संत हरते हैं-पाप, ताप और संताप
चेन्नई।
साध्वी डॉ0 मंगलप्रज्ञा जी ने कहा कि जहाँ संतचरण टिकते हैं, वहाँ प्रकाश ही प्रकाश होता है। चंद्र ताप का, गंगा पाप का और संत पाप, ताप और संताप का हरण करने वाले होते हैं। साध्वीश्री जी ने इतिहास प्रसिद्ध भरत चक्रवर्ती का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए कहा कि भरत जैसे अनेक समृद्ध व्यक्तित्व हुए हैं, जिन्होंने राग से वैराग्य और वैराग्य से वीतराग पद प्राप्त किया। महावीर ने कहा कि हर व्यक्ति आत्मनिरीक्षण की दिशा में प्रस्थान करे। आवश्यकता है हम सिर्फ महावीर की जय ही नहीं बोलें महावीर की राह पर चलें, क्योंकि हम महावीर पंथी हैं।
मधुर गीत का रसपान कराने के पश्चात साध्वी डॉ0 राजुलप्रभा जी ने कहा कि जिनशासन की प्रभावना में चतुर्विध संघ का महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। साध्वी डॉ0 मंगलप्रज्ञा जी प्रतिभासंपन्न प्रबुद्ध साध्वी हैं, जिन्होंने समणी वर्ग के 27 वर्षों में अनेक यात्राएँ की। अपनी ज्ञान चेतना से जन-जन को लाभान्वित किया। भगवान महावीर की वाणी विदेशों में पहुँचाई। दीक्षा के मात्र चार दिन बाद आचार्यश्री महाश्रमण जी ने इन्हें अग्रणी बना दिया।
साध्वी डॉ0 मंगलप्रज्ञा जी ने अपनी सहवर्ती साध्वियों के साथ जैन भवन, व्यासरपाड़ी पधारी, तो वहाँ विराजित आचार्य कल्पतरु सूरि की शिष्या साध्वी जयरेखा जी आदि ग्यारह साध्वियों से आपका आध्यात्मिक मिलन हुआ। दोनों ओर की साध्वियों ने मिलन पर प्रसन्नता जताते हुए आपसी सुखपृच्छा की। इस अवसर पर तेरापंथ साहूकारपेट ट्रस्ट, अध्यक्ष विमल चिप्पड़, उपासक पद्म आंचलिया, ताराचंद आंचलिया एवं तेरापंथ महिला मंडल की पूर्व अध्यक्षा कमला गेलड़ा, श्रावक लालचंद मेहता आदि उपस्थित थे।