
अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थिति में समता की साधना करने का प्रयास करें : आचार्यश्री महाश्रमण
ताल छापर, 26 अक्टूबर, 2022
कार्तिक शुक्ला एकमµगुजराती नववर्ष जो बेसता वर्ष कहलाता है, के उपलक्ष्य में परम पावन ने आज सुबह लगभग 5ः15 पर गुजराती श्रावकों पर विशेष कृपा बरसाते हुए वृहद मंगलपाठ सुनवाया और सभी के प्रति मंगलभावना प्रकट कराते हुए आशीर्वचन फरमाया। श्रावक समाज को नववर्ष पर एक वर्ष के लिए संकल्प करवाए। आध्यात्मिकता-धार्मिकता में आगे बढ़ने की प्रेरणा प्रदान करवाई। आचार्यप्रवर ने आगे फरमाया कि कार्तिक अमावस्या की रात भगवान महावीर के निर्वाण की रात्रि और गौतम स्वामी के लिए कैवल्य प्राप्ति की रात्रि है। हमारा भी इस वर्ष में आगे गुजरात में आने का भाव है। आप जितना धार्मिक-आध्यात्मिक लाभ ले सकते हैं, लेने का प्रयास करें।
मुख्य प्रवचन में जिनवाणी के व्याख्याता आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि भगवती सूत्र में प्रश्न किया गया है कि भंते! दुखी व्यक्ति दुःख से सपृष्ट होता है अथवा अदुखी दुःख से सपृष्ट होता है? उत्तर दिया गयाµगौतम! दुखी दुःख से सपृष्ट होता है, अदुखी दुःख से सपृष्ट नहीं होता। हमारी दुनिया में दुःख है। कितने प्राणी दुखी होते हैं। शास्त्र में कहा गया है कि जन्म, बुढ़ापा, रोग, मृत्यु दुःख है। संसार में दुःख है, जहाँ प्राणी क्लिष्ट हो जाते हैं। अध्यात्म की साधना को स्वीकार करने का एक कारण यह प्रतीत हो रहा है कि जब दुःख दिखाई देते हैं, तो जीव दुःख से छुटकारा पाने का प्रयास करता है। फिर उसे यह रास्ता मिल सकता है कि यह रास्ता दुःख-मुक्ति का है।
ऐसे दुःख के भाव जब जीवन में प्रकट होते है, तो आदमी के मन में वैराग्य भाव आ जाता है। साधुत्व को स्वीकार कर लेता है। चित्त समाधि तो अपने हाथ में है। आदान मजबूत होता है, तो निमित्त अपना प्रभाव नहीं डाल सकता है। अपना सुख अपनी शांति अपने हाथ में रहे, दूसरों के हाथ में न सौंपें। दुःख यानी कर्म। जिस आत्मा के कर्म लगा है, वही आत्मा कर्म का आकर्षण स्पर्श करेगी। अकर्म आत्मा क्या करेगी। दुःख का कारण कर्म ही है। सिद्ध भगवान के कभी कर्म का बंध नहीं होता। चौदहवाँ गुणस्थान अबंध होता है। समस्या और दुःख एक नहीं है। अध्यात्म की साधना से हमें अदुखी की स्थिति प्राप्त हो। हमारा मन सहजानंद-प्रसन्न रहे।
हम भगवान महावीर के जीवन से प्रेरणा ले सकते हैं। हम समभाव की साधना में आगे बढने का प्रयास करें। समता सुखी बनने का कारण होता है। अनुकूल-प्रतिकूल स्थितियों में तटस्थ भाव में रहें। कल कार्तिक कृष्णा द्वितीया-गुरुदेव तुलसी का जन्म दिवस है। समण श्रेणी जो गुरुदेव तुलसी की पुत्री के समान है, उसका भी कल जन्म दिवस है। कल का दिन अणुव्रत दिवस के रूप में स्थापित है। हमारी मंगलकामना है कि सभी दुखी सुखी बनें। हम उसी दिशा में आगे बढ़ें। पूज्यप्रवर ने तपस्या के प्रत्याख्यान करवाए। पूज्यप्रवर ने कालू यशोविलास का सुंदर विवेचन किया। बहन रतनी बाई जो फतेहपुर से थी उनके प्रसंग को विस्तार से समझाया। पूज्यप्रवर की अभिवंदना में ऋषि दुगड़, नीलेश बाफना, शिल्पा बैद ने गीत के द्वारा अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।