आत्मा से परमात्मा बनने की साधना के लिए मनुष्य गति का करें उपयोग: आचार्यश्री महाश्रमण
ईडवा, 22 नवंबर, 2022
क्षमा के सागर आचार्यश्री महाश्रमण जी आज प्रातः डेगाना से 14 किलोमीटर का विहार कर ईडवा पधारे। ईडवा वासियों ने मानवता के मसीहा का भावभीना स्वागत किया। मुख्य प्रवचन में मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए क्षमामूर्ति ने फरमाया कि दुनिया में अनंत प्राणी हैं। उन अनंत प्राणियों में थोड़े से संघी मनुष्य भी हैं। मनुष्य एक ऐसा प्राणी है, जिसमें पूर्णतया योग्यता आ जाए तो सीधा मोक्ष में जा सकता है। इस जीवन के बाद मुक्ति को प्राप्त कर सकता है। चाहे तिर्यंच, नरक या देव गति में ही क्यों न हो, उस जन्म में कोई सीधा मोक्ष में नहीं जा सकता है। मनुष्य जन्म एक द्वार है, इस भवारण्य जंगल से निकलने का एक मार्ग है। इस मानव जीवन से आत्मा से परमात्मा बनने की विशेष साधना की जा सकती है। अगर ये गेट ऐसे ही निकल जाए तो पीछे वापस चक्कर खाना पड़ सकता है। यह एक प्रसंग से समझया।
एक बार मनुष्य जन्म मिल गया और इसमें भी धर्म नहीं किया तो मरने के बाद वापस कब मनुष्य जन्म मिलेगा क्या पता? अभी तो मनुष्य जन्म प्राप्त है। इस गेट से अभी निकल सके या उसके निकट पहुँच सके तो हमारे लिए श्रेयस्कर है। इस मानव जीवन को यों ही गँवा देने वाला नासमझ आदमी है। इस मनुष्य जन्म को पाकर कोई आदमी पाप कर्म में जाता है, तो आगे उसका क्या होगा? आदमी चिंतन करे कि मेरा वर्तमान जीवन भी अच्छा रहे। वर्तमान में तो हम पूर्व की पुण्याई भोग रहे हैं, पर आगे के लिए हम क्या कर रहे हैं? शरीर अध्रुव है। जीवन अशाश्वत है, धन-संपत्ति भी स्थायी नहीं है, मृत्यु तो धीरे-धीरे निकट आ रही है। मानव जीवन में संवर-निर्जरा की साधना हो तो जीवन सफल-सुफल बन सकता है।
जैन-अजैन कोई हो जीवन में अणुव्रत के छोटे-छोटे नियम आ जाएँ तो अच्छा होगा। ‘इंसान पहले इंसान फिर हिंदू या मुसलमान’ संयम और शांति से जीएँ और जितना हो सके संयम और शांति का मार्ग औरों को बताने का प्रयास करें। हिंसा से दुःख पैदा होता है। अहिंसा से सुख मिलता है। हमारी जीवनशैली अहिंसा से ओत-प्रोत हो। हम मानव जीवन को धर्म की दृष्टि से सुफल बनाने का प्रयास करें, यह काम्य है। आचार्यप्रवर ने अहिंसा यात्रा के तीन सूत्रों को समझाकर स्थानीय लोगों को संकल्प स्वीकार करवाए। साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि आचार्यप्रवर जहाँ पधारते हैं वहाँ परिषद अच्छी संख्या में जम जाती है, उसका कारण है पूज्यप्रवर का दृष्टिकोण और परोपकार की भावना। संत परहित में ही अपना उद्यम करते हैं। इसलिए वे सबके लिए अभिवंदनीय बन जाते हैं। पूज्यप्रवर की अभिवंदना में पूर्व सांसद गोपालसिंह शेखावत, तेरापंथ महिला मंडल, ज्ञानशाला ज्ञानार्थी, तेरापंथ समाज ने समूह गीत से अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।