पूज्य गुरुदेव तुलसी संपूर्ण मानवजाति के लिए उपकारी आचार्य थे: आचार्यश्री महाश्रमण
ताल छापर, 27 अक्टूबर, 2022
कार्तिक शुक्ला द्वितीयाµभाई दूज और तेरापंथ धर्मसंघ के नवम अधिशास्ता गणाधिपति गुरुदेव तुलसी का 109वाँ जन्म दिवस एवं समण श्रेणी का स्थापना दिवस व अणुव्रत दिवस। गुरुदेव तुलसी युगदृष्टा, युग चिंतक और युगप्रधान आचार्य थे। कितने-कितने अवदान उन्होंने धर्मसंघ के विकास के लिए प्रदान कराए थे। आचार्य तुलसी के जन्मदिवस के अवसर पर आचार्य महाश्रमण जी ने फरमाया कि परमपूज्य आचार्य तुलसी के जीवन को हम देखें। उनकी हर क्रिया में अपना तरीका था। उनके जीवन से हम अध्ययन कर सकते हैं। आज से 108 वर्ष पूर्व आचार्य तुलसी का जन्म हुआ था। हमने शताब्दी वर्ष भी उनका मनाया था। वे हमारे धर्मसंघ के अनुशास्ता पूज्य कालूगणी द्वारा बनाए गए थे। युवा और छोटी उम्र के वो आचार्य थे। उनका अपना व्यक्तित्व और कर्तृत्व था।
आगम संपादन का मुख्य कार्य भी उन्होंने शुरू किया था। आज के दिवस को अणुव्रत दिवस संज्ञा प्राप्त है। अणुव्रत आचार्य तुलसी का एक व्यापक अवदान है। आज भी अणुव्रत का कार्य चल रहा है। कितने-कितने कार्यकर्ताओं ने अणुव्रत के कार्य में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है, आज भी दे रहे हैं। आदमी के जीवन में छोटे-छोटे, अच्छे-अच्छे नियम आते हैं, तो आदमी का जीवन अच्छा बन जाता है। आज समण श्रेणी का भी जन्म दिवस है। 42 वर्ष पूर्व जैविभा में विलक्षण दीक्षा के रूप में वो आयोजन हुआ था। इस श्रेणी का भी अपना महत्त्व है। इस श्रेणी ने 42 वर्षों में विकास किया है। शिक्षा के प्रसारण में भी इस श्रेणी का योगदान रहा है। विदेश का कार्य भी समण श्रेणी संभाल रही है। साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी तो प्रथम बैच की समणी भी रही हैं। साध्वीवर्या सम्बुद्धयशा जी भी पहले समणी रही हैं। विदेशों में समणी का प्रभाव है। समण श्रेणी का भी विकास होता रहे।
मैं गुरुदेव तुलसी को वंदन करता हूँ। हम जैसे कितनों पर तुलसी का उपकार है। कितनों को उन्होंने संपोषण दिया है। प्रबोधन, संबोधन दिया, आगे बढ़ने का सहारा दिया। ऐसे गुरुदेव तुलसी को बार-बार वंदन-अभिवंदन। पूज्यप्रवर ने तपस्या के प्रत्याख्यान करवाए। साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि विरल व्यक्तित्व के धनी गुरुदेव तुलसी प्रवचनकार और साहित्यकार भी थे। 11 वर्ष के मुनिकाल के बाद ही वे आचार्य बन गए थे। उनकी वाणी से श्रोता प्रभावित होते थे। उन्होंने लंबी यात्राएँ पूर्वांचल और दक्षिणांचल की थी। उनकी भाषा में प्रेम, माधुर्य और करुणा थी। उनकी वाणी में औज और गांभीर्य भी था। जैन-जैनेतर उनका प्रवचन सुनते थे। वे कवि भी थे।
साध्वीवर्या सम्बुद्धयशा जी ने कहा कि तप और खप करने से ही नए इतिहास का सृजन किया जा सकता है। परमपूज्य गुरुदेव तुलसी ने भी बहुत साधना की थी। उन्होंने स्वयं के विकास के साथ निर्माण और उत्थान में कठोर साधना की थी। वे उभयानुकंपी व्यक्तित्व के धनी थे। वे सृजनशील व्यक्ति थे। उनमें अनुत्तर भक्ति और शक्ति थी।गुरुदेव तुलसी की अभिवंदना में मुनि राजकुमार जी, मुनि विकास कुमार जी, मुनि हेमराज जी ने अपने भावों की अभिव्यक्ति दी। समणी नियोजिका समणी अमलप्रज्ञा जी, समणी कुसुमप्रज्ञा जी, समणी प्रणवप्रज्ञा जी एवं समणीवृंद ने गीत से अपनी भावांजलि अभिव्यक्त की। मुमुक्षु बहनों ने गीत से अपनी श्रद्धाभिव्यक्ति अर्पित की।
अणुव्रत समिति, छापर के अध्यक्ष प्रदीप सुराणा, कोलकाता अणुव्रत समिति अध्यक्ष प्रदीप सिंघी, अणुव्रत महिला टीम ने गीत, स्थानीय महिला मंडल अध्यक्ष-मंत्री सरीता सुराणा, अलका बैद, समूह गीत महिला मंडल, उपासक धनराज मालू, मनोज खटेड़, कन्या मंडल, लकी कोठारी ने भी भावांजलि अर्पित की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।