मंत्री मुनि मगनलाल जी हमारे धर्मसंघ के विश्वस्त संत थे: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

मंत्री मुनि मगनलाल जी हमारे धर्मसंघ के विश्वस्त संत थे: आचार्यश्री महाश्रमण

ताल छापर, 22 अक्टूबर, 2022
पुण्य कालूगणी अभिवंदना का छठा दिवस। परमपूज्य महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमण जी ने आगम वाणी का रसास्वादन कराते हुए फरमाया कि भगवती सूत्र में प्रश्न किया गयाµभंते! एक श्रमणोपासक, श्रमणों की उपासना करने वाला श्रावक वह साधुओं के प्रवास स्थल में बैठा है। सामायिक की साधना में है। उस श्रमणोपासक के इर्यापथि की क्रिया होती है या सांप्रदायिकी क्रिया होती है। उत्तर दिया गया कि इर्यापथिकी क्रिया वीतराग के होती है। ग्यारहवें से तेरहवें गुणस्थान में होती है। चौदहवें गुणस्थान में तो कोई क्रिया या बंध होता ही नहीं है। श्रमणोपासक सामायिक की साधना में है, साधुओं के ठिकाने में है। साधुओं के सान्निध्य में बैठा है, ऐसी स्थिति में वो समता भाव में होगा, पर वो श्रावक अविरति वाला है। ऐसी स्थिति में उसकी आत्मा अधिकरण वाली है, इसलिए उसके इर्यापथिकी क्रिया नहीं होती, सांप्रदायिकी क्रिया ही होती है कारण पहले गुणस्थान से दसवें गुणस्थान तक कषाय रहता है।
साधु के तो आजीवन सामायिक होती है। हमारे मंत्री मुनि मगनलाल जी स्वामी ने पूज्य मघवागणी के पास दीक्षा ग्रहण की थी। परमपूज्य कालूगणी भी मघवागणी के पास ही दीक्षित हुए थे। मुनि अवस्था से ही दोनों में मैत्री भाव था। उम्र में मगन मुनि बड़े थे। मैत्री संबंध भी लंबे समय तक चला था। विश्वस्त आदमी कड़ी बात कह दे तो सहनी पड़ती है। पर दोनों मित्र की तरह बात करते थे। हमारे धर्मसंघ में अनेक साधु-साध्वियाँ प्रमुख रूप से काम करने वाले हुए हैं, आज भी हैं। अपने ढंग से सेवा करते हैं। मगनमुनि कालूगणी के समय दीवान की तरह सेवा करते थे। कालूगणी भी उनकी राय लिया करते थे। कई-कई श्रावक भी आचार्यों के विश्वास पात्र हुए हैं। मंत्री मुनि तो गुरुदेव तुलसी ने उन्हें घोषित किया। मगन मुनि हमारे धर्मसंघ के स्तंभ थे। हमें उन पर नाज भी है। वर्तमान में भी कुछ संत उनके जैसे हैं। हमारे धर्मसंघ में मगन मुनि जैसे संत होते रहे।
मंत्री मुनि ऐसे विरले संत थे कि वे संघ हित आचार्य तुलसी को भी लाल आँख दिखा देते थे। इतना उनका हमारे धर्मसंघ में महत्त्व था। कारण उन्होंने कालूगणी को उनके अंत समय में आश्वस्त किया था कि तुलसी की उम्र छोटी है, उसकी चिंता आप न करावें। आचार्य तुलसी के वे बाबा की तरह थे और दायित्व भी निभाया था। वैसे वे भक्ति और विनय भाव भी बहुत रखते थे। ‘मंत्री मुनि मगनेश थांरी याद सतावै रे।’ गीत का संगान आचार्यप्रवर ने किया। मुख्य मुनि महावीर कुमार जी ने कहा कि पूज्य कालूगणी धर्मसंघ के प्रभावशाली आचार्य थे, जिन्होंने धर्मसंघ को नया आकाश, प्रकाश दिया। दो-दो युगप्रधान उत्तराधिकारी दिए। पूज्य कालूगणी को विकसित करने वाले तीन व्यक्तित्व थे। पूज्य मघवागणी, जिन्होंने उन्हें दीक्षा प्रदान की। दूसरी थी उनकी माँ छोगांजी एवं व्यक्तित्व है, मुनि मगनलाल जी स्वामी।
इन्होंने कालूगणी का अथ से लेकर इति तक पूरा साथ निभाया। दोनों में एकात्मक, तदात्मक भाव था। कालूगणी दीक्षा लेते ही मुनि मगनलाल जी के साझ में आ गए थे। दोनों का आत्मीय भाव अंत तक बना रहा था। कालूगणी भी उन्हें मुनि अवस्था में जैसा सम्मान था, वैसा अंत तक रखा था। मुनि कालू का आचार्य नियुक्ति पत्र का वाचन एवं आचार्य की धवल चद्दर भी मुनि मगनलाल जी ने ही ओढ़ाई थी। उनकी जोड़ी हमें भी विनय और श्रद्धा का भाव आचार्य के प्रति रखनी चाहिए, यह प्रेरणा देती है। ‘श्री कालू गुरुवर को हम ध्यायें।’ गीत का सुमधुर संगान किया। स्थानीय सभाध्यक्ष विजय सेठिया, नरपत मालू, स्थानीय महिला मंडल परिसंवाद से, तारामणी दुधोड़िया ने गीत, हर्षलता दुधोड़िया ने कविता, मनोज नाहटा ने गीत से अपनी श्रद्धा भावना अर्पित की। कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने समझाया कि केवलज्ञान के साथ केवल दर्शन भी होगा।