विजय दशमी पर्व के आयोजन
नाथद्वारा
शासनश्री मुनि रविंद्र कुमार जी के सान्निध्य में विजय दशमी पर्व मनाया गया। मुनि अतुल कुमार जी ने कहा कि रावण को हराने के लिए पहले खुद राम बनना पड़ता है। विजयदशमी यानी आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि जो कि विजय का प्रतीक है। वो विजय जो श्रीराम ने पाई थी रावण पर। मुनिश्री ने कहा कि रावण जो की प्रतीक है बुराई का, अहंकार का, अधर्म का, आज तक जीवित इसलिए है कि हम उसके प्रतीक, एक पुतले को जलाते हैं न कि उसे। जबकि अगर हमें रावण का सच में नाश करना है तो हमें उसे ही जलाना होगा, उसके प्रतीक को नहीं। वो रावण जो हमारे ही अंदर है लालच के रूप में, झूठ बोलने की प्रवृत्ति के रूप में, अहंकार के रूप में, स्वार्थ के रूप में, वासना के रूप में, आलस्य के रूप मेंµऐसे कितने ही रूप हैं, जिनमें छिपकर रावण हमारे ही भीतर रहता है। हमें इन सभी को जलाना होगा। इसका नाश हम कर सकते हैं, हमें ही करना भी होगा। जिस प्रकार अंधकार का नाश करने के लिए एक छोटा-सा दीपक ही काफी है उसी प्रकार हमारे समाज में व्याप्त इस रावण का नाश करने के लिए एक सोच ही काफी है। मुनि रविंद्र कुमार जी ने मंगलपाठ सुनाया। कार्यक्रम में अच्छी संख्या में लोग उपस्थित थे।