जीने की कला का महत्त्वपूर्ण सूत्र है-दया-अनुकंपा: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

जीने की कला का महत्त्वपूर्ण सूत्र है-दया-अनुकंपा: आचार्यश्री महाश्रमण

पादुकलां, 24 नवंबर, 2022
मारवाड़ का पादुकलां एक अच्छा श्रद्धा का क्षेत्र है। तेरापंथ के आद्यप्रवर्तक आचार्यश्री भिक्षु भी वि0सं0 1837 में पादुकलां पधारे थे। उन्हीं के परंपर पट्टधर आचार्यश्री महाश्रमण जी आज प्रातः नौ किलोमीटर विहार कर पादुकलां पधारे। पूज्यप्रवर ने मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि जीने की कला का एक महत्त्वपूर्ण सूत्र हैµदया-अनुकंपा। मन में प्राणियों के प्रति अनुकंपा-दया रखना। दया का एक महत्त्वपूर्ण आयाम हैµकिसी दूसरे को तकलीफ न देना। आदमी के मन में अनुकंपा का भाव होता है, तो वह जानबूझकर दूसरों को कष्ट नहीं देता। हम दया के अधिकारी बन जाएँ। जिसके मन में अहिंसा, त्याग का भाव रहता है, वह दया का पालन कर सकता है।
राग के समान दुःख नहीं और त्याग के समान सुख नहीं। त्याग धर्म है, भोग अधर्म है। व्रत धर्म है, अव्रत अधर्म है। तरना और तारना धर्म का काम होता है। इसके लिए दया की नाव पर बैठो। अपनी आत्मा को पापों से बचाकर रखना ही दया है। त्याग और संयम जीवन की एक कला है। संयम ही जीवन है। संयम और त्याग मोक्ष प्राप्त करा सकते हैं। संत तो अकिंचन होते हैं। पादुकलां तेरापंथ से जुड़ा क्षेत्र है। आचार्यश्री भिक्षु ने वि0सं0 1837 का चातुर्मास यहाँ किया था। आज यहाँ आना हुआ है। साधु के पास जो है, वो गृहस्थों के पास नहीं है, यह एक प्रसंग से समझाया कि अमूल्य हीरे से ज्यादा कीमती संन्यास है। आचार्य भिक्षु के पास संयम और त्याग रूपी हीरा था।
गृहस्थ को भी अधिकार है, धर्म करने का। प्रेक्षाध्यान से जीवन में समता आ जाती है। समता से फिर अहिंसा, संयम और तप जीवन में आ सकते हैं। ये जीवन के महत्त्वपूर्ण सूत्र हैं। जीवन की क्रिया में संयम हो। जीने के तौर-तरीके अच्छे हैं तो जीवन अच्छा है। हम संयमपूर्वक कलापूर्ण जीवन जीएँ। दूसरों को भी संयम से जीवन जीने की प्रेरणा दें। वर्तमान जीवन भी अच्छा और आगे का जीवन भी अच्छा रहे। पादुकलां के श्रावक भी हैं, जनता भी है। सभी में सद्भावना, नैतिकता, नशामुक्ति जैसी बातें रहें। यह काम्य है। सभी को अहिंसक जीवनशैली हेतु तीनों संकल्प समझाकर स्वीकार करवाए।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि गुरुदेव का आज पादुकलां पधारना हुआ है। यह आचार्य भिक्षु के भी विहरण का क्षेत्र रहा है। शील की नवबाड़ की रचना आचार्य भिक्षु ने यहीं की थी। आचार्य भिक्षु ने इस धरती को पावन बना दिया था। वर्तमान में आचार्यप्रवर यहाँ पधारे। आचार्य भिक्षु के जीवन प्रसंगों को समझाया। पूज्यप्रवर की अभिवंदना में मदन बोहरा, पादुकलां महिला मंडल, कन्या मंडल, तेयुप, ज्ञानशाला ज्ञानार्थी, ज्ञानचंद आंचलिया एवं श्रावकों ने पूज्य चरणों में अपनी भावना रखी। शांतिलाल जैन ने कच्छ संघ की ओर से पूज्यप्रवर के चरणों में अपनी भावना रखी। पूज्यप्रवर ने महती कृपा कराते हुए सन् 2025 का मर्यादा महोत्सव भुज में करने का फरमाया। बाबूलाल सिंघवी ने भी अपनी भावना अभिव्यक्त की। कीर्तिभाई ने भी अपनी भावना रखी। साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी, साध्वीवर्या सम्बुद्धयशा जी एवं मुख्य मुनि महावीर कुमार जी ने कच्छ के बारे में उद्गार व्यक्त किए। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।