महासर्वतोभद्र तप की संपन्नता व तप अभिनंदन समारोह
शिशोदा।
तपस्या को सर्व मंगलों में प्रमुख मंगल माना गया है। भगवान महावीर ने भी अहिंसा, संयम, तप रूप में धर्म को उत्कृष्ट मंगल बताया है। तपस्या से व्यक्ति की सुप्त शक्तियाँ जागृत हो जाती हैं। उसमें प्रचंड आत्मबल बढ़ जाता है। यह विचार तपस्वियों के अभिनंदन व मुनि प्रतीक कुमार जी के महासर्वतोभद्र प्रतिमा तप की समाप्ति पर मुनि यशवंत कुमार जी ने रखे। जैनशासन के इतिहास में अनेक तपस्वी हुए हैं, जिन्होंने दुष्कर महादुष्कर तप संपन्न किए हैं। तेरापंथ के इतिहास में भी अनेक बड़े-बड़े तपस्वी हुए हैं। उन्हीं की कड़ी में एक नया नाम जुड़ने जा रहा है, वह है मुनि प्रतीक कुमार जी का। इनके महासर्वतोभद्र तप संपन्न होने जा रहा है। यह अपने आपमें बहुत कठिन तप है। 262 सालों के इतिहास में हमारे यहाँ यह तप सिर्फ दूसरी बार ही हुआ है।
245 दिनों के इस कठिन तप में तपस्वी को 196 दिन उपवास करना होता है, जिसमें वह सिर्फ पानी ही पी सकता है। 49 दिन पारणे के होते हैं। इन्होंने मात्र 27 वर्ष की लघुवय में ये कठोर तप करके यह सिद्ध कर दिया कि तप करने के लिए कोई उम्र देखने की जरूरत नहीं है। इतनी छोटी उम्र में इस कठोर तप को संपन्न करके एक नया इतिहास बनाया है। मैं इनके प्रति मंगलकामना करता हूँ।
तपस्वी मुनि प्रतीक कुमार जी ने कहा कि आज मेरा जो यह तप संपन्न हो रहा है, उसके पीछे गुरुदेव की ही शक्ति है। उनकी ही कृपा है और उन्हीं के आशीर्वाद से उन्हीं के प्रताप से मैं यह तप कर पाया हूँ। आचार्यप्रवर के प्रति अनंत-अनंत कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ। इस अवसर पर मैं अपने परम उपकारी मंत्री मुनिश्री और साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभा जी का भी स्मरण करता हूँ। तपस्वी मुनिश्री ने अनेकों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित की, जिन्होंने तपस्या में सहायता प्रदान की। मुनि यशवंत कुमार जी के प्रति आभार व्यक्त किया और कहा कि मुनि यशवंत कुमार जी के सहयोग से ही यह तप संपन्न हुआ। मुनि प्रतीक कुमार जी ने शिशोदा ग्रामवासियों के प्रति भी बहुत कृतज्ञता ज्ञापित की, ऐसा श्रावक समाज मुझे मिला जो हर क्षण, हर समय मुझे तपस्या में सहयोग देता रहा है।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के रूप में मेवाड़ राजघराने के युवराज महाराज कुमार विश्वराजसिंह मेवाड़-उदयपुर, भंवरकुमार देवजादित्य सिंह मेवाड़-उदयपुर, बनेड़ा राजघराने के राजाधिराज गोपाल चरण सिंह सिसोदिया-बनेड़ा और रानी विजयलक्ष्मी कुमारी राठौड़-बनेड़ा उपस्थित थे। महाराजकुमार साहब ने महाराणा महेंद्र सिंह मेवाड़ की ओर से मुनि प्रतीक कुमार जी को नजर पेश की और कहा कि मेवाड़ की माटी का सौभाग्य है कि यह अनेक ऋषि-मुनियों की साधना भूमि रही है। इस कलयुग में भी इतनी छोटी उम्र में मुनिश्री ने इतना कठिन तप कर मेवाड़ का मान बढ़ाया है। संपूर्ण मेवाड़ राजघराना आज एक अपने मेवाड़ी संघ के प्रति गर्व की अनुभूति कर रहा है।
राजाधिराज गोपाल चरण सिंह बनेड़ा ने भी बनेड़ा राजघराने की ओर से मुनि प्रतीक कुमार जी को नजर पेश की और कहा कि प्रतीक मुनिश्री की जन्मभूमि बनेड़ा रही है। इनका ननिहाल भी बनेड़ा है। आज मैं अपने भानेज को इस रूप में देखते हुए अपने आपको गौरवान्वित महसूस कर रहा हूँ। मेवाड़ के महाराजकुमार व भंवरकुमार व राजाधिराज बनेड़ा ने मुनिश्री को दान देकर पारणा करने का निवेदन किया।
मुनि यशवंत कुमार जी ने मुनि प्रतीक कुमार जी को आहार का ग्रास देकर तप संपन्न करवाया। मेवाड़ की अनेक रियासतों से गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे। जिनमें सिंगोली के कुंवर प्रदीप कुमार सिंह, महाराज रतन सिंह, किशनपुरा, कुंठवा के ठाकुर केसर सिंह चुंडावत, महाराज कल्याण सिंह, जोरावरपुरा, प्रताप सिंह झाला आदि इसी क्रम में पदमचंद पटावरी, शांतिलाल सोलंकी, रमेश कुमार धाकड़, रोशनलाल धाकड़, अशोक मेहता, दिलीप सरावगी, सुरेंद्र डागलिया, रूपचंद दुगड़, अशोक डूंगरवाल, निर्मल गोखरू, सुशीला धाकड़, संगीता श्यामसुखा, प्रमिला डांगी, सुरभि व श्रेयांश टोडरवाल ने अपने विचार रखे।
तेममं ने मंगलाचरण व गीत प्रस्तुत किया। तप अभिनंदन के क्रम में अठाई, नौ, ग्यारह, पंद्रह की तपस्या, एक धर्मचक्र तप व एक कंठी तप की तपस्वियों का अभिनंदन किया गया। आभार ज्ञापन तेयुप अध्यक्ष सुनील धाकड़ ने किया। कार्यक्रम का संचालन केसर राहुल धाकड़ ने किया।