राजा अपने देश में पूजा जाता है, परंतु विद्वान् सर्वत्र पूजनीय होता है: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

राजा अपने देश में पूजा जाता है, परंतु विद्वान् सर्वत्र पूजनीय होता है: आचार्यश्री महाश्रमण

राणावास, 10 दिसंबर, 2022
सिरियारी का त्रिदिवसीय प्रवास पूरा कर शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण जी राणावास पधारे। पूज्यप्रवर ने मंगल प्रेरणा प्रदान करते हुए फरमाया कि आदमी के जीवन में ज्ञान का बहुत महत्त्व है। ज्ञान एक पवित्र तत्त्व है। अध्यात्म विद्या का अपना ज्ञान है, तो लौकिक विद्याओं का भी अपना ज्ञान होता है। शिक्षा के प्रति लोगों का रूझान है, तो सरकार भी विद्या-संस्थानों पर ध्यान देती है। शास्त्रकार ने विद्या-प्राप्ति के पाँच बाधक तत्त्व बताए हैं। उनमें पहला कारण बताया-अहंकार। विद्यार्थी में ज्ञान और ज्ञानदाता के प्रति विनय होना चाहिए। ज्ञान के प्रति आकर्षण हो।
दूसरी बाधा-आक्रोश की वृत्ति। विद्यार्थी शांत प्रवृत्ति का हो। तीसरी बाधा है-प्रमाद है, विकथा करता है, नींद ज्यादा लेता है, नशा करता है, तो प्रमाद भी बाधक है। चौथी बाधा है-रोग। शरीर में रोग है या मन में रोग है, तो बीमार आदमी कितना पढ़ पाएगा। ज्ञान प्राप्ति के लिए शरीर और मन का स्वास्थ्य भी चाहिए। पाँचवाँ बाधक तत्त्व बताया गया-आलस्य। यह बड़ा शत्रु है जो उसके मन में रहता है। आदमी पुरुषार्थ करे। रत्न आदमी को खोजने के लिए नहीं निकलता। आदमी को रत्न की खोज करनी होती है। खोज करने पर रत्न मिल सकता है। श्रम के समान कोई बंधु नहीं है। पुरुषार्थ करने वाला अवसाद को प्राप्त नहीं होता है। इन पाँच बाधक तत्त्वों से विद्यार्थी बचने का प्रयास करे तो वह विद्यावान बन सकता है। विद्या धन है।
राजा अपने देश में पूजा जाता है, पर विद्वान् सर्वत्र पूजा जाता है। विद्या-विहीन है, तो जिंदगी में बहुत कमी है। लौकिक शिक्षा के साथ अध्यात्म ज्ञान को प्राप्त कर आदमी राग से वैराग्य की ओर आगे बढ़े। श्रेयों में अनुरक्त हो जाए। चित्त मैत्री भाव से भावित हो जाए। वह ज्ञान जिन शासन में है। विद्या परिश्रम को माँगती है, यह एक प्रसंग से समझाया कि विद्यार्थी अंक पाने के लिए ही न पढ़े, ज्ञान भी अर्जित करे। आज हम लोग राणावास आए हैं। राणावास तो विद्या-भूमि है। विद्या के साथ नैतिकता, अहिंसा, जीवन-विज्ञान भी जुड़ा रहे। अच्छे संस्कार विद्यार्थियों में परिणत होते जाएँ। संस्कारयुक्त शिक्षा दी जाए।
आचार्यश्री के स्वागत में जैन विश्व भारती के अध्यक्ष अमरचंद लुंकड़, मुंबई क्षेत्र के सांसद संजीव नाईक, श्री जैन श्वेतांबर तेरापंथी मानव हितकारी संघ के अध्यक्ष संपतमल भंडारी, मंत्री रतनचंद सुराणा ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। तेरापंथ महिला मंडल की सदस्याओं ने स्वागत गीत का संगान किया। कांठा महिला शिक्षण संघ द्वारा आचार्यश्री के श्रीचरणों में अभिनंदन पत्र अर्पित किया गया। क्षेत्रीय विधायक सुखवीर सिंह जोजावर ने कहा कि आज मेरा अहोभाग्य है कि युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण जी का मंगल पदार्पण हुआ है। मैं क्षेत्र की समस्त जनता की ओर से आपका हार्दिक स्वागत-अभिनंदन करता हूँ। मंगल प्रवचन के उपरांत आचार्यश्री प्रवास स्थल की ओर पधारे और कुछ मात्र दो घंटों से भी कम ठहराव के बाद पुनः सांध्यकालीन विहार के लिए गतिमान हुए। आचार्यश्री लगभग पाँच किलोमीटर का विहार कर गादाणा में पधारे तो स्वागतोत्सुक गादाणावासियों ने अपने आराध्य का भावभीना अभिनंदन किया। गादाणा गाँव भी मानो महामानव के आगमन मात्र से ही आध्यात्मिक ऊर्जा से ओतप्रोत नजर आ रहा था। स्वागत में उपस्थित श्रद्धालुओं के बुलंद जयघोष व भव्य जुलूस के रूप में उपस्थित जनता को अपने आशीष से आच्छादिल करते गाँव के मध्य स्थित राजकीय प्राथमिक विद्यालय में पधारे। जहाँ आचार्यश्री का रात्रिकालीन प्रवास हुआ।