शरीर को बनाएँ धर्म की साधना करने का साधन: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

शरीर को बनाएँ धर्म की साधना करने का साधन: आचार्यश्री महाश्रमण

आनंद वाटिका, 17 दिसंबर, 2022
जन-जन के तारक आचार्यश्री महाश्रमण जी आज प्रातः लगभग 15 किलोमीटर का विहार कर खारड़ा स्थित आनंद वाटिका पधारे। पावन प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए परम पावन ने फरमाया कि एक प्रश्न होता है कि इस शरीर को टिकाए रखने के लिए हमें कितना परिश्रम करना पड़ता है। इस शरीर को हम धारण करने व टिकाए रखने का क्यों प्रयास करें, कारण अमर तो कोई रह नहीं सकता। इस संदर्भ में जैन शास्त्र में एक बात बताई गई कि पूर्व अर्जित पाप-कर्मों का क्षय करने के लिए इस शरीर को धारण करें। क्योंकि यह शरीर धर्म की साधना का माध्यम है। शरीर रहेगा तो हम धर्म-ध्यान कर सकेंगे। साधु का शरीर अच्छा है, तो धर्म प्रचार अच्छा कर सकते हैं।
गृहस्थ भी श्रमणोपासक होता है, वह भी धर्म की साधना इस शरीर से करते हैं। स्वाध्याय-ध्यान या तप जो भी धार्मिक क्रिया होती है, वह शरीर से होती है, इसलिए देह भी स्वस्थ और सक्षम रहे। अक्षम है, लंबी उम्र है, वह क्या काम का वह तो परवश रहता है। परवशता से तो अच्छा है कि वह संलेखना-संथारा करे। शरीर से जब तक लाभ मिलता हो शरीर का संरक्षण करे। साधु को जब लगे शरीर अक्षम हो रहा है, तो तपस्या-संलेखना करे। स्वावलंबन में जीना अच्छा है। परावलंबिता में लंबा जीना संभवतः बढ़िया बात नहीं लगती।
साधु ने इस देह को इसलिए धारण कर रखा है कि उसे मोक्ष की साधना करनी है, उसका हेतु ये शरीर रहे, इसलिए इसे साधु पोषण दें। पर खाने में भी संयम हो। स्वाद के लिए ज्यादा नहीं खाना चाहिए। खाना साधना करने के लिए शरीर को भाड़ा देने के लिए है। जीवन भोजन के लिए नहीं है, भोजन जीवन टिकाने के लिए है। खाकर खराब नहीं होना चाहिए। भोजन में विवेक हो, संयम हो। भोजन साधना और शरीर के अनुकूल हो। गृहस्थ भी यह ध्यान रखें। रात्रि भोजन गृहस्थ संभव हो सके तो टालने का प्रयास करें। आदमी बुरा काम करे इसकी अपेक्षा तो नींद लेना ठीक है। उम्र के बाद तो और खाने का ध्यान दें। उम्र आने के बाद खान-पान में सावधान हो जाएँ। आनंद वाटिका से आनंद कवाड़ एवं शोभा कटारिया ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी।