व्यक्ति द्वारा ज्ञाान, दर्शन, चारित्र और तप के विकास का हो निरंतर प्रयास : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

व्यक्ति द्वारा ज्ञाान, दर्शन, चारित्र और तप के विकास का हो निरंतर प्रयास : आचार्यश्री महाश्रमण

मंगलभावना में उमड़ा भावनाओं का ज्वर

ताल छापर, 7 नवंबर, 2022
कार्तिक शुक्ला चतुर्दशी-चातुर्मासिक चतुर्दशी। चातुर्मास संपन्नता की ओर और हाजरी का वाचन भी। साथ में छापरवासियों द्वारा आयोजित पूज्यप्रवर एवं धवल सेना का मंगलभावना समारोह। शासन सम्राट परम पावन आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान कराते हुए फरमाया कि ‘अर्हत वाङ्मय’ में कहा गया है कि आज कार्तिक शुक्ला चतुर्दशी चातुर्मास उतरती चतुर्दशी है। चातुर्मास का अपना महत्त्व होता है। शेष काल का अपना महत्त्व होता है। शास्त्रकार ने कहा है कि ज्ञान से पदार्थों को, भावों को जाना जा सकता है। ज्ञान का अपना महत्त्व है। ज्ञान अपने आपमें एक पवित्र तत्त्व है। ज्ञेय सभी पदार्थ है। संवर-निर्जरा व पाप-आश्रव भी ज्ञेय है। दर्शन से श्रद्धा करता है। चारित्र के द्वारा वह निग्रह करता है। तप के द्वारा आदमी शुद्धि करता है। ज्ञान परम पवित्र तत्त्व है। ज्ञान पुण्य का हो अथवा पाप का दोनों ही आवश्यक होता है। ज्ञान होता है तो आदमी अपने विवेक के माध्यम से अच्छे ज्ञान को अपने जीवन में उतारता है और बुराईयों का ज्ञान होने के कारण ही उससे अपने आपको बचाने का भी प्रयास करता है। ज्ञान हो, दर्शन का विकास हो तो श्रद्धा भावना पुष्ट होती है, तदनुरूप चारित्र बनता है और तत्पश्चात तपस्या के द्वारा अपना शोधन करता है। इस प्रकार आदमी को ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप के विकास का निरंतर प्रयास करना चाहिए।
ज्ञान के आदान और प्रदान में एक उदाहरण कुमार श्रमण केशी और राजा परदेशी का रखा जा सकता है। कुमार श्रमण केशी विद्वान संत थे तो राजा परदेशी भी जानकार राजा था। राजा परदेशी नास्तिक विचारधारा वाला पर कुमार श्रमण केशी आस्तिक विचारधारा वाले, दोनों का मिलना हुआ। राजा परदेशी को यथार्थ के आधार पर प्रतिबुद्ध बनाकर नास्तिक से आस्तिक बना दिया था। ज्ञानी पुरुष कठिन को भी आसान बना सकते हैं। दोनों के बीच हुई चर्चा को विस्तार से समझाया। परमपूज्य आचार्यश्री भिक्षु को भी एक दृष्टि से कुमार श्रमण केशी की तरह देख सकते हैं कि कैसे उन्होंने तर्कों से लोगों को समझाकर श्रावक बनाए थे। हमारे संतों में भी ज्ञान और प्रतिपादन की क्षमता हो। सही बात को यथार्थ से समझाकर गले उतार सके, प्रश्नों का उत्तर बढ़िया दे सके। चातुर्मास और शेष काल में ज्ञान प्रदान करने का प्रयास करें।
चातुर्मास में दो रात्रियाँ शेष रही हैं। कल और परसों अस्वाध्याय काल भी है। सभी चारित्रात्माएँ विहार की तैयारी करें। पूज्यप्रवर ने हाजरी का वाचन कराते हुए मर्यादाओं को समझाते हुए प्रेरणाएँ प्रदान करवाई। छापर सेवा केंद्र में मुनि आत्मानंद जी के साथ मुनि हेमराज जी को सेवाग्राही के रूप में स्थापित किया है। मुनि पृथ्वीराज जी सेवाकेंद्र के अभी संयोजक हैं।
शासन गौरव साध्वी कल्पलता जी को जैन विश्व भारती में रख रहे हैं। कई वृद्ध साध्वियाँ भी अलग-अलग सेवा केंद्रों में सेवाग्राही के रूप में जा रही हैं। साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभा जी की आज आठवीं मासिक पुण्यतिथि है। साध्वी जिनप्रभा जी, साध्वी सुषमाकुमारी जी व साध्वी विमलप्रज्ञा जी द्रुतगति से मुंबई पधार रही हैं। सभी स्वास्थ्य का अच्छा ध्यान रखें। गुरुकुलवास के संत भी अलग से विहार कर रहे हैं। मुनि धर्मरुचि जी भी रत्नाधिक हैं, वे भी स्वास्थ्य का ध्यान रखें। साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी का चयन हुए भी छह माह पूरे हो रहे हैं। वे भी सहयोग कर रही हैं। साध्वियाँ इनका विशेष ध्यान रखें। साध्वीवर्या सम्बुद्धयशा जी भी हैं। आगे यात्रा में अच्छे ढंग से आगे बढ़ें। चारित्रात्माओं द्वारा लेख-पत्र का वाचन किया गया।
मुख्य मुनि महावीर कुमार जी हमारे साथ ही हैं। ये भी खूब अच्छा कार्य करते रहें। परमपूज्य आचार्यश्री भिक्षु का स्मरण करते हुए ‘भिक्षु म्हारे प्रगट्याजी भरत खेतर में’ गीत के एक पद्य का सुमधुर संगान करवाया। साध्वीप्रमुखाश्री जी ने कहा कि, कहा जाता है कि भक्त भगवान को पूजा देता है। आचार्य तुलसी के योग से सिरियारी दर्शनीय और पूजनीय बन गई। यही दर्शन छापर में हो रहा है। पूज्यप्रवर ने लोगों के मन में पूज्य कालूगणी के प्रति श्रद्धा पैदा कर दी। पूज्यप्रवर ने ज्ञान प्रदान करके लोगों को तृप्त किया है। यह चातुर्मास आचार्यप्रवर के लिए नए स्वप्न संजोने का समय था। हम सबकी यात्रा मंगलमय हो।
मंगलभावना की अभिव्यक्ति में प्रवास व्यवस्था समिति अध्यक्ष माणकचंद नाहटा, मंत्री नरेंद्र नाहटा, महिला मंडल अध्यक्ष सरिता सुराणा, मंत्री अल्का बैद, प्रेम भंसाली, रेखा राम गोदारा, तारामणी दुधोड़िया, नरपत मालू, झणकार दुधोड़िया, नितेश बैद, सौरभ भूतोड़िया, अणुव्रत महिला टीम, अणुव्रत समिति से प्रदीप, उपासक धनराज मालू ने अपनी-अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।