता का विकास भी हुआ है। यह संगठन अपनी बौद्धिकता का सदुपयोग करता रहे। धार्मिक आध्यात्मिक सेवा में अपनी शक्ति का नियोजन करता रहे। बुद्धिमान व्यक्ति धार्मिक बात को भी अच्छी तरह पकड़ सकता है। जैन दर्शन, मनन और मीमांसा का गहराई से अध्ययन हो। अपने-अपने पेशे में नैतिकता रहे। व्यवसाय में ईमानदारी रहे। यह संस्था सेवादायी रूप में सामने आई है। अपने-अपने क्षेत्र में सेवा देते रहें, आगे बढ़ते रहें। आप सब श्रावक-श्राविकाएँ हैं, वर्धमान बने रहें।
टीपीएफ के राष्ट्रीय अध्यक्ष नवीन पारख ने बताया कि टीपीएफ के पाँच उद्देश्य हैं, जिन्हें हम Shine कहते हैं। इसकी सदस्य संख्या व शाखाएँ बढ़ रही हैं। टीपीएफ महामंत्री हिम्मत मांडोत ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। टीपीएफ के आध्यात्मिक पर्यवेक्षक मुनि रजनीश कुमार जी ने बताया कि तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम अनेक रत्नों की माला है। ये संस्था आगे बढ़ती जा रही है। यह एक प्रबुद्ध वर्ग की संस्था है। टीपीएफ गौरव-2021 के लिए आईआरएस नरेश सालेचा के नाम की घोषणा की गई। मुख्य न्यासी ने नरेश सालेचा का परिचय दिया। नरेश सालेचा को टीपीएफ गौरव-2021 अलंकरण का मोमेंटो प्रदान किया गया। नरेश सालेचा ने भी अपनी भावना अभिव्यक्त की। टीपीएफ के नव मनोनीत राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में पंकज ओस्तवाल भीलवाड़ा का मनोनयन हुआ। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।