कृत कर्मों को भोगना ही पड़ता है: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

कृत कर्मों को भोगना ही पड़ता है: आचार्यश्री महाश्रमण

डेगाना, 21 नवंबर, 2022
जिन शासन प्रभावक आचार्यश्री महाश्रमण जी आज प्रातः चांदरुण से विहार कर डेगाना पधारे। परमपूज्य ने मंगल प्रेरणा प्रदान करते हुए फरमाया कि शास्त्रकार ने एक सिद्धांत बताया है-अपने किए कर्म होते हैं, उन्हें काटे बिना, भोगे बिना मोक्ष नहीं मिल सकता है। जैसी करणी-वैसी भरणी। यह कर्मवाद का सिद्धांत है। कर्म का फल कैसे भोगना पड़ता है, यह एक प्रसंग से समझाया कि खुद ने गलत प्रयास किया और फल भी भोगना पड़ा। मनुष्य को चाहिए कि वह बुरे कार्य न करे। दूसरों का अहित करने वाला खुद का अहित करने का ही प्रयास करता है। दूसरे का अनिष्ट हो या न हो, पर खुद का अनिष्ठ हो जाता है। यह भी एक बड़े प्रसंग से समझाया कि झूठ बोलने वाले की नाक कटती है।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि भारतीय संस्कृति में रस को बहुत अधिक महत्त्व दिया गया है। परमात्मा के लिए कहा जाता है कि वह ही रस है। रस प्राप्ति के दो माध्यम हैं-पहला माध्यम है गुरु की सन्निधि और दूसरा माध्यम है-सत्संगति। इससे शरीर में रसायन बनते हैं जो हमारे शारीरिक और मानसिक विकास के लिए जरूरी है। पूज्यप्रवर की अभिवंदना में साध्वी संपूर्णयशा जी जो बोरावड़ चातुर्मास संपन्न कर आई हैं, ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। ब्रह्माकुमारी से निर्मला दीदी, महिला मंडल, गौतम कोठारी, सभाध्यक्ष प्रवीण चोरड़िया, सुमित्रा सुराणा (ममं), सुनील सांखला (तेयुप), ज्ञानशाला, कन्या मंडल, राजस्थान सरकार के पूर्व मंत्री अजय सिंह तिलक, नगरपालिका, चेयरमैन, मदनलाल अठवाल ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।