जीने की विशिष्ट कला का नाम है - जीवन विज्ञान

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जीने की विशिष्ट कला का नाम है - जीवन विज्ञान

किशनगढ़।
तेरापंथी सभा के तत्त्वावधान में 45वें महाप्रज्ञ अलंकरण दिवस को आचार्य धर्म सागर जैन पब्लिक स्कूल में जीवन विज्ञान दिवस के रूप में मनाया गया। इस अवसर पर मुनि चैतन्य कुमार जी ‘अमन’ ने कहा कि जीवन जीने की एक विशिष्ट कला का नाम हैµजीवन-विज्ञान। जीने के लिए सभी प्राणी जिया करते हैं, परंतु मनुष्य को विवेकशील प्राणी माना जाता है। वह अपनी प्रज्ञा का जागरण कर जीवन को कलात्मक ढंग से ही जी सकता है।
मुनि अमन कुमार जी ने कहा कि छात्र जीवन में बौद्धिकता के साथ मानसिक व भावनात्मक विकास कर सकता है। आज के युग में शिक्षा का बहुत विकास हुआ है। प्रत्येक बालक-बालिका उच्च से उच्च डिग्री हासिल करना चाहते हैं। इंटरनेट मोबाइल ने बच्चों की दिशा में बहुत कुछ परिवर्तन कर दिया है। आवश्यकता है भावी पीढ़ी इन छात्र-छात्राओं को सम्यक् मार्गदशन मिले, जिससे यह जीवन को स्वस्थ, मस्त और आत्मस्थ बनकर आनंद से जी सकें। मुनि सुबोध कुमार जी ने कहा कि शिक्षा का उद्देश्य सर्वांगीण विकास होना चाहिए। एकांगी विकास का कोई मूल्य नहीं होता।
इस अवसर पर विद्यालय की प्रधानाचार्य सोनू जैन, हिंदी विभाग के प्रिंसिपल ओमनायक, अध्यक्ष माणकचंद गंगवाल, सचिव मिलापचंद जैन ने मुनिवर का स्वागत आभार माना। तेरापंथ सभा के अध्यक्ष माणकचंद गेलड़ा, बिमल भंडारी, प्रकाश मालू ने विद्यालय परिवार के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित की। छात्र-छात्राओं ने नशामुक्ति व जीवन-विज्ञान के प्रयोग की प्रतिज्ञा की।