अध्यात्म और सन्मार्ग पर चलकर बनाएँ अपनी आत्मा को अपना मित्र: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

अध्यात्म और सन्मार्ग पर चलकर बनाएँ अपनी आत्मा को अपना मित्र: आचार्यश्री महाश्रमण

पाली की पावन धरा पर वृहद दीक्षा संस्कार का आयोजन

पाली मारवाड़, 15 दिसंबर, 2022
पाली जो वस्त्र नगरी कहलाती है। यहाँ रंगाई-छपाई का काम विशेष होता है। पाली बहुत पुरानी व्यवस्था नगरी रही है। पाली हमारे परम पावन आचार्य भिक्षु और श्रावक विजयचंद पटवा से भी जुड़ी है। आचार्य भिक्षु के चातुर्मास संबंधी अनेक घटना प्रसंग पाली से जुड़े हैं। तेरापंथ के एकादशम अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण जी आज प्रातः लगभग 6 किलोमीटर का विहार कर पावन एवं धार्मिक नगरी पाली पधारे हैं। मुख्य प्रवचन में महामनीषी ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि हमारी दुनिया में मित्र भी होते हैं, मित्र बनाए जा सकते हैं। शास्त्रकार ने एक गहरी बात कही कि हे पुरुष! तुम ही अपने मित्र हो, फिर बाहर क्या मित्र खोज रहे हो? एक अध्यात्म के परिपल्य में और निश्चय नय के संदर्भ में हमें यह बात बहुत ठीक लग रही है कि अपनी आत्मा ही अपना मित्र है। आत्मा ही अपना मित्र, शत्रु, बंधु और रिपु है।
हमारी आत्मा सुप्रतिष्ठित है, सत्प्रवृत्ति में संलग्न होती है, तब हमारी आत्मा हमारी मित्र बन जाती है। आत्मा जब दुष्प्रवृत्ति में संलग्न हो जाती है, तो हमारी ही आत्मा हमारा दुश्मन भी बन जाती है। आत्मा अहिंसा में संलग्न है, तो हमारी मित्र है और आत्मा हिंसा में प्रवृत्त है तो वही आत्मा हमारा दुश्मन बनती है। जैन शासन में नमस्कार महामंत्र एक भक्ति का मंत्र है। पंच परमेष्ठी को वंदन करना अपनी आत्मा को मित्र बनाना है। नमो शब्द अहंकार पर चोट करने वाला होता है। आत्मा अहंकार मुक्त, ऋजु-सरल स्वभाव, संतोष में, धर्म में स्थित रहे। अध्यात्म और सन्मार्ग पर चलने वाला अपनी आत्मा का मित्र बन सकता है।
पाली में तो आचार्य भिक्षु ने सात चातुर्मास किए थे। उत्तरवर्ती आचार्यों ने भी चातुर्मास किए हैं। आचार्य तुलसी के सन् 1990 के पाली चातुर्मास में मैं भी गुरुदेव के साथ था। पाली को पावन धरा कहा गया है। यहाँ हमारे धर्माचार्यों ने 21 चातुर्मास कर दिए हैं। बड़ी दीक्षा का संस्कार- छेदोपस्थापनीय चारित्र प्रदान सिरियारी में 8 दिसंबर को सात मुमुक्षुओं की दीक्षा हुई थी। उनकी आज चरम संयम-प्रदाता द्वारा बड़ी दीक्षा का आयोजन हुआ। पूज्यप्रवर ने पाँच महाव्रतों एवं रात्रि भोजन विरमण व्रत को खोलकर समझाया व स्वीकार कराते हुए उनमें स्थापित किया। अतीत की आलोचना करवाई। अब इनके साथ आहार का पूरा संबंध हो गया है।
तीन चीजें हैं-सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति। पूज्यप्रवर ने इनको विस्तार से समझाया। पूज्यप्रवर ने इन तीन प्रतिज्ञाओं के संकल्प स्थानीय जैन-अजैन सभी को स्वीकार करवाए। साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि आचार्यश्री ने कहा है कि रात्रि की शोभा चंद्रमा से, दीपक की शोभा तेजस्विता से, सरोवर की शोभा कमल से, दिन की शोभा सूर्य से, राजा की शोभा धृति से और व्यक्ति की शोभा दान से नहीं, व्यक्तित्व से होती है। इस लोक की शोभा सद्गुरु से होती है। पाली में सद्गुरु के रूप में व्यक्तित्व संपन्न महापुरुष पधारे हैं। इनके समागमन से सारा वातावरण बदल गया है। पूज्यप्रवर की अभिवंदना में सभाध्यक्ष सुरेंद्र सालेचा, ज्ञानशाला ज्ञानार्थी, विधायक ज्ञान पारख ने अपनी भावना अभिव्यक्त की।
ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने पूज्यप्रवर से अलग-अलग संकल्प लिखित रूप में स्वीकार किए। आज कई बहिर्विहारी चारित्रात्माओं ने पूज्यप्रवर के दर्शन किए। पूज्यप्रवर के प्रवास स्थल पर रात्रि में स्थानीय अनेक सभा-संस्थाओं द्वारा नागरिक अभिनंदन किया गया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।