आत्म-साक्षात्कार का अनुपम उपक्रम है प्रेक्षाध्यान
बैंगलोर।
तेरापंथी सभा, बैंगलोर के तत्त्वावधान में दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन मुनि अहर्त कुमार जी के सान्निध्य में प्रेक्षा फाउंडेशन जैन विश्व भारती, लाडनूं के अंतर्गत आयोजित किया गया। सभा अध्यक्ष कमल सिंह दुगड़ ने स्वागत किया। मुनि अर्हत कुमार ने कहा कि ध्यान वह दूरबीन है जो भीतर में व्याप्त सूक्ष्म शक्तियों को देखकर उन्हें जागृत करती है। प्रेक्षाध्यान का अर्थ है-गहराई में उतरकर देखना। स्थूल चेतना के द्वारा सूक्ष्म चेतना को देखना।
जानना और देखना चेतना का लक्षण है। आवृत चेतना में जानने और देखने की क्षमता क्षीण हो जाती है। उस क्षमता को विकसित करने का सूत्र है-जानो और देखो। प्रेक्षा-ध्यान की साधना का पहला ध्येय है-चित्त को निर्मल बनाना। कषायों से मलिन चित्त में ज्ञान की धारा नहीं बह सकती। चित्त की निर्मलता होते ही ज्ञान प्रकट होता है, उसका अवरोध समाप्त हो जाता है। इसलिए हमारा पहला लक्ष्य है चित्त की निर्मलता।
युवा संत मुनि भरत कुमार जी ने कहा कि जो करता है प्रेक्षाध्यान, उसे मिल जाती है शांति, आनंद की अमूल्य खान, वह बन जाता है महान, उसको हो जाता है आत्मा का भान, उसकी अध्यात्म से बढ़ती है शान, इसलिए निरंतर करें प्रेक्षाध्यान। बाल संत जयदीप कुमार ने शांति का संदेश दिया। इस कार्यशाला में लगभग 70 प्रेक्षाध्यान साधकों ने भाग लिया। प्रशिक्षक डालमचंद सेठिया, उर्मिला सुराणा, पुष्पा गन्ना, रेणू कोठारी एवं पूजा गुगलिया ने ध्यान, प्रणायाम, कायोत्सर्ग, श्वासप्रेक्षा, महाप्राण ध्वनि आदि अनेक विषयों का प्रयोग कराया। समता स्वासप्रेक्षा, अनुप्रेक्षा, अवचेतन मन और मंगल भावना आदि अनेक विषयों का प्रयोग एवं प्रशिक्षण प्रदान किया। इस कार्यशाला में बच्चों ने भी बड़े उत्साह से भाग लिया। कार्यशाला के समापन पर सभी संगभागियों को प्रमाण-पत्र वितरित किए गए। संयोजक राजेंद्र बैद ने धन्यवाद दिया।