परमपूज्य कालूगणी की आचार्य महाप्रज्ञा जी पर विशेष कृपा थी : आचार्यश्री महाश्रमण
ताल छापर, 21 अक्टूबर, 2022
जिनशासन प्रभावक आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि भगवती सूत्र में प्रश्न किया गया कि जीव सबसे अल्प-आहार किस समय करता है? हमारे जीवन के साथ आहार का गहरा संबंध है। आहार के अनेक प्रकार हैं-ओज आहार, कवल आहार, रोम आहार आदि। उत्पत्ति के प्रथम समय में और जीवन के अंतिम समय में जीव सबसे कम आहार करता है। सब संसारी प्राणियों के लिए यह नियम है। कारण कि प्रथम समय में स्थूल शरीर का निर्माण भी नहीं होता। जीवन के अंतिम समय में भी आत्म-प्रदेशों का संहरण हो जाता है। आत्म प्रदेश संकुचित होकर शरीर के अल्प अवयवों में रह जाते हैं। इस आहार का ये सिद्धांत ग्रंथों में मिलता है।
हमें आहार का संयम रखना चाहिए कि खाकर खराब क्यों करें। हर मनुहार को मानना जरूरी नहीं होता। भोजन में विवेक भी हो, क्यों खाएँ, क्या न खाएँ? हम कालूगणी अभिवंदना सप्ताह मना रहे हैं। मैंने पूज्य कालूगणी के शिष्यों को भी देखा है। साध्वियों को भी देखा है। कालूगणी के प्रति उनके मन में एक श्रद्धा का भाव भी देखा। उन्होंने मेरे पर भी कृपा रखी। गुरुदेव तुलसी और आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी की तो विशेष कृपा थी ही।
कालूगणी और महाप्रज्ञ जी का गुरु-शिष्य का संबंध था। कालूगणी ने बालक नथमल को सरदारशहर में दीक्षित किया था। कालूगणी ने मुनि नथमल को मुनि तुलसी से संपृक्त करा दिया। छोटे बाल मुनि ने कालूगणी से पौष प्राप्त किया था। कालूगणी के कई शिष्य उभर कर सामने आए हैं। बाल मुनि नथमल पर कालूगणी की विशेष कृपा रही थी। मुनि नथमल का व्यक्तित्व भी निखरा व एक महान दार्शनिक बनकर सामने आ गए। उनका साहित्य भी सामने आया। कालूगणी की प्रेरणा से ही उन्होंने हमें शब्दानुशासनम् का आठवाँ अध्याय जो प्राकृत भाषा में है, सीखा था जो आगे आगम संपादन में बहुत काम आया था। धर्मसंघ में वे आगे बढ़े। गुरुदेव तुलसी ने निकाय सचिव, युवाचार्य पद और आचार्य पद पर प्रतिष्ठित कर दिया था।
आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी बड़ी उम्र में आचार्य बने थे, लंबा आयुष्य मिला था। यात्राएँ भी की थीं। वे हमारे धर्मसंघ के विलक्षण आचार्य थे। आगम संपादन में उनका बड़ा योगदान था। आचार्य महाप्रज्ञ जी में भी करुणा, वत्सलता थी। उनमें ज्ञान-वैदुष्य था। प्रवचन भी अच्छा फरमाते थे। कालूगणी से दीक्षित आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी ने अनेक अवदान धर्मसंघ को दिए थे। प्रेक्षाध्यान, जीवन-विज्ञान उनमें विशेष हैं।
साध्वीवर्या सम्बुद्धयशा जी ने कहा कि परमपूज्य कालूगणी कुशल कलाकार थे। जीवन के कुंभकार थे। कितने मिट्टी के लोदों को कुंभ का आकार दिया। कितने व्यक्तित्वों का निर्माण किया था, उनमें से एक थे बालमुनि नथमल (आचार्य महाप्रज्ञ)। मुनि नथमल जी का कालूगणी ने विशेष ध्यान रखा, अनेक प्रकार से प्रशिक्षण प्रदान कराया, जो मुनि नथमल के जीवन में प्रगति कराने वाला था। वह शिष्य भाग्यशाली होता है, जिसके निर्माण की विधि गुरु लिखते हैं। साध्वीवृंद ने कव्वाली से, साध्वी युक्तिप्रभा जी ने भी अपनी श्रद्धा भावना अभिव्यक्त की। साध्वीवृंद ने गीत की प्रस्तुति भी दी। अणुव्रत समिति से प्रदीप सुराणा, महिला मंडल ने गीत से अपनी भावना व्यक्त की।
गुरुदेव तुलसी की एक कृति-‘गृहस्थ को भी अधिकार है धर्म करने का’, उसका अंग्रेजी अनुवाद ‘The Cristal Librotion for House Holders’ जो जैविभा द्वारा प्रकाशित हुई है, पूज्यप्रवर के करकमलों में लोकार्पित की गई। पूज्यप्रवर ने पुस्तक के संदर्भ में अपने पावन उद्गार अभिव्यक्त करवाए। जैविभा शिक्षा, साधना, शोध के बारे में विशेष कार्यरत है। साध्वी ऋद्धिप्रभा जी ने इसका अनुवाद किया है। इनका भी विकास होता रहे। समणी अमलप्रज्ञा जी भी विदेश की प्रेक्षा यात्रा करके आई हैं। पूरी जानकारी दी। साध्वी ऋद्धिप्रभा जी ने पुस्तक के विषय में अपने भाव अभिव्यक्त किए। स्वतंत्र जैन जो ह्यूस्टन अमेरिका से आए हैं, वहाँ की जानकारी प्रदान की। ह्यूस्टन सेंटर के महत्त्व के बारे में बताया। समणी नियोजिका अमलप्रज्ञा जी ने अपनी भावना व्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।