हर मानव नास्तिकता से आस्तिक बनकर आत्मकल्याण कर सकता है
कांकरोली।
मृगसर वदी एकम के दिन प्रस्थान के पूर्व साध्वी मंजुयशा जी ने परदेशी राजा का गद्यमय-पद्यमय सरस भावों से व्याख्यान सुनाया। प्रवचन का प्रारंभ साध्वीश्री ने नमस्कार महामंत्र के मंगल गान से किया। साध्वीश्री जी ने कहा कि भगवान महावीर के शासन में श्वेतांबिका नगरी में एक परदेशी नाम का राजा था। वह धर्म-कर्म के रहस्य से बिलकुल दूर रहने वाला पूरा ही नास्तिक था। राजा के चित्त का नाम का मंत्री था। वह जैन धर्म का पक्का अनुयायी एवं वीतराग प्रभु का पक्का भक्त था। धर्म के प्रति उसके भीतर पूर्ण अनुराग था। एक बार ज्ञानी पुरुष केशी स्वामी का नगरी में पदार्पण हुआ। राजा जब संतों के सामने आया तो संत ज्ञानी थे, उन्होंने उसकी नास्तिकता को जान लिया। राजा के मन में अनेक आत्मा, कर्म संबंधी आदि जिज्ञासाएँ थीं। उन जिज्ञासाओं का सटीक समाधान पाकर उसका अहं चूर-चूर हो गया और वह जैन धर्म का पक्का अनुयायी बन सच्चे श्रावक की कोटि में आ गया। साध्वीवृंद ने एक गीत प्रस्तुत किया। पूरी परिषद ने भी साध्वीवृंद से करबद्ध क्षमायाचना की। प्रवचन के तत्काल बाद मंगलपाठ सुनाया और प्रज्ञा विहार से प्रस्थान किया। पूरे जुलूस के साथ महिलाएँ, कन्याएँ, युवक अपने-अपने गणवेश में अन्य सभी भाई-बहन सैकड़ों की संख्या में बड़ी कतार में साध्वीवृंद के साथ कदम दर कदम चल रहे थे। साध्वीश्री जी सुरेश कुमार कचछारा के निवास स्थान पर पधारे।