अच्छे वक्ता को सुनकर श्राोता भी वक्ता बन सकता है: आचार्यश्री महाश्रमण
कंकाणी, 19 दिसंबर, 2022
आज प्रातः परमपूज्य आचार्यश्री महाश्रमण जी ने पाली जिले का प्रवास संपन्न कर जोधपुर जिले में मंगल प्रवेश किया। लगभग 15 किलोमीटर का विहार कर परम पावन कंकाणी के पार्श्वनाथ तीर्थ धाम में पधारे। जोधपुर के श्रावक समाज ने पूज्यप्रवर का भावभीना स्वागत किया। शांतिदूत ने पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए फरमाया कि हमारे शरीर में पाँच ज्ञानेंद्रियाँ और पाँच कर्मेंद्रियाँ हैं। श्रोत, चक्षु, घ्राण, रसन, स्पर्शन ये पाँच ज्ञानेंद्रियाँ हैं, तो हाथ-पाँव आदि पाँच कर्मेंद्रियाँ भी हैं। श्रोत और चक्षुµये दो इंद्रियाँ ज्ञान की सशक्ततम माध्यम प्रतीत हो रही हैं। हम सुनकर और आँखों से देखकर कितना जान लेते हैं।
आदमी सुनकर कल्याण और पाप दोनों को जान लेता है। जानने के बाद जो हितकर है, कल्याणकर है, उसका स्वीकार कर आचरण करना चाहिए। बुरा न सुने, न देखें और न ही बोलें नहीं सोचें। श्रवण शक्ति का दुरुपयोग न हो। हितकर बात को सुन लें, ग्रहण कर लें। अच्छे वक्ता को सुनने से श्रोता अच्छा वक्ता बनने की दिशा में आगे बढ़ सकता है। श्रवण के साथ मनन भी हो जाए फिर आचरण में लाने का प्रयास करे। श्रोता तीन तरह के हो सकते हैंµसुनने वाला श्रोता, सोता नींद लेने वाला और सरोता कि कहाँ वक्ता की गलती निकालूँ।
हम श्रवण करके ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। साधु की पर्युपासना करने से सुनने को मिलता है। सुनने से ज्ञान, ज्ञान से विशेष ज्ञान, विशेष ज्ञान से प्रत्याख्यान का लाभ हो सकता है, फिर आगे अनाश्रव, तप, कर्मों की निर्जरा होते-होते मोक्ष तक की प्राप्ति हो सकती है। हम जोधपुर के आसपास आए हैं। जोधपुर तेरापंथ के नामकरण से संबद्ध क्षेत्र है। गुरुदेव तुलसी का चातुर्मास हुआ था। संतों का विचरण होना दुनिया के सौभाग्य की बात है। दुनिया में साधनाशील, ज्ञानी संत पुरुष का मिलना बड़ी बात है। संत समागमन होना विशेष बात है।
सुनने के बाद श्रद्धा और आचरण अच्छा हो जाए तो बेड़ा पार हो सकता है। सुनने वाला सलक्ष्य सुने यह एक प्रसंग से समझाया कि व्याख्यान श्रवण में जागरूकता रहे। जीना हो तो पूरा जीना, मरना हो तो पूरा मरना। बहुत बड़ा है कष्ट जगत में, आधा जीना, आधा मरना। जीवन में समय के प्रति भी जागरूकता रहे। पूज्यप्रवर की अभिवंदना में लूणी के प्रधान हनुमानसिंह राजपुरोहित स्थानीय सरपंच हीराराम विश्नोई ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि कुमार श्रमण जी ने किया। मुनि योगेश कुमार जी ने समझाया कि हमारे आप्त पुरुष द्वारा बताए मार्ग पर हम चलें।