तेरापंथ धर्मसंघ की संस्थाएँ समाज का सौभाग्य हैं : आचार्यश्री महाश्रमण
भीलवाड़ा, 14 अगस्त, 2021
अमृत पुरुष, महामनीषी आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि शास्त्रकार ने इस सूत्र में ठाणं के नौवें स्थान के 42वें सूत्र में प्रायश्चित के नौ प्रकार बताए गए हैं। पायच्छिते यानी पाप का छेदन करने वाला है, वो प्रायश्चित होता है।
तपस्या और जीव का योग होता है, तो प्रायश्चित शुद्धि हो जाती है। आदमी को गलती, अपराध, दोष हो सकता है। ऐसे लोग कितने मिलेंगे, जिनसे कभी गलती नहीं होती होगी? वीतराग प्रभु की बात अलग है।
छठे गुणस्थान तक के मनुष्यों से तो गलती हो सकती है। साधु संस्था में रहने वाले चारित्रात्माएँ हैं, उनसे भी गलती प्रतिसेवना, अपराध दोष में हो सकते हैं। सर्व सावद्य-योग का त्याग है, फिर भी भीतर में राग भी है, द्वेष भी हो जाता है, तो फिर गलतियाँ भी हो सकती हैं।
दोष लगे ही नहीं, ये तो होना मुश्किल है। छोटे-मोटे दोष लग सकते हैं। ऐसी स्थिति में उपाय हैप्रायश्चित। आदमी बाहर जाता है, तो पैर गंदे हो सकते हैं। स्थान पर आकर पैर को साफ कर लिया तो गंदगी साफ, अगर वो गंदगी साफ नहीं करेगा, ऐसे ही बैठा रहेगा तो कपड़े गंदे हो सकते हैं। वस्त्र को धो लेना, उसके मैल को उतारने का उपाय है। अमृत पुरुष, महामनीषी आचार्यश्री महाश्रमण जी ने महासभा प्रतिनिधि सम्मेलन के शुभारंभ पर पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि संस्कृत शब्द कोष में दो शब्द हैंसमज और समाज। पशुओं का समुह समज कहलाता है। मनुष्य का समुह समाज कहलाता है। समाज अनेक व्यक्तियों का समुह होता है। समाज होता है, वहाँ कुछ आश्वासन भी मिल सकता है। सहयोग और त्राण मिल सकता है। समस्या का समाधान भी मिल सकता है।
तेरापंथी महासभा तेरापंथ समाज की एक प्रतिनिधि सभा है। बड़ा दायित्व है, महासभा का। दायित्व का निर्वहन भी अच्छे ढंग से हो रहा है, ऐसा मुझे लग रहा है। तेरापंथ समाज में आज जो संस्थाएँ हैं, कभी मेरे मन में आया कि थुथकार डालें ऐसी संस्थाएँ हैं। इतनी बढ़िया संस्थाएँ हैं, एक-एक संस्था का नाम ले लो। कितनी उनकी अच्छी गतिविधियाँ हैं।
गुरुकुलवास की गृहस्थों की व्यवस्था को देखूँ तो कितना विकसित व्यवस्था तंत्र चल रहा है। कितनी यात्रा, कितनी व्यवस्थाएँ करती हैं। सब व्यवस्थाएँ तैयार हैं। संस्थाओं में जागरूकता-सजगता है। तेरापंथ समाज के पास आज जो संस्थाएँ हैं, मानो समाज कोई भाग्य है। पुण्य का योग है। कोई काम देने वाला चाहिए, काम करने वाले तैयार बैठे हैं।
बढ़िया संस्थाएँ, बढ़िया कार्यकर्ता और बढ़िया गतिविधियाँ हैं। कमियाँ बता सकूँ, वो भी मेरे ध्यान में नहीं आ रही है। समीक्षा तो होती रहनी चाहिए। निर्णय के साथ क्रियान्विति भी होती है। यह बड़ी सुंदर बात है। कल्याण परिषद के सदस्य जागरूक हैं। महासभा संस्था शिरोमणी है।
स्थानीय तेरापंथी सभाएँ भी जुड़ी हुई हैं। स्थानीय स्तर पर वो कार्य करती हैं। तेरापंथ समाज नाम दिया वो बढ़िया चिंतन है। व्यापक स्तर पर काम हो सकेगा। यह उदार चित्तता है। तेरापंथी समाज नाम आ गया तो सारी संस्थाएँ जुड़ गई। इसमें त्याग की भावना है, सामुदायिक चेतना की भावना है। व्यापक कार्यों में समाज का नाम हो।
ज्ञानशाला का भी अच्छा उपक्रम चल रहा है। और जितना विकास हो सके प्रयास हो।
साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभा जी ने कहा कि मैं महासभा प्रतिनिधि सम्मेलन को दो रूपों में देखती हूँ। उसका एक रूप हैदर्पण का और दूसरा रूप हैकैनवास का। दर्पण में सब कुछ दिखाई देता है, वर्ष भर का लेखा-जोखा सामने आ जाता है। क्या किया, क्या नहीं किया, क्या कर सकते थे, पर नहीं किया। दूसरा रूप है कि अग्रिम वर्ष के लिए भावी योजनाएँ बनाना। जैसे एक चित्रकार कैनवास पर पहले रेखाचित्र अंकित करता है, फिर चित्र बनाता है। कौन-सा कार्य अग्रिम पंक्ति में रखकर करना है। हर कार्यकर्ता का दायित्व है कि वह अपना कृतत्व समाजमुखी बनाएँ।
इसी प्रकार जो दोष रूपी गंदगी लग जाती है, उसको मिटाने का उपाय है, प्रायश्चित। बीमारी होती है, तो दवाई लेकर आदमी उससे मुक्त हो सकता है। चिकित्सा के संदर्भ में चार चीजें देख लेंचिकित्सक, रोगी, रोगी की बीमारी और औषध विधि।
चिकित्सक के रूप में तो तीर्थंकर, आचार्यों या प्रायश्चित देने वाले अधिकृत व्यक्ति को मान लें। दोष करने वाला व्यक्ति रोगी है। जो दोष सेवन किया है, वो बीमारी के समान है। जो प्रायश्चित प्रदाता बताता है, देता है, वो दवाई है। पाँचवीं चीज मैं जोड़ना चाहूँगा, उचित हो तो मान लें। रोगी वो दवाई ले तो रोग ठीक हो सकेगा। चिकित्सक ने दवाई बता दी पर दवाई न ले तो रोग ठीक कैसे हो सकेगा। लिए हुए प्रायश्चित को उतारना चाहिए।
प्रायिश्चत के संदर्भ में एक महत्त्वपूर्ण अर्हता होनी चाहिए कि दोष सेवी व्यक्ति में भद्रता-ॠजुता। ॠजुता से अपनी गलती बता दें। डॉक्टर से बीमारी मत छिपाओ, गुरु से गलती मत छिपाओ। तो रास्ता प्रशस्त हो सकता है। कोई गलती स्वीकार ही नहीं कर रहा है, उसको क्या प्रायश्चित दें। अगर शुद्ध होना है, आगे को ठीक करना है, सरल मन से अपनी गलती योग्य स्थान पर बता दो ताकि इलाज हो सके।
एक बार तो पूरे संयम जीवन की आलोयणा हो जाए तो बढ़िया है तो स्नान सा हो सकता है। आत्मा आगे शुद्ध होकर जाए।
प्रायश्चित के नौ प्रकार बताए गए हैंआलोयना के योग्य, प्रतिक्रमण के योग्य, आलोयना और प्रतिक्रमण दोनों के योग्य, विवेक के योग्य, व्युत्सर्ग के योग्य, तप के योग्य, छेद के योग्य, मूल के योग्य और अनवस्थाप्य के योग्य वर्तमान समय में प्रायश्चित ले लेना सक्षम उपाय है, अपनी आराधना-शुद्धता हो जाए।
काँटा चुभ गए है, पड़ा रहेगा तो तकलीफ देगा, काँटा निकाल दो। ठीक-ठाक कर दो, आराम हो जाएगा। विशेष दोष भी काँटा है, स्वयं निकाल लो या दूसरे से निकलवा लो। उसी में लाभ है। वरना दोष करते-करते उनका फैलाव हो जाएगा। शास्त्र में रास्ता बताया है, छद्मस्थ हो तो गलती हो सकती है, प्रायश्चित ले लो, ठीक हो जाओगे।
प्रायश्चित के लिए डरो मत, संकोच मत करो, जो होगा सो होगा। महाव्रतों या समिति-गुप्ति में दोष लग जाए तो उनका शुद्धिकरण का उपाय प्रायश्चित है, वो हमें काम में यथोयोग्य लेते रहना चाहिए। शास्त्रकार ने बताया है, प्रायश्चित का उपाय काम में लो ताकि संयम का शरीर स्वस्थ रहे। साधु संस्था व आम जनता के लिए भी काम की बात है। सरलता से स्वीकार कर लो ताकि आगे का रास्ता प्रशस्त बन सके।
पूज्यप्रवर ने तपस्या के प्रत्याख्यान करवाए।महासभा अध्यक्ष सुरेश गोयल ने कहा कि तेरापंथ के विकास में श्रावक समाज का भी महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। मैं इस सम्मेलन की निष्पत्ति व सफलता की कामना करता हूँ। महासभा नित्य नए क्षितिज छूती रहे। पूज्यप्रवर का वृहद-हस्त महासभा पर बना रहे।
मुख्य न्यासी महासभा भंवरलाल बैद ने कहा कि पूज्यप्रवर की अहिंसा यात्रा अपने मिशन के साथ आगे बढ़ रही है।
कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया। महासभा प्रतिनिधि सम्मेलन का संचालन महासभा के महामंत्री रमेश सुतरिया ने किया।