वह जीवन धन्य हो जाता है जिसमें व्यक्ति को चारित्र और संयम प्राप्त होता है: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

वह जीवन धन्य हो जाता है जिसमें व्यक्ति को चारित्र और संयम प्राप्त होता है: आचार्यश्री महाश्रमण

सिरियारी की पावन भूमि में जैन भगवती दीक्षा समारोह का भव्य आयोजन

सिरियारी, 8 दिसंबर, 2022
सिरियारी में दूसरे दिन का पूज्यप्रवर का पावन प्रवास और दीक्षा समारोह का आयोजन। आज सात मुमुक्षु तेरापंथ की जैन भगवती दीक्षा पूज्यप्रवर से ग्रहण करने जा रहे हैं। मुनि हेमराज जी की दीक्षा स्थली भी सिरियारी है। संयम प्रदाता आचार्यश्री महाश्रमण जी द्वारा समुच्चारित नमस्कार महामंत्र से कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ। धीर-गंभीर, संत शिरोमणी आचार्यश्री महाश्रमण जी ने महावीर स्तुति करते हुए फरमाया कि हमारी आत्मा बहुत बड़ी यायावर है। आत्मा से बड़ा यायावर कौन है? हमारी आत्मा ने अनंत-अनंत जन्म-मरण कर लिए हैं। वह जीवन धन्य है जब जीव को सम्यक्त्व व संयम प्राप्त हो जाता है।
संसार में बहुत से रत्न हीरे हैं पर सम्यक्त्व रत्न से बड़ा कोई रत्न नहीं है। सम्यक्त्व से बड़ा कोई मित्र, बंधु या लाभ नहीं होता। सम्यक्त्व है, तो फिर संयम बड़ा होता है। चारित्र के बिना सम्यक्त्व हो सकता है, पर सम्यक्त्व के बिना चारित्र की उपलब्धि नहीं हो सकती। वह जीवन धन्य है, जहाँ चारित्र और संयम प्राप्त होता है। सम्यक्त्व तो इस जीवन के बाद साथ जा सकता है, पर चारित्र नहीं जाता। क्षायिक सम्यक्त्व प्राप्त हो गया है, तो वह स्थायी हो जाता है। मोक्ष का रास्ता प्राप्त हो जाता है।
यह सिरियारी का भिक्षु समाधि स्थल संस्थान हमारे धर्मसंघ का महत्त्वपूर्ण स्थान है। आचार्य भिक्षु की तपोभूमि है। हमारे आद्य-प्रवर्तक से जुड़ा स्थान है। वो नागराज या यक्षराज केलवा में आचार्य भिक्षु से आकर्षित हुए थे। आचार्य भिक्षु में कैसी आराधना, साधना, ज्ञान और बौद्धिक क्षमता रही होगी। आचार्य भिक्षु संघर्ष में भी हर्ष में रहे, यह महापुरुष का एक लक्षण माना जा सकता है।
अच्छे शिष्यों का मिलना भी आचार्य का भाग्य होता है। आचार्य भिक्षु को कई अच्छे-अच्छे शिष्य मिले थे। मुनि हेमराज जी जैसे शिष्य उन्हें मिले थे। एकमात्र मुनि हेमराज जी की दीक्षा द्विशताब्दी आचार्यों द्वारा मनाई गई थी। वे शासन के महास्तंभ थे। जयाचार्य तो उन्हें अपना विद्या गुरु मानते थे। आचार्य भिक्षु को भारीमालजी जैसे उत्तराधिकारी व खेतसी-टोकरजी जैसे विनीत संत मिले थे। आज दीक्षा समारोह यहाँ आयोजित हो रहा है। मुमुक्षु यह अनुप्रेक्षा करें कि जितनी दीक्षाएँ हो रही हैं, उतनी वापस नई मुमुक्षु बनें।
पूज्यप्रवर ने अभिभावकों से लिखित व मौखिक आज्ञा ली। यह वीड़ियो रिकॉर्डिंग भी बड़ा प्रमाण होता है। मुमुक्षुओं की भी मौखिक आज्ञा ली। णमोत्थुणं समणस्स भगवओ महावीरस्स का स्मरण करते हुए परम पावन ने आचार्य भिक्षु व उनकी उत्तरवर्ती परंपरा का स्मरण करते हुए गुरुदेव तुलसी व आचार्यश्री महाप्रज्ञजी का स्मरण किया। रत्नाधिक साधुओं को वंदन किया। तत्पश्चात् नमस्कार महामंत्र का उच्चारण कर अर्हत वाणी का उच्चारण करते हुए पूज्यप्रवर ने सातों मुमुक्षु भाई-बहनों को सामायिक पाठ के उच्चारण से आजीवन तीन करण तीन योग से सावद्य योग का त्याग करवाया। अब ये साधु-साध्वी संघ से जुड़ गए हैं। नव दीक्षितों ने तीन बार प्रदक्षिणा कर गुरु वंदना की।
पूज्यप्रवर ने नव दीक्षितों को इर्यापथिक सूत्र के उच्चारण से अतीत की आलोचना करवाई। पूज्यप्रवर ने नव दीक्षित साधुओं का केश लंुचन संस्कार करते हुए समझाया कि अब इनकी चोटी गुरु के हाथ में आ गई है। साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने नव दीक्षित साध्वियों का केश लोच का संस्कार संपन्न किया। पूज्यप्रवर ने अर्हत वाणी के साथ आशीर्वाद फरमाते हुए नव दीक्षित साधुओं को अहिंसा की साधना में सहयोगी रजोहरण प्रदान करवाया। नव दीक्षित साध्वियों को साध्वीप्रमुखाश्री जी ने रजोहरण प्रदान करवाया। पूज्ययप्रवर ने नामकरण संस्कार संपन्न कराते हुए मुमुक्षु शुभम का नया नाम मुनि चिन्मय प्रदान कराते हुए मुनि दिनेश कुमार जी को सौंपा। मुमुक्षु मुदित का नया नाम मुनि मेधावी कुमार रखते हुए मुनि मनन कुमार जी को सुपुर्द किया। मुमुक्षु दक्ष का नया नाम मुनि देवकुमार रखते हुए मुनि कीर्तिकुमार जी को सुपुर्द किया।
मुमुक्षु सोनल का नाम साध्वी स्तुतिप्रभा, मुमुक्षु खुशबू का नाम साध्वी क्षितिप्रभा, मुमुक्षु मनीषा का नया नाम साध्वी मानसप्रभा एवं मुमुक्षु तुलसी का नाम साध्वी तेजसप्रभा रखा। सभी नवदीक्षितों को पूज्यप्रवर ने शिक्षाएँ प्रेरणा प्रदान करवाई। श्रावक समाज ने नवदीक्षितों को प्रथम वंदना की। कार्यक्रम से पूर्व सभी मुमुक्षुओं ने अपनी भावना श्रीचरणों में अभिव्यक्त की। पारमार्थिक शिक्षण संस्था के कोषाध्यक्ष जसराज बुरड़ ने आज्ञा पत्र का वाचन किया। मुमुक्षुओं के अभिभावकों ने लिखित आज्ञा पत्र पूज्यप्रवर को समर्पित किए।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि जो व्यक्ति चलता है, वह अपने लक्ष्य तक पहुँचता है। पराक्रम करने वाला सफल होता है। पुरुषार्थ भी सही दिशा में होना चाहिए। तप संयम में पराक्रम करने वाला लक्ष्य प्राप्त कर सकता है। दीक्षा लेने वाला मंजिल तक पहुँचने का प्रयास करता है। गुरु मार्ग दिखाने वाले होते हैं। हर व्यक्ति दीक्षा के कठोर जीवन को स्वीकार नहीं कर सकता। चारित्र मोहनीय कर्म का विलय होने पर ही दीक्षा प्राप्त कर सकता है। दीक्षा ग्रहण करने के कई निमित्त बन सकते हैं। दीक्षा लेने के पश्चात व्यक्ति निश्चिंत हो जाता है। सारी चिंताएँ गुरु चरणों में समर्पित हो जाती हैं। भीलवाड़ा तेयुप ने भिक्षु पंचांग का अनावरण किया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।