जीवन में निष्ठुरता की वृत्ति से बचने का करें प्रयास: आचार्यश्री महाश्रमण
ताल छापर, 5 नवंबर, 2022
ध्यान साधक आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि भगवती सूत्र में प्रश्न किया है कि भंते! जीवों के सात वेदनीय कर्म का बंध किस कारण होता है? उत्तर दिया कि गौतम! प्राणों की अनुकंपा, भूतों की अनुकंपा, जीवों और सत्त्वों की अनुकंपा, अनेक प्राण, भूत जीव, सत्त्वों को दुखी न बनाना, शोकाकुल न बनाना, न चुराना, शरीर को क्षीण या खेद भिन्न न बनाना, न रुलाना, न पीटना, न प्रताप देना। इस प्रकार की अनुकंपा वृत्ति से जीवों के सात वेदनीय कर्मों का बंध होता है।
आगे प्रश्न किया कि भंते! जीवों के असातवेदनीय कर्म का बंध किस कारण से होता है, तो सात कर्म के विपरीत रूप में जान लें। जैन दर्शन में कर्मवाद का सिद्धांत है। उसके अंतर्गत आठ कर्म प्रकृतियाँ बताई गई हैं। इनमें है एक वेदनीय कर्म। इसके प्रकार होते हैं-सात वेदनीय और असातवेदनीय।
सात वेदनीय सुख देने वाला होता है, तो असातवेदनीय दुःख देने वाला। फल जब ही मिलेगा जब कर्म का बंध होगा। अनुकंपा वृत्ति से सात वेदनीय का व अनुकंपा की निष्ठुरता से असातवेदनीय का बंध होता है। कर्म को दया नहीं आती है। बंधा है, तो फल भोगना ही पड़ेगा। अनुकंपा के दो रूप होते हैं-विधेयात्मक और निषेधात्मक। विधेयात्मक यानी कुछ करना होता है। निषेधात्मक में कुछ करना नहीं होता है। हम निष्ठुरता की वृत्ति से बचने का प्रयास करें। मन में अनुकंपा रखें। संत का हृदय तो दूसरे को दुखी देखकर द्रवित हो जाता है।
तीन विकलेंद्रिय प्राण कहलाते हैं, वनस्पतिकायिक जीव भूत, पंचेंद्रिय जीव शेष चार स्थावर सत्त्व कहलाते हैं। छापर चातुर्मास में मैंने भगवती सूत्र को अपने मुख्य प्रवचनों का आधार बनाया। ये आर्षवाणी है। आज इसका वाचन संपन्न कर रहा हूँ। इस आगम वाणी का वाचन करते-करते मेरी जिह्वा भी धन्यता को प्राप्त हो गई है। पूज्यप्रवर ने कालू यशोविलास का भी वाचन करवाया। इस चातुर्मास में मैंने कालू यशोविलास को उपरले व्याख्यान के रूप में व्याख्या करने का प्रयास किया है। यह जन्म स्थान की बात है, यहाँ अंतिम बात नहीं बताई है। छापर में विदेशी लोगों का इंटरनेशनल प्रेक्षाध्यान शिविर लगा हुआ है। आज इसका समापन हो रहा है। अरविंद संचेती ने प्रेक्षा इंटरनेशनल के बारे में बताया। विदेशी लोगों ने अपने ध्यान के अनुभव बताए। पूज्यप्रवर ने आशीर्वचन फरमाया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।