गलत का खंडन करो, सही का मंडन करो: आचार्यश्री महाश्रमण
सिरियारी, 9 दिसंबर, 2022
भैक्षव शासन के एकादशम अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण जी का सिरियारी में तीसरे दिन का प्रवास। महातपस्वी ने प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि आदमी को वर्तमान पर भी ध्यान देना चाहिए और वर्तमान में भविष्य के संदर्भ में यथोचित्य ध्यान देना चाहिए। तीन काल हैंµअतीत, वर्तमान और भविष्य। इन तीनों में सारा काल समाहित हो जाता है। सबसे छोटा वर्तमान होता है। अतीत और भविष्य अनंत विशाल है। भविष्य पर हम ध्यान दें और अतीत से प्रेरणा ली जा सकती है। परम पूज्य भिक्षु स्वामी हमारे प्रेरणा के स्रोत हो सकते हैं। वे अतीत के व्यक्तित्व हैं। दसों आचार्य अतीत में हुए हैं।
यह सिरियारी आचार्य भिक्षु से जुड़ा स्थान। यह भिक्षुमय वातावरण हो सकता है। आचार्य भिक्षु हमारे धर्मसंघ के आद्य आचार्य गुरुदेव हैं। उनका अपना वाङ्मय है। उनका साहित्य सिद्धांतपरक है, जिसमें तत्त्वज्ञान की बातें हैं। साहित्य आख्यानपरक भी है। आख्यान के द्वारा सिद्धांत की बात को रोचक आकार भी दिया जा सकता है। समझाने-समझने में सुविधा हो सकती है। आचार्य भिक्षु प्रसंगों से, बातों को समझाते थे। जिसके गले जिस तरीके से उतर सके उस तरीके को काम में लिया जा सकता है। मूल बात समझ में आनी चाहिए। दान-दया, तत्त्व ज्ञान व मिथ्यात्व की करनी के संदर्भ में उनका मंतव्य है। उनके साहित्य में हमें खंडन की बात भी मिलती है। कहीं-कहीं खंडन भी आवश्यक और उपयोगी हो सकता है। गलत का खंडन करो, सही का मंडन करो।
आग्रही-दुराग्रही उसकी युक्ति को वहाँ लागू करना चाहता है, जहाँ उसकी मान्यता है। आग्रहरहित आदमी है, वो अपनी गति से वहाँ ले जाएगा जहाँ युक्ति संगत बात होती है। आग्रह रहित मनरूपी बछड़ा युक्तिरूपी गाय के पीछे चलता है। आदमी न्याय संगत बात पर ध्यान दे। आग्रहहीन गहन चिंतन का द्वार हमेशा खुला रहे। आचार्य भिक्षु के हम जीवन को पढ़ें। उनमें प्रतिभा, बुद्धि कौशल विशिष्ट था। उनका आचार पक्ष भी सम्यक् था। यह यथार्थ का आकाश है, उसमें उड़ान भरनी है तो यथार्थ के प्रति श्रद्धा-अनाग्रह व तत्त्व ज्ञान का पराक्रम भी हो। यथार्थ में उड़ने वाला व्यक्ति महान बन सकता है।
न्याय के क्षेत्र में सब एक समान हैं। न्याय तभी हो सकता है जब न्याय के आसन पर बैठने वाला व्यक्ति प्रलोभन में न जाए, भयभीत न हो, उसका अपना विवेक हो। हमारी दुनिया में यथार्थ की खोज करने वाले अनाग्रही और निष्पक्ष होते हैं। बुद्धि भी अच्छी हो तो यथार्थ को निचौड़ के रूप में प्रकट कर सकते हैं। बहुत ऊँची बात है कि महावीर से मेरा मोह नहीं और कपिल आदि से द्वेष नहीं, जो यथार्थ है, वो प्रकट करे। आचार्य भिक्षु ने तो महावीर को भी चूका कह दिया। मारण सिद्धांत को यथार्थ बताना था।साध्वीवर्या सम्बुद्धयशा जी ने पूज्यप्रवर द्वारा रचित गीत ‘बाबा भिक्षु स्वामी की शुभ स्तवना करते हैं’ का सुमधुर संगान किया।
पूज्यप्रवर ने फरमाया कि हम आचार्य भिक्षु से संबद्ध और उनके तप व महाप्रयाण से आबद्ध सिरियारी में स्थित है। आचार्य भिक्षु के प्रति श्रद्धा विशिष्ट है। कितने गीत उन पर गाए गए हैं। धम्म जागरणा से भी भक्ति-स्तुति का माहौल बनता है। भक्ति अहंकार पर चोट पहुँचाने वाली बन सकती है। सिरियारी एक भक्ति योग का प्रांगण है। अभी तो सिरियारी में छोटे से अंश में वर्धमान महोत्सव का-सा रूप हो गया। साधु-साध्वियों, समणियों व श्रावकों की संख्या भी बढ़ गई। ‘ज्योति का अवतार बाबा ज्योति ले आया’। जैन संप्रदाय में और आचार्य हैं क्या जिनकी समानता भगवान महावीर से हुई हो। आचार्य भिक्षु की कई प्रसंगों में समानता हुई है। आज सिरियारी में तीसरे दिन का अंतिम प्रवास है। इतनी चारित्रात्माओं और बड़े सात संतों से मिलना हो गया। जो कुछ दुर्लभ है। साक्षात वंदन करने का मौका मिला है। दर्शन हुए हैं।
मुनि अनिकेत कुमार की स्मृति सभा
पूज्यप्रवर ने मुनि अनिकेत कुमार जी का परिचय दिया। पूरा परिवार संघ में सम्मिलित हो चुका था। यह एक विशेष घटना है। मुनि कौशल भी खूब विकास करे। सिद्धार्थप्रभा भी खूब विकास करे। धैर्यप्रभा व तेजस्वीप्रभा भी खूब अच्छा विकास करे। सभी शांति-समता रखें। पूज्यप्रवर ने मुनि अनिकेत जी के प्रति मध्यस्थ भावना से चार लोगस्स का ध्यान करवाया।
मुख्य मुनि महावीर कुमार जी, साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी, साध्वी सिद्धार्थप्रभा जी, मुनि कौशल कुमार जी, मुनि रणजीत कुमार जी, मुनि कुमार श्रमण जी ने अपनी श्रद्धांजलि भावों से अर्पित की।
पूज्यप्रवर ने फरमाया कि पूरे परिवार के पाँच व्यक्तियों का दीक्षित होना और कोई उदाहरण है क्या? यह एक शोध का विषय है। वर्तमान में तो लगभग नहीं है। हम स्वामी जी से जुड़े स्थान में मुनि अनिकेत कुमार जी के प्रति मंगलभावना करते हैं, उनकी आत्मा अंतिम मंजिल तक विकास करती रहे।
रमेश बोहरा ने न्यातिलों एवं मुसालिया की ओर से श्रद्धांजलि अर्पित की। मुनि चैतन्यकुमार जी, मुनि सिद्धकुमार जी ने गीत से पूज्यप्रवर की अभिवंदना की। कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने भी मुनि अनिकेत कुमार जी के प्रति अपनी श्रद्धांजलि अभिव्यक्त की।