ज्ञानार्जन के सशक्त माध्यम हैं आँख और कान: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

ज्ञानार्जन के सशक्त माध्यम हैं आँख और कान: आचार्यश्री महाश्रमण

बांजाकुड़ी, 30 नवंबर, 2022
तीर्थंकर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमण जी 10 किलोमीटर का विहार कर आनंदपुर कालू होते हुए बाजाकुड़ी स्थित राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय पधारे। परमपूज्य कालू के परंपर पट्टधर ने मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि हमारे शरीर में पाँच ज्ञानेंद्रियाँ हैं। श्रोतेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय और स्पर्शनेन्द्रिय। इन ज्ञानेन्द्रियों के माध्यम से हमें ज्ञान प्राप्त होता है। बाह्य जगत से जोड़ने में ये पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ माध्यम बनती हैं। ज्ञान प्राप्त करने में दो इंद्रियाँ विशेष महत्त्व वाली हैं। वे हैं, श्रोतेन्द्रिय और चक्षुरिन्द्रिय। कान से हम सुनते हैं, तो हमें कितनी जानकारियाँ हो जाती हैं। दुनिया को देखने में आँखों का उपयोग करते हैं। आँखों से देखी और कानों से सुनी बात का विश्वास होता है। आँखों से पुस्तक पढ़ने से कितना ज्ञान हो जाता है।
शास्त्रकार ने कहा कि सुनकर के आदमी कल्याण की बात को जानता है और पाप को भी जान लेता है। उसके बाद आदमी ये ध्यान दे कि क्या करना, क्या नहीं करना? पुराने समय में तो हमारा ज्ञान सुनते-सुनते गुरु परंपरा से आगे से आगे चला होगा। ज्ञान के साथ आचार भी ठीक हो तो जीवन में बहुत ज्यादा अच्छापन होता है। सुनने में जागरूकता रहे तो बात को अच्छी तरह ग्रहण किया जा सकता है। सुनकर मनन करके अच्छी बातों को जीवन में उतार लिया जाए, बस यह लक्ष्य रखें। प्रवचन सुनने से आदमी के संस्कारों में परिष्कार हो सकता है। संस्कार अच्छे हो सकते हैं।
कोश जानना पूरा ज्ञान नहीं होता है। सुनकर जीवन में उतार लेना अच्छा होता है। विद्या के संस्थानों में ज्ञान भी दिया जाता है। साथ में अच्छे संस्कार भी बच्चों को दिया जाए तो अच्छा काम हो सकता है। संस्कार अच्छे नहीं तो परिवार-समाज के लिए अच्छा नहीं होता है। विद्यार्थी समस्या का समाधान करने वाले हों। मारवाड़ का एरिया है, यहाँ आचार्य भिक्षु का जन्म, विहार और महाप्रयाण हुआ था। पूज्य जयाचार्य भी मारवाड़ से जुड़े हैं। संतों के प्रवास से अच्छे संस्कार-जानकारियाँ प्राप्त हो सकती हैं। कल्याण को जाना जा सकता है। देश और विश्व अच्छा हो। शांति चाहिए तो अहिंसा के पथ पर चलना चाहिए। हिंसा से दुःख पैदा होता है। सब प्राणी सुख चाहते हैं, किसी को कोई दुःख न दें, आध्यात्मिक सहयोग दें।
हमारा सबके साथ मैत्री भाव रहे। संयममय, कल्याणमय जीवन हो। जागो और जगाओ, उठो ओर उठाओ। संत परंपरा स्वयं जागती रहे, औरों को जगाती रहे। ज्ञान हो तो आदमी अभाव में भी दुःखी नहीं बनता। समस्या होने पर भी भीतर से सुखी रहता है। पूज्यप्रवर ने विद्यालय के विद्यार्थियों और स्थानीय लोगों को सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति को समझाकर उनके संकल्प स्वीकार करवाए। पूज्यप्रवर के स्वागत में विद्यालय के प्रिंसिपल सुरेश कुमार, सरपंच दशरथ कमल की ओर से हिम्मत सिंह ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया। व्यवस्था समिति की ओर से विद्यालय परिवार एवं सरपंच का भी सम्मान किया गया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।