असफलता से सबक सीखकर पुरुषार्थ करने से मिलती है बड़ी सफलता : आचार्यश्री महाश्रमण
मांझी, 20 नवंबर, 2022
परम पावन आचार्यश्री महाश्रमण जी आज प्रातः अपनी धवल सेना के साथ 13 किलोमीटर का प्रलंब विहार कर मांझी स्थित दधिनति महाविद्यालय पधारे। मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए शासन शेखर ने फरमाया कि समता को धर्म कहा गया है। आदमी के जीवन में अनुकूल और प्रतिकूल परिस्थितियाँ आ सकती हैं। अनुकूल में ज्यादा खुशियाँ नहीं मनाना और प्रतिकूल परिस्थिति में दुखी नहीं बनना, आर्त्तध्यान में नहीं जाना, ज्यादा शोकाकुल नहीं होना।
समता की साधना अध्यात्म की आराधना है। दुनिया में जीत-हार चलती रहती है। जीवन में अनेक अवसर आ सकते हैं। गुरुदेव तुलसी को मान-सम्मान प्राप्त हुआ तो प्रतिकूलताएँ आईं, विरोध भी हुआ। पर दोनों स्थिति में सम रहे। लाभ-अलाभ, सुख-दुःख, जीवन-मरण, निंदा-प्रशंसा में समता-शांति रखें। धीरज का फल मीठा हो सकता है। जीवन में कोई कार्य करते हैं और सफलता न मिले तो एक बार पुनः प्रयास करना चाहिए। कारण को खोजकर कारण मिटाया जा सकता है। जीवन एक संघर्ष है, धर्म और अध्यात्म के मार्ग पर आगे बढ़ें। चलने वाले को कभी चोट भी लग सकती है। चलना बंद न करें, सावधानी रखें।
जिंदगी में आदमी ठोकरें खाते-खाते बहुत आगे बढ़ सकता है। चलते-चलते जीवन में धर्म का, अध्यात्म का विकास करते रहो। असफलता से डरना नहीं चाहिए, उसके कारणों को खोजें। बाधक तत्त्वों को दूर करते जाएँगे तो अच्छी मंजिल प्राप्त कर सकते हैं। हर असफलता से सबक सीखेंगे तो बड़ी सफलता मिल सकती है। अच्छा पुरुषार्थ करें। जो महापुरुष हुए हैं, उन्होंने अपने जीवन में अध्यात्म की आराधना की है। हमारा जैन शासन भगवान महावीर से जुड़ा हुआ है। तीर्थंकर महावीर समता के एक उदाहरण हैं। ऐसे महापुरुष के जीवन से हम समता की साधना की प्रेरणा ले सकते हैं। हमारे जीवन में समता भाव पुष्ट रहे, यह काम्य है। अल्प समय के विराम के पश्चात युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण जी ने लगभग ढाई बजे पुनः गतिमान हुए। आचार्यश्री के आगमन से चांदारुण गाँववासी हर्ष-विभोर बने हुए थे। ग्रामीणों ने आचार्यश्री का अपने गाँव में भावभीना अभिनंदन किया। आचार्यश्री के स्वागत में बाल-वृद्ध सभी सोत्साह उपस्थित थे। आचार्यश्री लगभग आठ किलोमीटर संपन्न कर रात्रिकालीन प्रवास हेतु चांदारुण में स्थित राजकीय मालिका माध्यमिक विद्यालय में पधारे। जहाँ देर रात तक आचार्यश्री के दर्शनार्थ ग्रामीणों के उपस्थित होने का ताँता लगा हुआ था।