कर्कश वेदनीय कर्म से बचने के लिए 18 पापों से रहें दूर : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

कर्कश वेदनीय कर्म से बचने के लिए 18 पापों से रहें दूर : आचार्यश्री महाश्रमण

ताल छापर, 4 नवंबर, 2022
तीर्थंकर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमण जी ने आगम वाणी का रसास्वाद कराते हुए फरमाया कि यहाँ भगवती सूत्र में दो शब्द प्रयुक्त किए गए हैं। एक है-कर्कश वेदनीय। दूसरा शब्द है-अकर्कश अवेदनीय। कर्कश वेदनीय कर्म जो कष्ट-दुःख से भोगा जाता है। अकर्कश अवेदनीय कर्म तो केवल साधु के ही होते हैं। कर्कश कर्म तो व्यापक है। नारकीय जीव, वैमानिक देवों के तिर्यंच और मनुष्य सभी के होता है। कर्कश वेदनीय कर्म बंधने का कारण प्राणातिपात, मृषावाद आदि पाप के अठारह प्रकार हैं। प्राणी के जितने खराब परिणाम होते हैं, उनसे बंधन होता है। कर्कश वेदनीय कर्म अनेक रोग रूपों में दयनीय स्थिति में भोगा जाता है। हम ऐसी सावधानी रखें कि ऐसे कर्म बंधें ही नहीं।
साधु के तो अठारह पापों का त्याग होता है। अकर्कश वेदनीय का बंध इन अठारह पापों का विरमण करता है, तब होता है। पंचेंद्रिय बंध नरक बंध का कारण है। हम अहिंसा की शैली से जीवन जीएँ। मृषावाद भी कर्कश वेदनीय कर्म बंध कराता है। इसी तरह अदतादान आदि पापों से कर्कश वेदनीय कर्म का बंधन होता है। इनके बंधन को विस्तार से समझाया।
गृहस्थ ध्यान रखें कि कर्कश वेदनीय कर्म का भारी बंध न हो जाए। आचार्यश्री महाप्रज्ञ की एक कृति ‘कर्मवाद’ जो अंग्रेजी भाषा में Docbin of Karma, जिसका ट्रांसलेशन समणी रोहिणीप्रज्ञा जी ने किया है। जैन विश्व भारती द्वारा प्रकाशित यह ग्रंथ पूज्यप्रवर के करकमलों में लोकार्पित किया गया। पूज्यप्रवर ने इस पुस्तक के बारे में अपने भाव उद्घाटित किए कि तत्त्व ज्ञान को जानने वालों के लिए यह उपयोगी हो सकता है। अनुवाद करने वाला भी पहले ग्रंथ की गहराई से जानकारी करे तो विषय का प्रतिपादन वास्तविक हो सकता है। दोनों भाषाओं का भी ज्ञान होना चाहिए। समणी रोहिणीप्रज्ञा जी ने अच्छा काम किया लगता है।
समणी रोहिणीप्रज्ञा जी ने इस पुस्तक के बारे में अपने भाव-अनुभव बताए। शासन गौरव मुनि राकेश कुमारजी का जीवन-वृत्त ‘प्रतिभा और पुरुषार्थ के संगम मुनि राकेश कुमार जी’, मुनि दीपकुमार जी ने लिखी है। जैन विश्व भारती द्वारा पूज्यप्रवर के करकमलों में लोकार्पित की गई। पूज्यप्रवर ने इस पुस्तक के बारे में आशीर्वचन फरमाया। मुनिश्री अणुव्रत प्राध्यापक थे। सुदूर क्षेत्रों की यात्राएँ भी की थीं। मुनि दीपकुमार जी भी उनके सिंघाड़े में रहे हुए हैं। मुनि दीपकुमार जी भी अच्छा कार्य करते रहें।
व्यवस्था समिति के अध्यक्ष माणकचंद नाहटा ने चातुर्मास में आर्थिक अनुदान दान-दाताओं के नाम की घोषणा की।