छोटे-छोटे संकल्पों से मानव परिवर्तन हो

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छोटे-छोटे संकल्पों से मानव परिवर्तन हो

73वें अणुव्रत अधिवेशन का आगाज

छापर, चाड़वास।
अणुव्रत अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण जी ने कहा कि संयम में इतनी शक्ति होती है कि यह व्यक्ति को ऊँचाइयों पर आसीन कर सकती है। उन्होंने कहा कि किसी भी स्थिति में झूठ नहीं बोलना चाहिए, यहाँ तक कि मजाक में भी नहीं।
आचार्यश्री महाश्रमण जी अणुव्रत विश्व भारती सोसायटी के तीन दिवसीय अधिवेशन के उद्घाटन सत्र में अपने उद्गार व्यक्त कर रहे थे। अणुविभा के पदाधिकारियों तथा देशभर की अणुव्रत समितियों के प्रतिनिधियों को प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए आचार्यश्री महाश्रमण जी ने कहा कि त्याग और तपस्या के बिना संसार के सारे सुख-भोगों की प्राप्ति किसी काम की नहीं है। छोटे-छोटे संकल्पों से भी व्यक्ति का मानस परिवर्तन हो सकता है। अणुव्रत एक मार्ग है, यह सभी समस्याओं का समाधान करता है। अणुव्रतों को अंगीकार करने का आह्वान करते हुए आचार्यश्री ने कहा कि कोई भी व्यक्ति अणुव्रतों को अंगीकार करके अपने जीवन को सफल बना सकता है। उन्होंने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में नैतिकता को बनाए रखने का प्रयास करे।
आचार्यश्री ने अणुविभा के पदाधिकारियों से कहा कि संस्था में प्रामाणिकता और पारदर्शिता होनी चाहिए। जैसे हम अपने आँगन में गंदगी देखना नहीं चाहते, वैसे ही हर हाल में आत्मा को शुद्ध बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए। तभी गुरुदेव तुलसी का ‘सुधरे व्यक्ति, समाज व्यक्ति से, राष्ट्र स्वयं सुधरेगा’ का संकल्प साकार रूप ले सकेगा। आचार्यश्री ने इस अवसर पर अणुव्रत गीत का संगान कर कार्यकर्ताओं में ऊर्जा का संचार किया।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि अणुव्रत की आत्मा हैµसंयम, सदाचार और नैतिकता। जो व्यक्ति अपने जीवन में सुखी रहना चाहता है, उसके लिए जरूरी है कि वह नैतिक बने। उन्होंने एक कहानी के माध्यम से श्रम के साथ नैतिकता और ईमानदारी के महत्त्व को प्रतिपादित किया। उन्होंने कहा कि यदि समाज और देश को ऊँचा उठाना है तो अणुव्रत के नियमों को अपनाना होगा।
अणुव्रत के आध्यात्मिक पर्यवेक्षक मुनि मनन कुमार जी ने कहा कि अणुविभा संभवतः विश्व का इकलौता ऐसा संस्थान है जो व्यक्ति के उन्नयन के बारे में चिंतन करता है। उन्होंने सभी संभागियों से अणुव्रत के नियमों को जन-जन तक पहुँचाने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि गुरुदेव तुलसी ने 1 मार्च, 1949 को अणुव्रत आंदोलन का प्रवर्तन किया था।
अणुविभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष संचय जैन ने कहा कि अणुव्रत आंदोलन के प्रवर्तन के समय अणुव्रत की जितनी जरूरत थी, मौजूदा परिस्थितियों में इसकी उससे भी कहीं अधिक जरूरत है। आज विश्व में नैतिक पतन और पर्यावरण के क्षरण का ग्राफ इतना बढ़ चुका है कि ऐसे कठिन समय में धर्म, जाति और संप्रदाय की परिधि से दूर रहने वाला अणुव्रत दर्शन ही मानवता को सच्ची राह दिखा सकता है। उन्होंने हर कदम पर अपेक्षित सहयोग के लिए अणुविभा टीम तथा अणुव्रत समितियों के प्रतिनिधियों का आभार व्यक्त किया।
अणुविभा के राष्ट्रीय महामंत्री भीखम सुराणा ने विगत वर्ष की गतिविधियों का ब्यौरा प्रस्तुत करने के साथ अणुव्रत के विभिन्न प्रकल्पों में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाली समितियों की भी घोषणा की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया। अधिवेशन के संयोजक प्रताप दुगड़ ने बताया कि दोपहर बाद चाड़वास के गुलाब भवन में आयोजित सत्र में संभागियों ने एक-दूसरे का परिचय प्राप्त किया। इसके बाद पश्चिमांचल और पूर्वांचल की अणुव्रत समितियों के अनुभव साझा सत्र का आयोजन किया गया। रात्रि आठ बजे से आयोजित अणुव्रत चौपाल में संभागियों ने गीतों और कविताओं की प्रस्तुति से समा बाँध दिया।