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धर्म बोध
शील धर्म

प्रश्न 23 : कई धार्मिक ग्रंथों में संतानोत्पत्ति के लिए मैथुन सेवन को उचित माना है। इसमें जैन दृष्टिकोण क्या है?
उत्तर : कई धार्मिक ग्रंथों व मनस्वी विचारकों ने संतानोत्पत्ति के लिए मैथुन सेवन को उचित माना है। महात्मा गांधी ने संतानोत्पत्ति या आध्यात्मिक प्रेम के होते स्वस्त्री से किए जाने वाले मैथुन सेवन को उचित ठहराया है। उन्होंने इसे पाप न मानकर ईश्वर की आज्ञा का पालन बताया है। महात्मा गांधी ने केवल कामाग्नि की तृप्ति के लिए किए जाने वाले संभोग को त्याज्य बताया है।
जैन दृष्टि में विषयतृप्ति और संतानोत्पत्ति, दोनों ही हेतु सावद्य हैं। संभोग क्रिया में फिर वह भले ही किसी भी हेतु से हो, इंद्रियों के विषयों का सेवन होता ही है। यह संभव है कि कोई संभोग तीव्र परिणामों से करे और कोई हल्के परिणामों से। जो तीव्र परिणामों से प्रवृत्त होता है, वह गाढ़ बंधन करता है और जो हल्के परिणामों से प्रवृत्त होता है, उसका बंधन हल्का होता है।
संतानोत्पत्ति में स्वधर्म पालन जैसी कोई बात नहीं। अपने पीछे अपना वारिस छोड़ जाने की भावना में मोह और अहंकार ही है। अनासक्तिपूर्वक संतानोत्पादन करने वाले ब्रह्मचारी ही हैं, ऐसा नहीं कहा जा सकता। वह भी भोगी है। यदि भावों में तीव्रता नहीं है, तो उसका बंधन कठोर नहीं होगा, इतनी सी बात है। हेतु से दोषपूर्ण क्रिया निर्दोष नहीं हो सकती। अशुद्ध साधन प्रयोजनवश शुद्ध नहीं हो सकता।

(क्रमश:)