अणुव्रत स्वीकार कर नास्तिक व्यक्ति भी अपना जीवन अच्छा बना सकता है : आचार्यश्री महाश्रमण
73वें अणुव्रत अधिवेशन का आयोजन
ताल छापर, 28 अक्टूबर, 2022
संस्था शिरोमणी महासभा के स्थापना दिवस पर युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण जी ने फरमाया कि आज महासभा का 110वाँ स्थापना दिवस है। महासभा द्वारा आज शीर्षस्थ सम्मेलन आयोजित हो रहा है। विषय हैµसंकल्प शुभ भविष्य का। संस्था शिरोमणी के उद्घोषक परम पावन ने आशीर्वचन फरमाया कि संगठन का अपना महत्त्व होता है। जैसे खुले मणीये माला बनकर शोभित होते हैं, वैसे ही संगठन का महत्त्व है। जैन श्वेतांबर तेरापंथी महासभा के केंद्रीय संस्थाओं में सबसे प्राचीन संस्था है। महासभा सक्षम संस्था के रूप में हमारे सामने है। संस्था शिरोमणी अलंकरण भी अर्थपूर्ण है। दायित्व की ओर संकेत करने वाला अलंकरण है।
कालक्रम का अपना महत्त्व है। काल के साथ कार्य का अपना महत्त्व है। तेरापंथ समाज के प्रतिनिधित्व की बात आए तो महासभा के समकक्ष दूसरी संस्था आ सके, मुझे कठिन लग रहा है। कितने-कितने कार्यकर्ताओं ने इस संस्था के माध्यम से अपनी सेवाएँ दी हैं। समाज के लिए ऐसी संस्था का होना भी समाज के लिए महत्त्वपूर्ण हो जाता है। गुरुदेव तुलसी का भी कितना सहयोग इसे रहा था। तेरापंथी महासभा का अध्यक्ष बनना भी गौरव की बात है। बहनें भी इसके साथ जुड़ी। महासभा खूब अच्छा कार्य करती रहे। पद पर न रहने पर भी आदमी का संबंध बना रह सकता है। पदमुक्ति के साथ युक्ति तो रह सकती है। हमारे आचार्यों और चारित्रात्माओं का योगदान रहा है, जिससे ये आगे बढ़ रही हैं। इस संस्था में धार्मिक पक्ष बहुत सबल है। सामाजिक पक्ष भी जुड़ा हुआ है।
माँ का काम होता हैµसुरक्षा करना, विकास करना। तेरापंथ समाज में महासभा माँ का काम कर रही है। समाज की आध्यात्मिक संभाल होती है। जय तुलसी फाउंडेशन भी कुछ वर्षों पहले की है। यह संस्था भी समाज का सहयोग करती है। इसके भी पदाधिकारियों का चुनाव हुआ है। इस संस्था में भी धार्मिक-आध्यात्मिक भाव अंतरनिहित बना रहे। सूरत प्रवासी, सुजानगढ़ निवासी राजकुमार भुतोड़िया ने ‘माँ’ पुस्तक पूज्यप्रवर के करकमलों में अर्पित की। भगवती सूत्र की व्याख्या करते हुए आचार्यप्रवर ने फरमाया कि प्रश्न किया गयाµकोई पुरुष कहता है कि मैंने सब प्राण, भूत, जीव और सत्त्वों के वध का, हिंसा का प्रत्याख्यान कर दिया है। यह बात जो कोई कहता है, उसका वह प्रत्याख्यान सुप्रत्याख्यान होता है अथवा दुष्प्रत्याख्यान होता है। उत्तर दिया गया गौतम! वह हो सकता है, सुप्रत्याख्यान हो, हो सकता है वह दुष्प्रत्याख्यान हो।
इस बात का मूल है कि जो जीव हिंसा का प्रत्याख्यान करता है, उसे मालूम है या नहीं कि जीव क्या, अजीव क्या होता है। जिसमें ज्ञान है कि त्रस-स्थावर क्या है। उसमें सम्यक् दर्शन है वह अगर प्राणियों की हिंसा का त्याग करता है, पालता है तो वह सुप्रत्याख्यान है। उसे त्रस-स्थावर का या अजीव-जीव का ज्ञान नहीं है, वो क्या तो हिंसा को टालेगा, अहिंसा को पालेगा। ज्ञान के बिना वो प्रत्याख्यान दुष्प्रत्याख्यान होता है। आचरण ज्ञानपूर्वक हो। बिना सम्यक् ज्ञान वाला मिथ्यात्वी तीन करण-तीन योग से त्याग करता है, वह साधु नहीं हो सकता। साधु बनने के लिए आवश्यक है, सम्यक् ज्ञान हो। मिथ्यात्वी के निर्जरा हो सकती है। नौ तत्त्वों को समझकर जो त्याग किया जाता है, वो सम्यक् सुप्रत्याख्यान हो सकता है। श्रावक अगर नौ तत्त्व को समझकर त्याग करते हैं, वो पंचम गुणस्थान में आ सकते हैं। सम्यक् दर्शन आवश्यक हो।
सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान से आगे का जन्म भी अनुकूल हो सकता है। वर्तमान में जो अनुकूलताएँ हैं, यह पुण्य का योग है। ये हम पूर्व पुण्य को भोग रहे हैं। आगे का भी चिंतन करते रहना चाहिए कि मैं क्या कर रहा हूँ। उसके लिए धर्म की साधना करें। पाप-आचरणों से बचने का प्रयास करें। सवेरे की सामायिक की साधना अमृत है। त्याग-प्रत्याख्यान भी करें। शाकाहारी रहें। जीवन में नैतिकता हो। अहिंसा की चेतना हो। गुस्से से भी बचने का प्रयास करें। धार्मिक-आध्यात्मिक सेवा करें। हमारी आत्मा निर्मल रहे तो ये जन्म और आगे का जीवन भी अच्छा रह सकता है। हम जीवन में ज्ञानपूर्वक अच्छा आचरण करने का प्रयास करें। द्रव्य काल भाव और क्षेत्र की अनुकूलता के आधार पर पूज्यप्रवर ने सन् 2025 का चातुर्मास अहमदाबाद में करने की घोषणा की। महासभा के आध्यात्मिक पर्यवेक्षक मुनि विश्रुतकुमार जी ने महासभा के महत्त्व को समझाया। महासभा के अध्यक्ष मनसुख सेठिया ने महासभा की प्रवृत्तियों की जानकारी दी। पूर्व में रहे सभी पदाधिकारियों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित की। महामंत्री विनोद बैद ने अपने भाव अभिव्यक्त किए। जय तुलसी फाउंडेशन के अध्यक्ष पन्नालाल बैद ने भी अपने भाव अभिव्यक्त किए। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।