आगम का दीप जलाओ तो दिवाली है: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

आगम का दीप जलाओ तो दिवाली है: आचार्यश्री महाश्रमण

ताल छापर, 24 अक्टूबर, 2022
दीपावली का पावन पर्वµदीयों का उत्सव। हमारे जीवन में अध्यात्म के दीप जलें। जीवन में प्रकाश-उद्योत कराने वाले आचार्यश्री महाश्रमण जी ने भगवती सूत्र आगम के सातवें अध्याय का विवेचन करते हुए फरमाया कि प्रश्न किया गया कि श्रमणोपासक, श्रमणों की उपासना करने वाला जो श्रावक होता है, वह गृहस्थ होता है। उसके घर में तो सामान्यतया भोजन भी बनता है। चारों आहार बनते हैं। चारों आहार के त्याग करने वाला कुछ भी ग्रहण नहीं करता है। तीन आहार का त्याग करने वाला पानी ग्रहण करने की छूट रखता है, शेष का उपयोग नहीं करता। श्रावक की भावना रहती है कि मेरे घर में साधु आए तो मैं मेरे घर में उपलब्ध चारों आहारों से साधुओं को प्रतिलाभित करूँ। गृहस्थ के तो आरंभ-संभारंभ होता है, पर मुनि तो अहिंसा शूर होते हैं। गृहस्थ परिग्रह से युक्त हैं, पर साधु तो परिग्रह से दूर हैं।
श्रावक जो प्रासूक-ऐषणिय वस्तु दान दे वो उचित हो। साधु के लिए कल्पनीय हो। इस प्रकार बड़ी भावना से जो दान देता है, उनकी चिंता करता है, विवेक रखता है। श्रावक के कई प्रकारों में एक प्रकार है कि श्रावक माता-पिता के समान होता है। साधुओं की साधना में सहयोग करने वाला होता है। ऐसा श्रावक जो साधु को दान देता है, उससे उसे क्या मिलता है? उत्तर दिया गया कि जो श्रावक साधु को प्रासूक-ऐषणीय वस्तु दान देता है, उससे वह साधु के भीतर समाधि पैदा करता है। वह श्रमणोपासक भी उसी समाधि को प्राप्त करेगा। दान का फल मिलेगा। श्रावक के जीवन में श्रद्धा, विवेक और ज्ञान हो। साथ में श्रावक श्रमणों की उपासना करने वाला व ऐषणिय दान देने वाला हो। साधु भी गोचरी में जागरूक रहे। आज दीपमालिका का त्योहार है। गृहस्थों के लिए उत्सव-खुशी का त्योहार है। हम जीवन में दीप जलाने का प्रयास करें। हम ज्ञान के दीप जलाएँ। शास्त्रों का स्वाध्याय चारित्रात्माएँ करें। मिट्टी में दीप जला दें। अज्ञानी को ज्ञानी बनाएँ। ज्ञानार्जन की अनेक विधियाँµपाठ्यक्रम वर्तमान में चल रहे हैं। ज्ञान का आलोक प्राप्त करने का प्रयास करें। मुमुक्षु काल जीवन का स्वर्णिम अवसर है।
पहले खुद का दीया जले, तो दीये से दीया जल सकता है। ध्यान भी ज्योति जलाने का साधन बन सकता है। पूज्यप्रवर ने ध्यान का प्रयोग करवाया। आज चतुर्दशी है। पूज्यप्रवर ने हाजरी-मर्यादा का वाचन किया एवं प्रेरणाएँ प्रदान करवाई। साधु-साध्वियों ने सामूहिक लेख-पत्र का वाचन किया। साध्वियों ने दीपावली के गीत का संगान किया। तपस्या के प्रत्याख्यान पूज्यप्रवर ने करवाए। साध्वीवर्या सम्बुद्धयशा जी ने कहा कि प्रकाश सबसे उज्ज्वल है। जीवन में प्रकाश का महत्त्व है। दीपावली उजाले का प्रतीक है। हमारे जीवन में आध्यात्मिक प्रकाश हो। उसके लिए हमें आत्मा के गुणों का विकास करना होगा। हमें सिद्धि प्राप्त हो। हम कषायों को उपशांत करने का प्रयास करें, आत्मा को निर्मल बनाएँ। सम्यक् दिशा में पुरुषार्थ करें। मुमुक्षु बहनों ने गीत की प्रस्तुति दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।