अणुव्रत स्वीकार कर नास्तिक व्यक्ति भी अपना जीवन अच्छा बना सकता है : आचार्यश्री महाश्रमण
73वें अणुव्रत अधिवेशन का आयोजन
ताल छापर, 29 अक्टूबर, 2022
कार्तिक शुक्ला पंचमी-ज्ञान पंचमी, गुजरात में इसे लाभ पंचम भी कहते हैं। गुजरात-महाराष्ट्र में प्रायः आज के दिन व्यावसायिक प्रतिष्ठान खुलते हैं। सम्यक् ज्ञान के प्रदाता आचार्यश्री महाश्रमण जी ने आगम ज्ञान की अमृत वर्षा करते हुए फरमाया कि भगवती सूत्र में प्रश्न किया गया है कि प्रत्याख्यान कितने प्रकार का होता है? प्रत्याख्यान यानी छोड़ना, परित्याग करना। उत्तर दिया गया-गौतम! प्रत्याख्यान के दो प्रकार का प्रज्ञप्त है, मूल गुण प्रत्याख्यान और उत्तर गुण प्रत्याख्यान। साधना के लिए जो अनिवार्य है, वे मूल गुण है। जिनके बिना साधुत्व हो नहीं सकता। विकास के लिए जो किया जाता है, वह उत्तर गुण प्रत्याख्यान के रूप में है।
सर्वमूल गुण पाँच प्रकार के होते हैं-सर्व प्राणातिपात विरमण, सर्व मृषावाद विरमण, सर्व अदातादान विरमण, सर्व मैथुन विरमण और सर्व परिग्रह विरमण। ये साधु के पाँच महाव्रत भी कहलाते हैं। साधु इनका जीवन-भर तीन करण-तीन योग से पालन करता है। देश मूल गुण प्रत्याख्यान जो श्रावक के लिए होता है उसमें भी हिंसा, झूठ, चोरी, मैथुन और परिग्रह का आंशिक रूप या स्थूल रूप से त्याग होता है। उत्तर गुण साधु के लिए दस प्रकार के और श्रावक के लिए सात प्रकार के हैं। जितना आदमी संयम को स्वीकार करता है, प्रत्याख्यान को स्वीकार करता है, तो वह अपनी चेतना को निर्मलता की ओर ले जाता है।
प्रत्याख्यान अपने आपमें शक्ति है। साधु सहज में गोचरी मिले ग्रहण करे। अपरिग्रह और अहिंसा तो कितने बड़े त्याग हैं। साथ में न झूठ बोलना, न चोरी करना और सर्व मैथुन का त्याग होता है। दुनिया में परिग्रह के लिए हिंसा हो जाती है। युद्ध तो वृत्ति है, उसका कारण आदमी के भीतर होता है। गुरुदेव तुलसी ने जो अणुव्रत की बात बताई तो भावों में भीतरी चेतना में संयम जागे। जैन हो या अजैन गुड मैन बने। इसके लिए छोटे-छोटे व्रत-नियम आदमी स्वीकार करे। संकल्प से मानस परिवर्तन हो सकता है। अणुव्रत एक मार्ग है। अणुव्रत एक समाधान है।
हिंसा तो समस्या का मूल है। बैर से बैर बढ़ता है। आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी ने अहिंसा यात्रा के माध्यम से अहिंसा का संदेश दिया था। अहिंसा विकास का माध्यम है। आगम की बात अपने आपमें समाधान, सन्मार्ग-दर्शन है। नास्तिक आदमी भी अणुव्रत से जीवन अच्छा बना सकता है। हम भगवती सूत्र की बातों को जीवन में स्वीकार कर आगे बढ़ने का प्रयास करें। आज अणुव्रत विश्व भारती सोसायटी द्वारा 73वाँ अणुव्रत अधिवेशन आयोजित हो रहा है। अणुव्रत अनुशास्ता परम पावन ने फरमाया कि संस्था तो साधन है, मूल तो अणुव्रत है। अणुव्रत गीत भी प्रेरणा देने वाला है। जाति-संप्रदाय के आधार पर हिंसा न फैले। जीवन में नैतिकता हो। संस्थाएँ भी आर्थिक असुचिता से बचने का प्रयास करें। राजनीति में भी समता-शांति रहे।
राष्ट्र ऊपर है, पार्टी बाद की चीज है। जैसे गुरुदेव तुलसी ने फरमाया था कि धर्म ऊपर है, संप्रदाय बाद में है। हमारा सबसे मैत्री भाव रहे। अणुव्रत का चिंतन-दर्शन व्यापक है। हर संप्रदाय के अनुकूल बैठ सकती है। गुरुदेव तुलसी और पंडित जवाहरलाल नेहरू के प्रसंग को समझाया कि कैसा गुरुदेव का स्वाभिमान था। आचार्य महाप्रज्ञ जी का भी अणुव्रत को पथदर्शन मिला था। आज भी चल रहा है। अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह आता है, यह अणुव्रत को फैलाने का अच्छा मौका है। अणुव्रत का पर्युषण जैसा हो जाता है। आम जनता में अणुव्रत की बात बताई जाए। अणुव्रत के कार्यकर्ता में कार्य करने का उत्साह बना रहे। नए जो भी टीम में आएँ पर पुराने से भी संबंध बना रहे। अणुव्रत खूब अच्छा कार्य करता रहे। जीवन-विज्ञान भी साथ में जुड़ा हुआ है। अणुव्रत समितियों में भी सक्रियता रहे।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि गुरुदेव तुलसी के दिमाग में अणुव्रत का एक चित्र था। देश-समाज का विकास करना है, तो मूल्यों का विकास आवश्यक है। अणुव्रत का लक्ष्य था नैतिक मूल्यों का जागरण। अणुव्रत की आत्मा है-संयम, सदाचार और नैतिकता। जो व्यक्ति नैतिक रहता है, वह ऊँचाइयों को प्राप्त करता है। आदमी शुद्ध साधन से लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है। अणुव्रत की आचार संहिता व्यक्ति के चरित्र निर्माण की संहिता है। अणुव्रत सोसायटी के महामंत्री भीखमचंद सुराणा, उपाध्यक्ष प्रताप दुगड़ ने अधिवेशन की जानकारी दी। देश-विदेश से लगभग 70 समितियों से 330 संभागी इस अधिवेशन में सम्मिलित हुए हैं। विशिष्ट समितियों की घोषणा की। राष्ट्रीय अध्यक्ष संचय जैन ने सभी का स्वागत किया। कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने बताया कि बारह व्रती श्रावक अणुव्रत के ग्यारह व्रत स्वीकार कर सकता है।