शिक्षा का लक्ष्य है - जीवन में संस्कारों का निर्माण
बावड़ी, भीलवाड़ा।
राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय में साध्वी डॉ0 परमयशा जी के सान्निध्य में ‘शिक्षा का लक्ष्य है संस्कारों का निर्माण’ के कार्यक्रम का आयोजन हुआ। साध्वी परमयशा जी ने कहा कि विद्यालय एक नंदनवन है। अध्यापक इसके कल्पवृक्ष हैं। विद्यार्थी इसके मुस्कराते फूल हैं। शिक्षा पराग है। शिक्षा का लक्ष्य है संस्कारों का जागरण, नैतिक मूल्यों का विकास। शिक्षा-साक्षर और शिक्षित बने। आग्रह नहीं अनाग्रही बने। मन से सुपर मेन होने के लिए एकलव्य जैसी गुरु निष्ठा हो। श्रवण कुमार जैसी मातृ-पितृ भक्ति हो। विवेकानंद जैसी चारित्र निष्ठा हो। जीवन-विज्ञान जीने की कला सिखाता है। जीवन-विज्ञान का प्रयोग प्रार्थना सभा में नियमित रहे, ताकि आप सब लाभान्वित हों। साध्वी विनम्रयशा जी ने कहा कि आपका भविष्य श्रेष्ठ बने इसके लिए जरूरी है बड़ों का आदर-सत्कार करें।
साध्वी मुक्ताप्रभा जी ने स्मरण शक्ति विकास के विविध प्रयोग एवं महाप्राण ध्वनि, शशांक आसन आदि के प्रेक्टिकल प्रयोग करवाए। साध्वी कुमुदप्रभा जी ने गुस्से को शांत करने के लिए अनेक प्रयोग बताते हुए कहा कि विद्यार्थी जीवन में गुस्सा डेंजर है। गुस्से से विद्या प्राप्त नहीं होती। मीडिया प्रभारी नीलम लोढ़ा ने बताया कि कार्यक्रम में माणक दुगड़ एवं चंद्रकांता चोरड़िया ने मंगलाचरण किया और अपने विचार व्यक्त किए। विद्यालय के प्रधानाचार्य ने कहा कि हमारा सौभाग्य है कि संतों का शुभागमन हमारे विद्यालय के प्रांगण में हुआ। विद्यालय में लगभग 350 विद्यार्थियों ने शांत भाव से कार्यक्रम सुना।