मुनि अनिकेत कुमार जी के प्रति
भैक्षव शासन में हुए श्रमणी श्रमण अनेक
जिनकी महिमा श्रवणकर मन प्रसन्न अतिरेक।।
मुनि अनिकेत कुमार जी सेवाभावी संत
धन्य स्वयं को मानते पाकर तेरापंथ।।
महाश्रमण गुरु की कृपा देखी अपरंपार
चेन्नई में चारित्र ले तरा सकल परिवार।।
मुनि रणजीत कुमार का मिला सुखद सहयोग
तप जप व स्वाध्याय का चलता सतत प्रयोग।।
पिता श्रमण की मिल गई कौशल मुनि को सेव
करते हैं हितकर सदा महाश्रमण गुरुदेव।।
पाँचों ही दीक्षित हुए बना नव्य इतिहास
एक स्थान जमकर रहे जब तक श्वासोश्वास।।
धन्य हुए अनिकेत जी धन्य संघ परिवार
सुयश कमाकर के गए मुख मुख जय जयकार।।
करते मंगलकामना शीघ्र वरें भव थाह
कमल अमन नमि हृदय की यही एक है चाह।।