स्वाद विजय की अप्रतिम साधना है - आयंबिल

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स्वाद विजय की अप्रतिम साधना है - आयंबिल

गांधीनगर।
मुक्ति के चार सोपानों में चौथा सोपान है-तप। तप वह अग्नि है, जिसमें जन्म-जन्म के संचित पातक जलकर नष्ट हो जाते हैं और आत्मा का दिव्य स्वरूप उद्घाटित होता है। तप कर्मों का प्रतनु कर हमारी आत्मा की तेजस्विता को वृद्धिगत करता है। आयंबिल तप वासना से उपासना की ओर ले जाता है। भाई मोहन ने 83 दिनों का आयंबिल कर अपनी दृढ़-इच्छाशक्ति का परिचय दिया। मुनि भरत कुमार जी ने कहा कि जिसका जीवन होता तप व जपमय, उसका जन्म-मरण का मिट जाता भय, उससे वसुंधरा हो जाती अभय। उसकी इह भव परभव में होती जय। बाल संत जयदीप कुमार जी ने गीतिका का संगान किया।
तपस्वी मोहन चावत ने प्रत्याख्यान किए। सभा द्वारा अभिनंदन पत्र भेंट किया गया। तेरापंथ सभा अध्यक्ष कमल सिंह दुगड़ ने विचार व तप अभिनंदन पत्र का वाचन किया। कोषाध्यक्ष कन्हैयालाल सिंघवी ने केंद्र द्वारा प्राप्त पत्र का वाचन किया। तेयुप अध्यक्ष प्रदीप चोपड़ा, तेममं, पूर्व मंत्री लता गादिया, सभा मंत्री गौतम मांडोत, राइस चावत, नयन चावत, छवि चावत ने विचार रखे। राजेश मारू ने 11 और प्रेरणा दुगड़ ने 9 के तप का प्रत्याख्यान किया। इससे पूर्व महावीर जैन ने मुनिश्री के सान्निध्य में 63 दिनों का आयंबिल तप किया। उनका अभिनंदन सभा द्वारा किया गया।